दोहे मनोज के: भाग - 3
601. कर्म
कर्म-राह निर्माण की, नहीं चाहते लोग।
अजगर बन आराम से, खाते मोहन भोग।।
602. संधान
भारत की गौरव शिला, राणा हुए महान।
छद्म वेश बहुरूपिए, करें बाण संधान।।
603. राष्ट्र भक्त
राष्ट्र विरोधी ताकतें, चलतीं सीना तान।
राष्ट्र भक्त सब जानते, लें कैसे संज्ञान।।
604. प्रत्यंचा
प्रत्यंचा पर खींचकर, करें व्यंग्य संधान।
शब्द बाण से व्यथित हैं, राष्ट्र भक्त इंसान।।
605. कदाचरण
सबके हित की सोच से, लेखक बने महान।
कदाचरण से जो ग्रसित, विध्वंसक संधान।।
606. कानन
गिरि, कानन, सरिता, पवन, ठंडी बहे बयार।
मौसम की अठखेलियाँ, भर देती हैं प्यार।।
607. रघुनंदन
रघुनंदन हिय में बसें, निर्मल रहे स्वभाव।
लोभ-मोह की खोह से, बचकर चलती नाव।।
608. पनघट
पनघट प्यासा रह गया, सरिता रही उदास।
घट जल से वंचित रहा, बुझी न मन की प्यास।।
609. काजल
काजल आँजा आँख में, लगा डिठौना माथ।
आँचल की छाया मिली, माँ की ममता साथ।।
610. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन पर्व यह, भ्रातृ-बहन का प्यार।
611. सौगात
रक्षाबंधन पर्व में, रक्षा की सौगात।
सुखद प्रेम की डोर है, सामाजिक जज्बात।।
612. कजरी
सावन में कजरी हुई, सुना मेघ मल्हार।
वर्षा में मन भींजता, कर प्रियतम शृंगार।।
613. सुरसरि
बहती है सुरसरि नदी, शिव का है वरदान।
मुक्ति-पाप संकट हरे, मानव का कल्यान।।
614. वर्तिका
दीप वर्तिका जब जले, तम का होता नाश।
राग द्वेष हिंसा भगे, कटें नाग के पाश।।
615. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन आ गया, बहना करे दुलार।
बचपन की अठखेलियाँ, रचे नेह संसार।।
616. काजल
दिल को घायल कर गई, दारुण दुखद विछोह।
आँखों में काजल लगा, चितवन लेती मोह।।
617. राष्ट्र
राष्ट्र-धर्म सबसे बड़ा, हो सबको संज्ञान।
शेष धर्म निजिता रहे, यही सूत्र है जान।।
618. तिरंगा
आजादी की शान है, भारत की पहचान।
बना तिरंगा विश्व में, सुख शांति की खान।।
619. गान
राष्ट्र-गान जब भी चले, सभी करें सम्मान।
देश भक्ति कहते इसे, हो सबको यह भान।।
620. जनगण
जनगण-मंगल हो सदा, प्रजातंत्र की नींव।
सुख-सुविधा सबको मिले, खुशी रहे हर जीव।।
621. जनता
लोकतंत्र अवधारणा, जनमत की सरकार।
मत देकर वह चुन रही, उस पर हो उपकार।।
622. अवतार
पाप धरा पर जब बढ़े , प्रभु लेते अवतार।
आकर अरि-मर्दन करें, जग के तारणहार।।
623. चमत्कार
चमत्कार की है घड़ी, टीके का निर्माण।
कोविड का संकट टला, सबसे बड़ा प्रमाण।।
624. समाधि
गर्वितमन सबका हुआ, देखी अटल समाधि।
राष्ट्र समर्पण भाव था, भारत रत्न उपाधि।।
625. उजागर
तालिबान को देखकर, हुई उजागर बात।
आश्रित होकर जो जिया,मिला सदा आघात।।
626. अंतर्मन
अंतर्मन की यह व्यथा, भाई है परदेश।
राखी उसे निहारती, मन में भारी क्लेश।।
627. बदरी
बदरी बरसी झूमकर, नाचे जंगल मोर।
हरी भरी हैं वादियाँ, पशु-पक्षी का शोर।।
628. बिजली
बिजली चमकी गगन में, वर्षा का संकेत।
दादुर झींगुर गा उठे, हरियाएँगे खेत।।
629. मेघ
उठे मेघ आकाश में, बही हवाएँ तेज।
गोरी रस्ता देखती, लेटी अपने सेज।।
630. चैमास
हँसा देख चैमास को, मुरझाया जो फूल।
मुख की रंगत बढ़ गई, तन की झाड़ी धूल।।
631. ताल
ताल तलैयाँ बावली, छलके यौवन रूप।
बहती नदिया बावरी, प्रेम भरे रस-कूप।।
632. मुस्कान
अधरों में मुस्कान हो, प्रियतम का हो साथ।
जीवन जीने की कला, समय चूमता माथ।।
633. किलकार
बच्चों की किलकार से, हँसता है घर द्वार।
सारे दुख हैं भागते, वैभव सुख परिवार।।
634. सावन
सावन में राखी बँधी, भाई बहन का प्यार।
बचपन की अठखेलियाँ, गढ़ता नव संसार।।
635. नदियाँ
वर्षा में नदियाँ हुईं, सागर सी विकराल।
पृथ्वी डूबी जलज में, आईं बनकर काल।।
636. बौछार
दुख की जब बौछार हो, प्रभु का जपलें नाम।
छाए संकट सब हटें, बिगड़े बनते काम।।
637. क्रांति
मानव पर संकट बढ़ें, सहन शक्ति हो पार।
क्रांति बने उद्घोष तब, रचें नया संसार।।
