कृतघ्नता की पराकाष्ठा.....
उस दिन
घुमका गाँव के
लोगों की
कृतघ्नता की
पराकाष्ठा हो गई,
जब उनके गाँव में
भामाशाह की वंशज
लाचार सुखिया की
दर्दनाक मौत हो गई।
उसके पति ने तोे
गाँव के खातिर
अपनी जमीन,मकान तक
स्कूल के खातिर
दान में दे दी थी ।
किन्तु पति के
स्वर्गारोहण के बाद
उस कृतघ्न गाँव ने
उसे कहीं का न छोड़ा था।
वह वर्षों से रोज
काँपते हाथों से
उबड़-खाबड़ गलियों में
दो जून रोटी के लिए
मोहताज घूम रही थी ।
और सारे गाँव से
अपने पति के हाथों से
रोपे गये
संस्कारों की बाट
जोह रही थी ।
सबकेे सुनहरे
भविष्य के खातिर
उसने तो
अपने वर्तमान को
दाँव पर
लगा दिया था ।
पर बदले में गाँव ने तो
उसके भविष्य पर ही
प्रश्न चिन्ह
लगा दिया था ।
आज दानवीर सुखिया
इस शिक्षित समाज के सामने
लाचार-बेबस हुई थी।
और एक लावारिस सी
सड़क किनारे पड़ी थी ।
आज उसके पार्थिव शरीर पर
कृतघ्नता की मक्खियाँ
बुरी तरह से
भिनभिना रहीं थीं,
और आने वाले
ऐसे सुनहरे कल पर
अपना प्रश्न चिन्ह
लगा रहीं थीं।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’