अपनी ही कहानियों के विषय में लिखना या कहना बहुत कठिन है। भिन्न-भिन्न भावों को लेकर ये कहानियाँ लिखी गईं हैं। केवल मनोरंजन के लिये मैंने कभी कहानी नहीं लिखी। कहानी तभी लिखी है, जब कोई विसंगति, अन्याय या अमानवीय परम्परा ने हृदय को आहत किया है। उसकी कसक और पीड़ा ही कहानी के सृजन का कारण बनी है।
हमारे यहाँ स्त्रियों का शोषण बड़ी सामान्य बात है। केवल आर्थिक स्वतंत्रता या पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण से वह इससे बच नहीं सकती। बल्कि मैं तो यह कहूँगी कि यदि नारी ने पर्याप्त सावधानी नहीं रखी तो ये दोनों ही बातें उसके शोषण का मार्ग प्रशस्त करेंगी।
मैंने नारी के विषय में अधिक लिखा है, इसका कारण यह है कि वह अनेक प्रकार के बंधनों की श्रंृखला में जकड़ी है। आज भी उसकी पीड़ा को, वेदना को, हृदय के हाहाकार को वाणी देने की आवष्यकता है।
पुरुष वर्ग से मेरा कोई दुराव नहीं है। ‘‘मंगल बेला’’, ‘‘चौथापन’’, ‘‘अतीत की प्रतिध्वनियाँ’’ इस बात की प्रमाण हैं। वैसे भी मेरा विचार यह है कि पुरुष की अपेक्षा नारी ही नारी के प्रति अधिक असहिष्णु है। यदि ऐसा न होता तो नारी को यह व्यथा न झेलनी पड़ती, जिसे वह युगों से झेलती आ रही है।
मेरी ये कहानियाँ पाठकों को नई दिशा दे सकें, उसमें नई चेतना ला सकें और उन्हें अमानवीय परम्पराओं के बंधन से मुक्ति में सहायक हो सके, तभी मैं अपने लेखन को सफल समझूँगी।
अंत में उन सभी महानुभावों का आभार व्यक्त करना चाहती हूँ, जिन्होंने इस पुस्तक प्रकाशन में अपना अमूल्य योगदान दिया है। आदरणीय श्री कृष्णकान्त जी चतुर्वेदी, श्री सनातन बाजपेयी “सनातन” एवं श्री विजय तिवारी “किसलय” जी का जिन्होंने इस पुस्तक में अपनी भूमिका, समीक्षा लिखी। साथ ही अपना सहयोग एवं मार्गदर्शन दिया। विशेषकर श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” के प्रकाशन आग्रह, जिनके कारण हमें यह कहानी संग्रह “धुंध के उस पार” आप जैसे सभी सुधी पाठकों के हाथों में सौंपने का सुखद अवसर मिला। हम आभारी हैं, साहित्यकार एवं चित्रकार श्री रघुबीर “अम्बर” जी के जिन्होंने अपनी तूलिका से चित्र बनाकर कहानियों के मर्म को प्रस्तुत किया है। श्री राजेश पाठक “प्रवीण”, शिवशंकर शर्मा कम्पोजीटर, मनीष शुक्ल जिन्होंने इस पुस्तक में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपना योगदान दिया है।
• श्रीमती सरोज दुबे, नागपुर