638. वीरगति
अंग्रेजों के काल में, कब शुभ होती भोर।
संघर्षों में वीरगति, जुल्म हुए घनघोर।।
639. कृतज्ञ
हम कृतज्ञ हैं देश के, हम सब पर अहसान।
जन्म दिवस से आज तक, मिला हमें सम्मान।।
640. स्वतंत्र
जनता सभी स्वतंत्र है, नैतिक हो यह ज्ञान।
कत्र्तव्यों का बोध हो, अधिकारों का भान।।
641. देशभक्ति
संकट कभी न आ सके, जग में रहा प्रमाण।
देशभक्ति मन में बसे, तभी राष्ट्र निर्माण।।
642. अरि
देश भक्ति की भावना, भरती रग-रग जोश।
राष्ट्र सुरक्षा की घड़ी, अरि के उड़ते होश।।
643. परावलम्बी
परावलम्बी जो हुआ, तालिबान आधीन।
साहस धीरज आत्मबल, कभी न बनता दीन।।
644. धानी
धानी चूनर ओढ़ कर, चढ़ा केसरी रंग।
झंडा वंदन हो रहा, देश-प्रेम-सत्संग।।
645. यामा (रात)
यामा में इूबी धरा, घन गरजा आकाश।
बिजली चमकी साथ में, हुआ कंस का नाश।।
646. घनश्याम
श्याम वर्ण घनश्याम का, राधा गोरी-रंग।
प्रेम सरोवर में बसें, आदि काल से संग।।
647. चातुर्मास
भक्ति कर्म आराधना, ज्ञान, ध्यान, सत्संग।
शुभ दिन चातुर्मास के, पावन सुभग प्रसंग।।
648. महादेव
महादेव की है कृपा, चार-मास त्योहार।
गौरी सुत की वंदना, कान्हा का अवतार।।
649. पावस
पावस का स्वागत हुआ, गुमी उमस की छोर।
सारे दुख हैं हट गए, खुशियों की हिलकोर।।
650. सावन
सावन-भादों में चली, मेघों की बारात।
हरियाली घोड़े चढ़ी, पावस की सौगात।।
651. बरसात
भीगा तन बरसात में, नाच उठा मन मोर।
पड़ी फुहारें धरा में, बदला मौसम शोर।।
652. धान
सावन की बौछार ने, भरे खेत के पेट।
रोपे-धान किसान ने, था जो मटिया-मेट।।
653. नदिया
मेघों से अमृत मिला, नदियाँ र्हुइं अधीर।
मीठे जल को ले चलीं, बदली है तकदीर।।
654. किलोल
साँझ-सबेरे वृक्ष पर, पंछी करें किलोल।
परामर्श यह कर रहे, जीवन है अनमोल।।
655. किलकार
सरकस में जोकर दिखा, गूँज उठी किलकार।
भगी उदासी छोड़कर, हँसी-खुशी तकरार।।
656. वाचाल
नेता जी वाचाल हैं, जनता रहती मूक।
इसी विरोधाभास से, हो जाती है चूक।।
657. नदिया
नदिया प्यासी बह रही, सागर रहा पुकार।
दोनों का फिर से मिलन, कैसे हो साकार।।
658. बौछार
मेघों ने बौछार कर, दिया धरा को सींच।
दूब हरित हो खिल उठी, रही दिलों को खींच।।
659. आचमन
पूजन अर्चन आचमन, सँग करता जो भक्ति।
ईश्वर की आराधना, सबको मिलती शक्ति।।
660. मेघ
मेघ कहीं दिखते नहीं, राह गए हैं भूल।
अंतर्मन में चुभ रहे, मौसम के अब शूल।।
661. पुरवाई
उल्टी पुरवाई बही, खेत हुए वीरान।
कृषक देखता मेघ को, रोपें कैसे धान।।
662. मानसून
मानसून को देखकर, कृषक हुए बेचैन।
खेत यहाँ सूखे पड़े, उत्तर-दिश है रैन।।
663. पगडंडी
सूरत बदली गाँव की, बिछा दिये पाषाण।
पगडंडी अब है कहाँ, सड़कों का निर्माण।।
664. प्रेम
डोर प्रेम की थाम कर, नभ में भरें उड़ान।
सृजन करें हम राष्ट्रहित, बढ़े जगत में मान।।
665. विश्वास
प्रेम और विश्वास से, बनती सुदृढ-नीव।
अंतर्मन की भावना, विकसित-पुष्पित जीव।।
666. प्रतीक्षा
करे प्रतीक्षा आपकी, मत कर तू परवाह।
मंजिल खड़ी निहारती, चलो कर्म की राह।।
667. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, रहें सुरक्षित आप।
जब तक वायरस न हटे, दो गज दूरी नाप।।
668. अलगाव
आतंकी अलगाव का, नित गाते हैं राग।
बहा खून निर्दाेष का, खेल रहे हैं फाग।।
669. मिलन
उम्र गुजरती जा रही, लगी मिलन की आस।
प्रभु से है यह प्रार्थना, चरणों में विश्वास।।
670. घात
घात और प्रतिघात से, पहुँचाते आघात।
मित्र कभी न बन सकें, बनती कभी न बात।।
671. आषाढ़
जेठ गया आषाढ़ ने, मन में भरी उमंग।
पहुनाई फिर सावनी, मौसम बदले रंग।।
672. उमस
उमस बढ़ी आषाढ़ में, चिन्तित हुए किसान।
खाद बीज घर में रखे, कैसे दुखद विहान।।
673. चक्रवात
चक्रवात उठने लगे, बढ़ा हवा का वेग।
उमड़-घुमड़ कर मेघ ने, दिया धरा को नेग।।
674. कजरी
कजरी ठुमकी दादरा, गायन के है हार।
वर्षा में संगीत की, बहती है रसधार।।
675. घनश्याम
