संवेदनाओं के स्वर
हे माँ वीणा वादिनी
स्मृतियों के आँगन में
अनमोल वचन (दोहे)
हल कुछ निकले तो सार्थक है
चेतना का सूर्य
प्रलय तांडव कर दिया
साथ पिता थे दुख नहीं
श्री गोर्बाचोव
जब-जब श्रद्धा विश्वासों पर
जीवन सूक्तियाँ (दोहे)
आत्मानुभूतियाँ (दोहे)
राजनीति के दोहे
बन्धु मेरे जा रहा मैं
नव सृजन की कल्पनायें
बूढ़ी आजी माँ और मैं
किससे करें गुहार
नई सड़क थिगड़े लगें
बहुत हो गया बंद करो ये
मित्र मेरे मत रुलाओ
दूर क्षितिज के पार से है
चलो सुनहरे गीत सजायें
फागुन के स्वर गूँज उठे
आघातों-प्रतिघातों से कब
पत्थर के सीने में उगकर
ओ दीप तुझे जलना होगा
दो मुँहे अब साँप भी, बढ़ने लगे हैं
डायरी के वरक जब पलटने लगे
राष्ट्रभक्ति और सेवा के नारे सभी
स्मृतियाँ कैद हुईं, चित्रों में मौन
बरखा ने पाती लिखी मेघों के नाम़
पत्थर के शहर में अब
रह-रह के यूँ सताती थी
पतझर से झरते हैं सारे अनुबंध
राह देखता रहा तुम्हारी
गाँवों की गलियों में
प्रश्न करती दिख रही बैचेन सी
मधुमास है छाया चलो प्रिये
पतझड़ बीता छाई बहारें
मन भावन ऋतुराज है आया
कविता मेरे सॅंग ही रहना
विरहन की पीड़ा को
तुलसी तेरे घर आँगन में
सुख-दुख जब धूप-छाँव
अंगारों से मत खेलो तुम
युद्ध की वो चुनौती हमें दे रहे
इस जगत में एक जीवन
मौन के मकान बन गये
चाँद आज आसमां में
सबसे कठिन बुढ़ापा
कुल्हड़ संस्कृति
मेघ मल्हार
अनजानी गलियों में भईया
संझा बिरिया जब-जब होवे
गुलिस्ताँ की हर कली
धूनीवाले दादा जी (दोहे)
कैसी है यह राजनीति
अतीत की खिड़की में निहारती माँ
सभ्यता - संस्कृति - भाषा
जेलों की सलाखों में
मेरे देश में ये कैसी आँधी है उठी
राष्ट्रभाषा हिन्दी
मानव और स्तब्ध प्रतिमा
गवाही
जीना जो चाहते हैं
बीत ही जायेगी साथी
पुरुषोत्तम
कलयुगी - रावण
हे आतंकवादी
नेता जी का भ्रष्टाचार
अपसंस्कृति
संवेदनाओं का स्पर्श
मेरे प्रियवर तुम मुझको
माँ की ममता
फिंगर प्रिंट
कितना खाया कितना लूटा
त्रिकोण सास बहू बेटे का
पत्नी परमेश्वर
मेरे आँगन की तुलसी
गांधी संग्रहालय सेःएक साक्षात्कार
बदलते समीकरण
राजघाट में उदास हिन्दी
जीवन अनुभूतियाँ (दोहे)
इन्द्र के देवदूतों का हिन्दुस्तानी दौरा
सरकारी व्यवस्था
विचार सूक्तियाँ (दोहे)
जीवन छोटा है सबका और
कृतज्ञता अभिव्यक्त सबको
नदिया रूठी गॉंव से
कृपा करो माँ शारदे
याद आतीं हैं बहुत वे
शांति गीत को दें विराम अब
कवि ने अल्पनाओं में
वतन की आन पर मिटते
लौह पुरुष को सौंपी होती
कवि की कल्पनाओं में
नैतिक शिक्षा के बिना
हिन्दू संस्कृति में प्रमुख
नारी ने पैदा किए
राष्ट्रवाद की बात पर
जीवन की गाड़ी सदा
