बरसो मेघा ठंडक लाओ
झुकी कमर जबसे है अपनी
मेरी कविता आस्था-सम्बल
लालकिले पर खड़ा तिरंगा
बंधन में जी लिया बहुत ही
सुचिता की बस बातें होतीं
आल्हा छंद
श्रीनगर के लाल चौक पर