प्रकट हुए घनश्याम अब, बदलेंगे परिवेश।
नभ में बिजली कौंधती, वर्षा का संदेश।।
676. कुवलय
पोखर में कुवलय खिले, देख सभी हैं दंग।
केशव को अर्पित करें, नील वर्ण है रंग।।
677. कुमुदबंधु
खिलते हैं जब झील में, रंग-बिरंगे फूल।
कुमुद-बंधु को देख कर, दुखड़े जाते भूल।।
678. वाचक
वाचक अपने ज्ञान से, देता सदा प्रकाश।
दोषों से वह मुक्ति दे, करता तम का नाश।।
679. विरहित
दुर्याेधन विरहित रहे, कुल के बुझे चिराग।
द्वापर का युग कह रहा, दुहराएँ मत राग।।
680. वापिका
जीव-जन्तु निर्जीव के, जीवन पर है शोध।
प्यास बुझाती वापिका, छट जाते अवरोध।।
681. प्राणायाम
करें सुबह उठ कर सभी, प्राणायाम-विहार।
साँसों से जीवन-मरण, रहता दिल गुलजार।।
682. संकटकाल
गुजरा संकट काल यह, आया है इक्कीस।
वैक्सीन है आ गई, देख भगा वह बीस।।
683. चकोरी
नयन चकोरी देखती, कैसी अनबुझ प्यास।
देख चंद्रमा हँस उठा, फिर भी हटी न आस।।
684. हिलकोर
तन-मन जैसे नाचता, ज्यों जंगल में मोर।
शांत सरोवर में उठी, खुशियों की हिलकोर।।
685. प्रसून
अमरित बूँदों ने किया, नव जीवन संचार।
नव-प्रसून हैं खिल उठे, उनका है सत्कार।।
686. पावस
पावस में झरने बहें, भरें जलाशय कूप।
अमृत पीकर खिल उठे, जंगल लगे अनूप।।
687. दादुर
रिमझिम वारिश से हुई, खुशियों की बरसात।
दादुर झींगुर मगन हो, सुर को देते मात।।
688. आनंद
उमस पसीने तपन से, मिली हमें सौगात।
मेघ झरें आनंद के, खुशियों की बरसात।।
689. वर्षा
वर्षा-जल संचय करें, व्यर्थ न जाए नीर।
यह सबकी चिंता हरे, मिट जाती हर-पीर।।
690. जलधार
आँखों की जलधार ने, बड़े किए हर काम।
हृदय द्रवित जब हो उठे, पहुँचें उचित मुकाम।।
691. कवच
टीकाकरण ही कवच है, कोरोना के काल।
निर्भय हो लगवाइए, तन-मन हो खुशहाल।।
692. राहत
राहत है इस बात पर, जग में घटे मरीज।
रहें सुरक्षित हम सभी, कोरोना नाचीज।।
693. उड़ान
जीवन भरे उड़ान अब, प्रगति रहे गतिमान।
सुख वैभव समृद्धि से, भारत हो धनवान।।
694. व्यवसाय
पटरी पर चलता रहे, सबका हर व्यवसाय।
कर्म साधना सब करें, दुगनी हो फिर आय।।
695. ललित
ललित कला में दक्ष सब, कौशल का हो भाव।
अविरल उन्नति धार में, बढ़े हमारी नाव।।
696. गिलोेय
बरगद, पीपल, आँवला, तुलसी, शमी, गिलोय।
जीवन में अनमोल हैं, रोगी कभी न होय ।।
697. बरगद
जीवन के निर्माण में, हर बचपन की आस।
बरगद सी छाया मिले, मातु-पिता के पास।।
698. पीपल
पीपल की छाया सुखद, सबको देती छाँव।
अतिथि देव कहकर सदा, पीड़ा हरता गाँव।।
699. आँवला
आँवला नवमी तिथि को, शुभ पूजन का योग।
परिवारों के साथ में, मिलता मोहन भोग।।
700. तुलसी
तुलसी की हैं पत्तियाँ, देतीं अमरित-घोल।
घर-घर में सब पूजते, औषधि में अनमोल।।
701. शमी
बनी रहे शनि की कृपा, पूजन की दरकार।
शमी औषधी खान है, हरती वात-विकार।।
702. मुहूर्त
सदियों लटका मामला, मिला कोर्ट से त्राण।
शुभ मुहूर्त पूजा हुई, अब मंदिर निर्माण।।
703. प्रियता
प्रियता से दूरी बने, कष्टों की भरमार।
सम्बंधों को साधिए, घट जाएँगे भार।।
704. कोरोना
करें प्रतीक्षा हम सभी, कोरोना हो दूर।
मिटे अमंगल की घड़ी, जीना हो भरपूर।।
705. पत्र
पत्र लिखे हमने बहुत, भेजे उनके पास।
पहुँच न पाए उन तलक, टूट गई फिर आस।।
706. अनमोल
प्यार बड़ा अनमोल है, बढ़े जगत में मान।
जितना भी हम बाँटते, खुद की बढ़ती शान।।
707. प्रतिवाद
वाद और प्रतिवाद ही, नेताओं का कर्म।
कर्म भाव लोपित किया, भूल गए निज धर्म।।
708. मुक्ति
मुक्ति सभी हैं चाहते, करते रहते जाप ।
लोक और परलोक में, मिटें सभी संताप।।
709. दुत्कार
अज्ञानी के भाग्य में, जीवन भर दुत्कार।
ज्ञानी को मिलता सदा, प्रेम भरा सत्कार।।
710. नेपथ्य
रंग-मंच के पात्र सब, डोरी प्रभु के हाथ।
जब गूँजे नेपथ्य से, छोडं़े जग का साथ।।
711. मिर्च
सदा मिर्च तीखी लगे, कटु वाणी मत बोल।
मीठी वाणी बोलिए, जो अमरित का घोल।।
712. अनुभव
अनुभव कहता है यही, बने वही हमराज।
सोचे समझें परख लें, तभी बचेगी लाज।।
