अप संस्कृति
रास्ते में मुझे कल एक
सहपाठी नेता जी
टकराए ।
बोले गुरू - तुम कहाँ,
अच्छे तो हो ।
मैंने कहा -जी हाँ,
किन्तु जरा जल्दी में हूँ ,
कल मिलूँगा ।
-यार,तुम हमेशा
जल्दी में रहते हो,
जब भी समय माँगता हूँ ,
टाल देते हो ।
मैं समाज में बढ़ रही
अपसंस्कृति को
रोकना चाहता हूँ
और अपने संग
तुम जैसे साहित्यकारों को
जोड़ना चाहता हूँ ।
इस बात पर मैं रूक गया,
उनके सामने झुक गया ।
वे बोले,-
हर साल की तरह
हम सब मिलकर
कल
होलिका दहन करायेंगे ।
हॅंसी खुशी के साथ
फिर
पैमाना भी छलकाएँगे ।
मुझे उनकी बुद्धि पर
तरस आया,
मैंने भी तुरंत
नहले पर दहला जमाया ।
आप इस तरह
होलिका दहन करवा के
कैसे संस्कृति की
रक्षा कर पाएंगे ।
यह सुन नेता अकचकाया,
मुझे घूरा और बड़बड़ाया ।
लगता है,जैसे
कोई स्क्रू ढीला है
या कल अवश्य पी होगी?
मैंने कहा यार ,
क्या कहते हो ?
नशे में डूबकर
वर्तमान को भुलाना
मुझे नहीं आता ।
इसीलिए
आप लोगों की तरह
त्यौहार मनाना,
मुझे नहीं भाता ।
मेरे भाई,-यदि हमने
सही मायने में
होलिका दहन कराया होता,
देश का नजारा ही
कुछ और होता ।
भाई-चारे की भावना
के साथ होती ,
देश की प्रगतिशीलता
और सम्पन्नता ।
तब धर्म-भाषा के नाम पर
हम कभी न लड़ते ,
न कभी अकड़ते ।
हमने उनके गले में
हाथ डालकर समझाया
यार, होलिका-
हमारे दिलों में घुसी
काम, क्रोध, लोभ, मोह
द्वेश और अहंकार
जैसी बुराईयों का
दूसरा नाम ही तो है ।
जिस दिन हम उन्हें
दहन कर पायेंगे ,
उसी दिन
हम सही मायने में
होलिका दहन कर पाएँगे
और तभी हम अपने
देश और समाज को
इस अपसंस्कृति से
बचा पाएँगे ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’