मेरी कविता आस्था-सम्बल.....
मेरी कविता आस्था-सम्बल,
उससे सुख-दुख कह पाया।
साथ रही है हरदम मेरे,
उसका साथ मुझे भाया।
बढ़ा तमस जब भी जीवन में,
हटा दिया उसने घेरा।
राह दिखाई है मंजिल की,
मुझको मिला सही डेरा
निर्भय चला राह मैं अपनी,
भय का नहीं दिखा साया ।
मेरी कविता आस्था सम्बल,
उससे सुख-दुख कह पाया।
जीवन में तूफानों ने भी ,
रोड़े पथ में अटकाए।
अटके-भटके राहगीर सा,
फिर भी घर चल कर आए।
मुझको मिली प्रेरणा ऐसी ,
कर्म-मार्ग ही बतलाया।
मेरी कविता आस्था सम्बल,
उससे सुख-दुख कह पाया।
भावों की नदिया ही बहती ,
करुणा दिल में है बसती ।
शब्दों के ताने-बाने बुन ,
कल-कल वह बहती रहती ।
प्रेम-शांति की खरी कसौटी,
मानवता की है छाया ।
मेरी कविता आस्था सम्बल,
उससे सुख-दुख कह पाया।
कविता करूँ समर्पित उनको,
जो मेरे आदर्श रहे। 14
जीवन की उलझी राहों में,
दुख-दर्दों से भिज्ञ रहे।14
राह दिखाती नेक सदा ही ,
कभी न इसने भटकाया ।
मेरी कविता आस्था सम्बल,
उससे सुख-दुख कह पाया।
साथ रही है हरदम मेरे,
उसका साथ मुझे भाया।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’