713. अनुभूति
शांति और उत्साह से, दिल के जुड़ते तार।
कर्मठता अनुभूति से, मन से हटता भार।।
714. अनुकृति
ईश्वर की अनुकृति बना, पूजा करते लोग।
मन मैला,तन स्वच्छ हो, कभी न बनता योग।।
715. अनुमान
मंजिल पाने के लिये, मापदंड अनुमान।
निकल पड़े जब राह में, बन जाओ हनुमान।।
716. पीर
कृषक खड़ा है राह पर, उसके मन की पीर।
मौसम की जब मार हो, पाँवों में जंजीर।।
717. जनता
जनता चुनती ही रही, लोकतंत्र सरकार।
आशाओं को ध्वस्त कर, फिर बन जाती भार।।
718. जगत
गुण-अवगुण हर काल में,,सबको इसका भान।
रहे जगत खुशहाल जब, रखें गुणों का मान।।
719. जीवन
जीवन हमको है मिला, जीने का अधिकार।
सबको अवसर मिल सके, इसकी है दरकार।।
720. जीव
जीव वनस्पति ये सभी, हैं ईश्वर के रूप।
सबका ही कल्याण हो, होती प्रकृति अनूप।।
721. जन्म
जन्म-मरण के बीच का, होता छोटा काल।
कुछ जीने के काल में, करते बड़ा कमाल।।
722. तुंग
तुंग हिमालय है खड़ा, भारत का सिरमौर।
सागर रक्षक है बना, नित शुभ होती भोर।।
723. कौड़ी
फूटी कौड़ी है नहीं, बनते राजा भोज।
स्वप्न महल के देखते, सुबह-शाम ही रोज।।
724. इष्ट
इष्ट देव आराधना, प्रतिदिन प्रातः-शाम।
कपटी-मन, तन में बसे, मिलते कैसे राम।।
725. अर्गला
पाठ अर्गला कीजिए, सप्तशती का रोज।
माँ दुर्गा रक्षा करें, नौ-कन्या को भोज।।
726. मुद्रा
मुद्रा के भंडार सँग, करुणा का हो भाव।
दोनों के सत्संग से, चलती जग में नाव।।
727. कागा
छत पर कागा बैठ कर, देता है संदेश।
देख पाहुने आ रहे, बदलेगा परिवेश।।
728. सेवा
सेवा को तत्पर रहें, यही राह अब नेक।
हर मन में करुणा बसे, मानवता है एक।।
729. उमंग
आतंकी है वायरस, कौन बचा हे नाथ।
अब उमंग उत्साह से, छूट रहा है साथ।।
730. कीर्तन
मंदिर में कीर्तन जमीं, प्रभु से जुड़ा लगाव।
छाया संकट दूर हो, भरें सभी के घाव।।
731. अक्षर
कविता अक्षर-धाम हैं, अक्षर-अक्षर मंत्र।
जप-तप है आराधना, संकट का है यंत्र।।
732. स्वप्न
स्वप्न सलोने खो रहे, छायी तम की रात।
प्रभु सबका कल्याण कर, आए सुखद प्रभात।।
733. प्रभात
गहरा तम जग से हटे, नव प्रभात की चाह।
यह आशा विश्वास ही, है जीवन की राह।।
734. महावीर
संकट जब हो सामने, होते नहीं अधीर।
महावीर उसको कहें, बाहुबली से वीर।।
735. संजीवनी
कोरोना संजीवनी, आई घर-घर आज।
टीका सबको ही लगे, तभी करेंगे राज।।
736. शोक
शोक घरों में छा रहा, रहें सुरक्षित आप।
मास्क लगाकर ही चलें, दो गज दूरी नाप।।
737. समाधान
समाधान की राह ही, करती संकट दूर।
मिलकर उसे तलाशिए, कहलाएँगे शूर।।
738. प्रत्याशा
प्रत्याशा बढ़ने लगी, मिली दवाई नेक।
टीका लगने पर लगा, काटेंगे फिर केक।।
739. झरोखा
आँख झरोखा बन गए, झाँक सके तो झाँक।
अंतर्मन के भाव को, सहज-भाव से आँक।।
740. खिड़की
मानव का कद जब बढ़े, तब छूता आकाश।
दिल की खिड़की खोल कर, मन में भरें प्रकाश।।
741. अटारी
बहा पसीना श्रमिक का, सुंदर बना मकान।
बनी अटारी कह रही, क्यों श्रम से अनजान।।
742. आँगन
आँगन सारे मिट गए, दिखतीं हैं दीवार।
डुप्लेक्सों में जी रहे, जीवन की दरकार।।
743. दहलीज
पार किया दहलीज को, प्राणों पर है भार।
मास्क लगाकर ही रहें, यदि जीवन से प्यार।।
744. संवत्सर
ब्रह्माजी की सृष्टि की, गणना की आरम्भ।
संवत्सर की यह कथा, सतयुग से प्रारम्भ ।।
745. नववर्ष
सनातनी नववर्ष का, खुशी भरा यह मास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, आया है मधुमास।।
746. देवियाँ
शक्ति रूप में देवियाँ, पाती हैं सम्मान।
आराधक बन पूजता, सारा हिन्दुस्तान।।
747. चैत्र
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को, आता है नव वर्ष।
धरा प्रकृति मौसम हवा, मन को करता हर्ष।।
748. माता
माता का आँचल सुखद, सबको मिलती छाँव।
दमके जीवन स्वर्ण सम, शहर बसें या गाँव।।
749. नटखट
नटखट कृष्णा छिप गए, आते देखा मात।
खड़ी गोपियों ने कहा, वहाँ छिपे हो तात।।
750. मीरा