रंगमंच सा लग रहा
सैनिक पाती लिखने बैठा
बिना कर्म के व्यर्थ हैे
प्रभु की दया असीम है
जीवन के हर मोड़ पर
प्रश्न करे मन बावरा
छल प्रपंच की आड़ ले
बूढ़ा बरगद देखता
समय चक्र के सामने
पिछला बरस गुजर गया
हम सब हैं इस जगत के
शहर जबलपुर जानिए
सास-ससुर, माता-पिता
रिश्तों में खट्टास का
फागुन के दिन आ गए
आत्म प्रशंसा रोग है
पाखंडी धरने लगे
याद सुबह से आ रही
गुरू शिष्य का प्रेम यह
ग्यारह दोहे लिख रहे
सबके जीवन काल में
बचपन के दिन सबके अच्छे
प्रिये आपकी बात को, सुनता हूँ
हिन्दू संस्कृति में बसा
जन्म दिवस की शुभ घड़ी
कलियुग में धन ही सदा
पानी की बूँदें कहें
यह होली आयी है
प्रेम रंग में रम गया
स्मार्ट सिटी
खिड़की से अब झाँकते
प्रभु हमको कुछ ज्ञान दो
कृतघ्नता की पराकाष्ठा
सभी दिशाएँ गा उठीं, नमो नमो
उपचारों के नाम पर
बरसों पहले जब रहा
बोली भाषा अलग पर
राजनीति से हो गया
नीड़ बनाने को उड़ा
अहंकार रवि को हुआ
हीरे मोती व्यर्थ हैं
कबिरा तुम अच्छे रहे
सृष्टि रचियता ने दिया
मंदिर मस्जिद सज रहे
साधु-संत बदले सभी
नव संवत्सर आ गया
चंदा सूरज कर रहे
हर मंदिर में है बढ़ी
भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू
सनातन काल से कवि ने
नदिया रूठी गाँव से
राष्ट्रभक्ति का मस्तक ऊँचा
याद मातु की आ रही
माँ देवी का रूप है
शहर टोरेण्टो है बसा
मुझे तुमसे शिकायत है
विहग उड़ें आकाश में
नाते-रिश्तों से बंँधा
भस्मासुर तपस्या करके
नेताओं ने बो दिये
हिन्दी हिन्दुस्तान के
नदियों का है नीर
भारत की पहिचान
राष्ट्रसंघ स्थापना
कैसे भाषण हो रहे
राष्ट्रीय सम्मान लौटाने वालों से
नैतिकता है खो गयी
धर्म और आतंक का
रचा मंत्र है शांति का
काश्मीर पर कर रहा
जेएनयू में हो रही, राष्ट्रद्रोह की बात
आज शहीदों के प्रति,कृतघ्न हुये
चरित्र गिरा है इस कदर
राष्ट्रभक्ति की ठेकेदारी
राजनीति में ताल ठोंकते
इक नन्हा सा दीपक देखो
संस्कारों के ज्ञान से
सबई के दिल में राम बसत हैं
जोड़े रचकर ईश ने
दोहे संत कबीर के
रावण भ्रष्टाचार का
धरती है बँगाल की
पाक नाम धर कर कभी
बिना दृष्टि के शून्य है
जनता खुश होती अगर
भ्रम में जो भी जी रहे
चाटुकारिता भाव का
गाँधी के इस देश में
नित्य दोहरे आचरण
नाम सुभद्रा जब रखा
साधू इस संसार में
हर कवि का कर्तव्य है
अर्थतंत्र की रीढ़ को
जीवन में सम्मान की
नारी तेरी अजब कहानी
हिन्दी हिन्दुस्तान की
माँ की ममता है बड़ी
मोबाइल पर आज है
जीवन में आलस्य का
धर्म वही होता बड़ा
सैंतालिस से चल रही
सत्ता का भोगी बुरा
सदियों से हमने किया
जन मानस का हृदय अब
मैंने सत्-साहित्य पढ़ा है