मीरा ने है कर लिया, प्रेम मगन विष पान।
विष को अमृत बना कर, रखा प्रेम का मान।।
751. शूल
शूल चुभे हैं अनगिनत, नहीं किया परवाह।
आज तभी मंजिल दिखी, मिली हमें है राह।।
752. स्वर्ण
जीवन दमके स्वर्ण सम, सबके मन की चाह।
मेहनत ही वह रास्ता, जो दिखलाती राह।।
753. कुंतल
कुंतल में उलझे रहे, प्रभु का लिया न नाम।
चैथापन जब आ खड़ा, तब जपते हो राम।।
754. शृंगार
अक्षय-मन शृंगार हो, तन का होता व्यर्थ।
मन से मन जब है मिले, तब जीने का अर्थ।।
755. अभिसार
प्रियतम के बिन शून्य है, निकले हर पल आह।
कठिन डगर अभिसार की, हर पल ढूँढ़े राह।।
756. वंदनवार
द्वारे वंदनवार हैं, मंडप में ज्योनार।
बाबुल की आँखें भरीे, डोली है तैयार।।
757. मनुहार
ईश्वर से मनुहार कर, व्यापे कभी न रोग।
प्रभु से करे मनौतियाँ, और चढ़ावें भोग।।
758. प्राण
तन में प्राण अमोल है, सब हैं मालामाल।
दुर्जन की मत पूछिए, हरने को बेहाल।।
759. पिचकारी
पिचकारी ले हाथ में, किशन खड़े हैं ओट।
पीछे राधा आ गईं, उनको देने चोट।।
760. अबीर
झोली भरे अबीर की, ब्रज का नंदकिशोर।
ग्वालों की टोली बना, गुँजा रहा हर छोर।।
761. गुलाल
माथे लगा गुलाल जब, होली की सौगात।
भूले सभी मलाल को, बनती बिगड़ी बात।।
762. होली
रंगों में डूबे सभी, होली की हुड़दंग।
मौसम है बौरा गया, जैसे पी हो भंग।।
763. फाग
टिमकी गूँजी गाँव में, चला फाग का शोर।
हुरियारों की फाग को, देख रही है भोर।।
764. चाौपाल
नहीं रही चैपाल अब, सुलझें जहाँ बवाल।
जुम्मन से रंजिश मिटे, गले मिले हर साल।।
765. टकसाल
आतंकी टकसाल पर, कसा शिकंजा आज।
नजरबंद नेता किए, मिटा दहशती राज।।
766. धमाल
होली की हुड़दंग में, होगा नहीं धमाल।
कोरोना का आगमन, बंदिश रही कमाल।।
767. उछाल
आया बड़ा उछाल फिर, व्यापारिक परिवेश।
साहस धीरज ने दिया, उन्नति का संदेश।।
768. मालामाल
वैकसीन निर्माण में, भारत मालामाल।
संकट के इस दौर में, जग को किया निहाल।।
769. कस्तूरी
कस्तूरी है नाभि में, फिर भी मृग अनजान।
सुख-दुख अंदर झाँक ले, क्यों भटके नादान।।
770. फागुन
स्वर्णिम बालें झुक गईं, संभले अब न भार।
फागुन की पुरवा बही, खिली धूप कचनार।।
771. महुआ
बहक रहा मन बावरा, कोई कहे बुखार।
मौसम महुआ का हुआ, सबको चढ़ा खुमार।।
772. किंशुक (पलाश)
किंशुक ने बिखरा दिया, अधरों की मुस्कान।
बाँहों में भरकर प्रकृति, झूम उठी स्वर-तान।।
773. गुलमुहर
खिला गुलमुहर बाग में, गूँजा मंगलगान।
शिवरात्रि की है घड़ी, सब करते शिव ध्यान।।
774. फसल
खेतों में फसलें खड़ी, लगे सुहाना दृश्य।
झूम-झूम लहरा रहीं, सुन्दर लगे भविष्य।।
775. किसान
फसलें देख किसान का, ऊँचा उठता भाल।
माथे से संकट टला, सबको करें निहाल।।
776. खेत
कर्म भूमि ही खेत है, नैतिकता है बीज।
जितना इसको बो सकें, अद्भुत है यह चीज।।
777. माटी
मेहनत करते श्रमिक जो, खाते छप्पन भोग।
माटी की खुशबू गजब, जुड़े अनेकों लोग।।
778. खलिहान
उपज रखें खालिहान में, जब श्रमवीर किसान।
मन आनंदित हो उठे, चलते सीना तान।।
779. सुधा
गरलकंठ धारण किया, कर शिव ने कल्यान।
सभी देवगण ने किया, कलश-सुधा रस पान।।
780. सुगंध
परिणय बंधन में बँधें, युगल-प्रणय अनुबंध।
पति-पत्नी बन प्रेम हो, वातावरण सुगंध।।
781. सितार
झंकृत हुआ सितार जब, धरा छेड़ती तान।
मंद पवन बहला रही, छा जाती मुस्कान।।
782. सरसों
ऋतु बसंत का आगमन, धरा बदलती वेश।
पीली सरसों फूलती, स्वर्ण-प्रभा संदेश।।
783. स्वर्ण
स्वर्ण-प्रभा आभा लिए, आया सूरज भोर।
पंक्षी कलरव कर रहे, खुशियों का है शोर।।
784. कान
कान कृष्ण के सुन रहे, नूपुर में थी खोट।
राधा छिप जाती कहीं, काम न आती ओट।।
785. कुटी
न्यारी कुटी बनाइए, जहाँ विराजें राम।
दया प्रेम सद्भावना, सही बड़े हैं धाम।।
786. कुटीर
लघु-कुटीर उद्योग हैं, उन्नति के सोपान।
काम मिले हर हाथ को, जीवन जीते शान।।
787. गृहस्थी
सुखद गृहस्थी में सदा, प्रेम शांति का वास।
हिलमिलकर रहते सभी, कटुता का है नास।।
788. नारी
नारी का सम्मान हो, सिखलाता हर धर्म।
जहाँ उपेक्षित हो रहीं, आएगी कब शर्म।।
789. सुंदरता
सुंदरता की चाह में,, गवाँ दिया सुख चैन।
कोयल जैसी कूक को, तरस गए दिन-रैन।।
790. मुखड़ा
मुखड़ा सुंदर देखकर, मोहित है संसार।
कोयल-कागा परखने, बुद्धि की दरकार।।
791. कोमलता
कोमलता मन में भरें, यह जीवन रस रंग।
प्रेम कलश छलके सदा, मादक लगते अंग।।
792. अंतरंग
शांति और सद्भाव से, बहती प्रगति सुगंध।
सदा पड़ोसी से रहें, अंतरंग संबंध।।
793. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र-अभिव्यक्ति का, ढपली ले कर शोर।
छदम वेषधर गा रहे, कैसे होगी भोर।।
794. प्रस्ताव
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, कैसे मिलेगा फल।।
795. हल्दी
हल्दी कुमकुम सी लगी, मौसम-माथे प्रीत।
बसंत पंचमी पर्व में, फैली सरसों पीत।।
796. पीड़ा
पीड़ा जिसके भाग में, लिख देता भगवान।
कर्मठ मानव जूझकर, पाता सदा निदान।।
797. अर्पण
अर्पण कविताएँ सभी, सरस्वती के नाम।
ज्ञान-बुद्धि देती रहें, करें जगत हित काम।।
798. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
भेद-भाव को भूल कर, करते हैं सब भक्ति।।
799. अपराधी
अपराधी अपराध कर, निर्भय घूमें आज।
निरअपराधी बंद हैं, थाने का अब राज।।
800. झील
झील रही निर्मल सदा, दूषित करते लोग।
कूड़ा-करकट डालकर, तन में पालें रोग।।
801. अलाव
गाँवों की चैपाल में, फिर से जला अलाव।
मिलकर सबजन बैठते, दिखा नहीं अलगाव।।
802. किलकार
गूँज रही किलकार है घर आँगन में आज।
शहनाई जो बज रही, खुशियाँ हैं सरताज।।
803. मेला
चंडी का मेला भरा, झूलों की भरमार।
चाट-चटौनी बिक रही, गले मिले सब यार।।
804. खलिहान
खुश होते खलिहान हैं, बढ़ती पैदावार।
अपने अंक समेटकर, रखता है भंडार।।
805. उजियार
दीपक जलकर सदा से, फैलाता उजियार।
तमस भगाकर मनुज पर, करता है उपकार।।
806. मदिर
मदिर-नयन है रस-भरे, तेज चलाती बाण।
दिल को घायल कर रही, सबको देती त्राण।।
807. अंगूरी
अंगूरी छलका रही, बहती मधुमय धार।
पीने वाले पी रहे, नयनन चले कटार।।
808. समय
समय बड़ा बलवान है,क्या राजा क्या रंक।
पल में वही पछाड़ता, करता वही निशंक।।
809. पल
पल दो पल की जिंदगी, हँसी-खुशी से जीत।
समय दुबारा कब मिले, बिछड़़ेंगे हर-मीत।।
810. क्षण
प्रेम-क्षमा की डोर में, बँधकर पा सम्मान।
क्षण भंगुर यह देह है, मत कर तू अभिमान।।
811. भावी
क्षण में सब बदले यहाँ, वर्तमान अरु भूत।
भावी ले जाए कहाँ, कथा बाँचता सूत।।
812. काल
काल खड़ा जब द्वार में, नहीं दिखेगी भोर।
ईश्वर का तू ध्यान कर, पकड़ अभी से छोर।।
813. साँस
काल करे सो आज कर, कल को मत दे छूट।
किसको कल का है पता, साँस न जाए टूट।।
814. निमिष
निमिष-निमिष हम बढ़़ रहे,मंजिल की ही ओर।
खड़ा विश्व फिर सुन रहा, जगत-गुरू का शोर।।
815. घाव
कोरोना के घाव ने, दिया हमें आघात।
प्राण-निमिष जाते रहे, भारत ने दी मात।।
816. पतिव्रता
पतिव्रता परिकल्पना, प्रेम समर्पण भाव।
आपस में सद्भावना, जीवन की है नाव।।
817. दिव्य-पुरुष
दिव्य पुरुष में शक्तियाँ, मुखड़े पर आलोक।
अनगिन होतीं खूबियाँ, कभी न फटके शोक।।
818. धरा
सहनशील है यह धरा, पाले मातु समान।
कितना ही दूषित करें, रखे सभी का घ्यान।।
819. पहाड़
ईश्वर से कुछ माँगने, ऊँचे चढ़े पहाड़।
दूषित-मन लेकर गए, केवल तोड़े हाड़।।
820. बिम्ब
दया-प्रेम का बिम्ब ही, ईश्वर का प्रतिरूप।
दौड़ पडं़े सब उस दिशा, जहाँ खिली हो धूप।।
821. अनुराग
चैथेपन में बढ़ गई, प्रभु जी से अब आस।
द्वेष मोह सब भूलकर, ईश्वर के हैं दास।।
822. अनूप
झरने नदी पहाड़ से, लगती प्रकृति अनूप।
सदियों से मोहित करे, मानव को यह रूप।।
823. मनमोहक
मनमोहक छवि देखने, सहते ठंडक धूप।
मन को शांति कब मिली, भटके मंदिर-कूप।।
824. परस
मानव परिणय में बँधे, मूक-प्रणय संवाद।
दरस-परस से कर रहे, दुनिया को आबाद।।
825. परिणय
मंगल-परिणय की घड़ी, फिर आई इस वर्ष।
भगा करोना देश से, चहुँ दिश छाया हर्ष।।
826. प्रणय
प्रणय निवेदन कर रहा, मौसम फिर से आज।
समय पर्यटन भ्रमण का, चलो देखने ताज।।
827. प्रियतमा
स्वागत में अब पाँवड़े, बिछा रहे नित छोर।
सुंदर लगती प्रियतमा, उठती प्रेम हिलोर।।
828. प्रीति
प्रीति-डोर में बँध गए, जो कल थे अनजान।
हाथों में अब हाथ ले, चलते सीना तान।।
829. आँचल
बसें किसी भी देश में, शहर रहे या गाँव।
ममता का आँचल सदा, देता सबको छाँव।।
830. पीयूष
आँचल-ढक पीयूष से, देती जीवन दान।
करें मातृ की वंदना, वही बचाती जान।।
831. सैनिक
सैनिक फिर से चल दिए, पूछ न पाए हाल।
सैन्य-बुलावा आ गया, था संकट का काल।।
832. बुखार
अर्थ व्यवस्था देखकर, अरि को चढ़ा बुखार।
याचक बनकर है खड़ा, अब करना व्यापार।।
833. बीमार
कोरोना की मार से, हुआ विश्व बीमार।
साहस दृढ़ता धर्य से, उबरा अब बाजार।।
834. चोट
चोट लगी गहरी मगर, टूटा अरि का मोह।
घाटी में अब शांति है, खत्म हुआ विद्रोह।।
835. औषधि
कड़वी औषधि ही सही, करती है उपचार।
दवा समझ कर पीजिए, तन का मिटे विकार।।
836. उपचार
संकट जब हो देश पर, करना है उपकार।
राष्ट्रवाद की सोच से, हो जाता उपचार।।
837. संजीवनी
भेज रहे संजीवनी, यह भारत की शान।
फँसे हुए यूक्रेन में, छात्र न हों हैरान।।
838. पीड़ा
जननी की पीड़ा यही, पैदा किया सपूत।
कालांतर में फिर वही, डरवाते बन भूत।।
839. संवाद
कैसे हो संवाद अब, टूट गई हर आस।
लड़ने को आतुर दिखें, रहते हांे जब पास।।
840. मन्मथ
मन्मथ ने बिखरा रखी, चारों ओर बहार।
मुदित धरा भी देखती, उछले नदिया धार।।
841. दुकूल
मौसम ने ली करवटें, दमके टेसू फूल।
स्वागत सबका कर रहे, ओढ़े खड़े दुकूल।।
842. लंकापति
लंकापति के राज्य से, दुखी रहा संसार।
करके दर्शन राम का, जीवन से उद्धार।।
843. अलकें
अलकें छू कर गाल को, देतीं प्रिय संदेश।
धैर्य रखो प्राणेश्वरी, बदलेगा परिवेश।।
844. बिंदिया
अलकें बिंदिया चूमकर, करती है सम्मान।
नारी की महिमा बड़ी, करता जग गुणगान।।
845. आँखें
आँखें राह निहारतीं, प्रियतम की हर रोज।
दर्शन-कर फिर दीखता, मुख मंडल में ओज।।
846. व्यवहार
माँ की आँखें देखतीं, पुत्रों का व्यवहार।
नन्हें पैरों से घिसट, आते-पाने प्यार।।
847. अधर
अधर फड़कते रह गए, बुझी न दिल की प्यास।
सीमाओं पर चल दिए, जगा गए फिर आस।।
848. मुरली
मुरली साजे अधर में, सजती ब्रज की रास।
राधा-गोपी नाचतीं, छाता ज्यों मधुमास।।
849. निष्फल
निष्फल रहे प्रयास सब, नहीं सुधरते लोग।
सद्कर्माें से भटक कर, पाते दुख का भोग।।
850. कविता
कविता देती है सदा, नेक नियति संदेश।
तुलसी और कबीर ने, बदल दिया परिवेश।।
851. सारस्वत
ज्ञान तत्त्व जो बाँटता, फैलाता उजियार।
सारस्वत वह देवता, हरता कलुष विचार।।
852. प्रदर्शन
लोग प्रदर्शन कर रहे, भूल गए कत्र्तव्य।
अधिकारों के लिए ही, चाह रहे हैं हव्य।।
853. मकरंद
फूलों के मकरंद पर, भौंरे लिखते छंद।
बागों में गुंजन करें, गाते नित हैं बंद।।
854. पवन
पवन लटों से खेलता, उलझाता हर बार।
परेशान लट कह उठी, हमने मानी हार।।
855. सिहरन
पावस की बूँदें गिरीं, गोरी के जब गाल।
सिहरन तन-मन में हुई, जैसे मली गुलाल।।
856. उपहार
सजनी का साजन खड़ा, माँग रहा है प्यार।
गालों पर धर-अधर ने, दिया प्रेम उपहार।।
857. प्रेम
प्रेम बड़ा अनमोल है, भूला नहीं गरीब।
जीवन जीने की कला, दिल के बड़़े करीब।।
858. प्रतीक
अधरों ने छेड़ी गजल, दीपक प्रेम प्रतीक।
नयन शरम से झुक गए, दृश्य हुआ रमणीक।।
859. प्रतिबिंब
अपने ही प्रतिबिंब को, हुआ देख हैरान।
सज्जनता का रूप धर, हँसता है शैतान।।
860. प्रतीति
सुख-प्रतीति में जी रहे, नेताओं के संग।
उनकी ही हर बात पर, जग पर चढ़ता रंग।।
861. अवनि
सजी ओस की बूँद हैं, तरुवर तृण मकरंद।
हर्षित अवनि बिखेरती, मणि-मोती सानंद।।
862. अंबर
अंबर में है बैठकर, सूरज करता जाप।
अधरों की मुस्कान से, हर लेता संताप।।
863. पूस
पूस माह के दिवस सब, जाड़े की सौगात।
तन-मन को है नापती, करती सबको मात।।
864. अगहन
अगहन दस्तक दे रहा, ठंडी बहे बयार।
टँगी रजाई अरगनी, करती है मनुहार।।
865. फसल
फसल खड़ी है खेत में, चिंतित रहे किसान।
पके-कटे पैसा मिले, पहनें तब परिधान।।
866. नार
भारत की यह नार है, बाँध-पीठ में लाल।
कर्म भूमि या समर हो, नहीं झुका है भाल।।
867. मजदूरनी
मेहनतकश मजदूरनी, देती जग को मात।
ममता का भी ध्यान रख, भोजन दे दिन रात।।
868. वियोग
देशभक्त सेना प्रमुख, असमय हुआ वियोग।
सी डी यस रावत विपिन, दुखद रहा संयोग।।
869. ऋद्धांजलि
ऋद्धांजलि हम दे रहे, हाथ जोड़ कर आज।
रावत जी पर नाज है, किए देश हित काज।।
870. थरथर
काँप रहा थरथर बदन, बढ़ा ठंड का जोर।
शीत लहर ऐसी बही, हो जा अब तो भोर।।
871. मार्गशीर्ष
मार्गशीर्ष के माह में, होती श्रद्धा भक्ति।
भक्तगणों को मिल रही, इससे अद्भुत शक्ति।।
872. कंबल
कंबल ओढ़े सो गए, फिर भी कटे न रात।
ओढ़ रजाई बावले, बन जाएगी बात।।
873. ठंड
ठंड कड़ाके की पड़ी, घर में जले अलाव।
फिर भी भगती है नहीं, लगता बड़ा दुराव।।
874. ठिठुर
पारा गिरता जा रहा, ठिठुर रहे हैं लोग।
बदले मौसम को सभी, सुना रहे हैं भोग।।
875. अंगीठी
जली अंगीठी बीच में, दिल में जगी हिलोर।
समय गुजरता ही गया, देख हो गई भोर।।
876. आँच
आँच आग की तापते, नित्य श्रमिक मजदूर।
सड़क किनारे रह रहे, बेघर हैं मजदूर।।
877. कुनकुना
नीर कुनकुना पीजिए, ठंडी का है जोर।
स्वस्थ रहे तन-मन सभी, लगे सुहानी भोर।।
878. धूप
धूप, दीप नैवेद्य से, करते सब आराध्य।
भक्ति भाव से पूजते, पूजन के हैं साध्य।।
879. कुहासा
दुर्घटना से बच रहे, जीवन है अनमोल।
देख कुहासा सड़क पर, चालक बोले बोल।।
880. स्वेटर
स्वेटर बुनतीं नारियाँ, दिखे समर्पण भाव।
परिवारों के प्रति दिखे, उनका नेह लगाव।।
881. शाल
शाल उढ़ाकर अतिथि का, किया उचित सम्मान।
संस्कृति अपनी है यही, कहलाता भगवान।।
882. कंबल
ओढ़े कंबल चल दिए, कृषक और मजदूर।
कर्मजगत ही श्रेष्ठ है, नहीं रहा मजबूर।।
883. रजाई
ओढ़ रजाई खाट में, दादा जी का रंग।
सुना रहे हैं ठंड के, रोचक भरे प्रसंग।।
884. अंगीठी
बीच अंगीठी जब जले, वार्तालापी भाव।
मौसम के इस दौर में, बढ़ता बड़ा लगाव।।
885. पूस
पूस माह की ठंड यह, काँपें सबके हाड़।
सूरज की जब तपन हो, भागे तब ही जाड़।।
886. ठंड
जाड़े में ओले गिरें, बढ़ती जाती ठंड।
पट्टी में बैठा हुआ, भोग रहा है दंड।।
887. ऊन
ऊन लिए है हाथ में, रखी सिलाई पास।
माँ की ममता ने बुने, स्वेटर कुछ हैं खास।।
888. धूप
वर्षा ऋतु का आगमन, जंगल नाचें मोर।
देख धूप है झाँकती, मनभावन चितचोर।।
889. आँगन
आँगन में बैठे सभी, जला अंगीठी ताप।
दुख दर्दों को बाँटते, दिल को लेते नाप।।
890. शशि
शीतल-शशि की रश्मियाँ, जग को करें निहाल।
देती हैं संदेश यह, जीवन हो खुशहाल।।
891. आलोक
भारत को गौरव मिला, जग में हुआ महान।
बिखर गया आलोक अब, फिर पाया सम्मान।।
892. तारक
तारक जग के राम हैं, सबके पालनहार।
संकट में रक्षा करें, लगे न जीवन भार।।
893. भुवन
देव प्रभाकर भुवन में, बिखरा गए प्रकाश।
उठो बावले चल पड़ो, होते नहीं निराश।।
894. पुंज
ज्योति पुंज दीपावली, करे तिमिर का नाश।
विस्तारित होता रहे, खुशियों का आकाश।।
895. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत संदेश।
स्वस्थ निरोगी हांे सभी, बदलेगा परिवेश।।
896. विवेकानंद
युवा विवेकानंद ने, विश्व शांति पैगाम।
भारत की पहचान दे, किया अनोखा काम।।
897. श्वास
तन में जब तक श्वास है, जीवन की है आस।
जिस दिन हमसे रूठती, मृत्यु नाचती पास।।
898. अनुलोम
तन-योगी साधक बना, कर अनुलोम-विलोम।
हर्षित-मन जग में जिया, स्वस्थ निरोगी व्योम।।
899. प्राणायाम
करते प्राणयाम जो, होते स्वस्थ निरोग।
दीर्घ आयु होते तभी, बनते सभी सुयोग।।
900. मंजरी
मातु यशोदा मथ रही, मथनी से पय सार।
लटकी जो मंजीर है, बजती बारम्बार।।