दोहे मनोज के: भाग - 1
1. प्रार्थना
गणपति जी से प्रार्थना, विजयकीर्ति सम्मान।
बुद्धि ज्ञान विज्ञान में, भारत हो धनवान।।
2. वंदना
सरस्वती से वंदना, भरें ज्ञान भंडार।
अंतर्मन दीपक जले, भाव शब्द सुविचार।।
3. प्रतिज्ञा
करें प्रतिज्ञ हम सभी, चलें नेक सब राह।
होता शुभ जीवन सफल,मिट जाते हैं दाह।।
4. पुरुषार्थ
मानव का पुरुषार्थ ही, आता है कुछ काम।
अकर्मण्य जो भी रहे, गुम जाता है नाम।।
5. अनिरुद्ध
सारा जग यह जानता, भारत है अनिरुद्ध।
पाक सदा ही हारता, कब जीता है युद्ध।।
6. इतिहास
मन में चाहत हो अगर, बन जाता इतिहास।
नव भारत की शक्ति में,सबका दृढ़ विश्वास।।
7. आजादी
आजादी के शब्द का, पहले समझें अर्थ।
कर्तव्यों का बोध हो, भटकें कभी न व्यर्थ।।
8. राष्ट्र
राष्ट्र हितों को भूल कर, निज-हित की भरमार।
आज चलन यह भा रहा, हुआ देश पर भार।।
9. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, जिसको देखो आज।
कम कीमत जो आँकते, झूठा करते नाज।।
10. आन
भारत माँ की छवि बसी, मनमोहक मुस्कान।
बेटों का कर्तव्य है, करें सभी सम्मान।।
11. मानस
मानस की चैपाइयाँ, सामंजस्य प्रतीक।
जीवन का आधार हैं, स्वप्न सजें रमणीक।।
12. फूल
बासंती ऋतु का हुआ, स्वागत फिर अनुकूल।
बाग-बगीचों में खिलें, सेवंती के फूल।।
13. सूरज
सूरज ने पहुँचा दिया, जाड़े को संदेश।
ऋतु परिवर्तन हो रहा, होगा ग्रीष्म प्रवेश।।
14. उन्वान
देश प्रेम उन्वान में, डूबा भारत देश।
संकट के बादल छटे, मिट जाएँगे क्लेश।।
15. पहचान
संकट में विजयी हुआ, बढ़ा जगत में मान।
कोविड की वैक्सीन से, भारत की पहचान।।
16. गौरव
भारत का गौरव बना, संविधान-गणतंत्र।
सभी प्रतीक्षा कर रहे, निखरेगा जब यंत्र।।
17. माटी
राम, कृष्ण, गौतम, शिवा, महावीर की शान।
माटी अपने देश की, जग में हुई महान।।
18. अस्मिता
देश-अस्मिता भूलकर, खुद को कहें महान।
दुश्मन हैं वे देश के, सावधान -पहचान।।
19. जागरण
बजे जागरण शंख अब, मानव हित हों काम।
सजग रहे जनता सभी, उन्न्ति हो अविराम।।
20. संकीर्ण
जीवन जीना हो सुखद, करें उचित व्यवहार।
सोच अगर संकीर्ण तब, दिल भी ढोता भार।।
21. पुरुषार्थ
पुरुषार्थ में ही छिपा, उन्नति का पैगाम।
करो अनोखा काम कुछ, होगा रोशन नाम।।
22. चुनाव
भला-बुरा रख सामने, करते सभी चुनाव।
अपना बुरा न चाहता, सबका यही स्वभाव।।
23. शोषण
शोषक, शोषण ही करे, कुत्ते जैसी पूँछ।
कभी न सीधी हो सकी, खूब उमेठी मूँछ।।
24. जनता
जनता की फरियाद जो, करते नजरंदाज।
पाँच साल के बाद फिर, छिन जाता है ताज।।
25. सौरभ
बिखराते सौरभ सदा, चढ़ा सुमन प्रभु शीश।
भक्तों की हर कामना, करें द्वारकाधीश।।
26. अदालत
काम अदालत का यही, मिले सभी को न्याय।
शोषित-शोषण के सभी, हट जाएँ अध्याय।।
27. संविधान
न्यायालय हर देश के, बने हुए हैं प्राण।
संविधान रक्षक यही, शोषित-जन के त्राण।।
28. किसान
अनपढ़ रहें किसान जब, शोषण की भरमार।
ठग दलाल ठगते सदा, संरक्षण दरकार।।
29. शूल
कल-कल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तन-मन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
30. सरकार
लोकतंत्र में वोट से, बनती हैं सरकार।
संविधान देता सदा, जन प्रतिनिधि अधिकार।।
31. पूँजीपति
पूँजीपति भी देश के, बने उन्नयन - प्राण।
उचित नियंत्रण जब रहे, तभी देश कल्याण।।
32. राजनीति
राजनीति देने लगी, अब तो गहरे धाव।
स्वस्थ नजरिया हो अगर, लगे किनारे नाव।।
33. दल-दल
कितने दल दल-दल बने, चलें स्वार्थ की लीक।
अंतर्मन कब झाँकते, मौन मलिन सब ठीक।।
34. युद्ध
द्वंद्व-युद्ध है चल रहा, सही बुरे के बीच।
साम,दाम अरु दंड बिच, जनता बनी दधीच।।
35. अलबेली
दुनिया अलबेली बनी, जिसमें छल, बल, खार।
हँसकर जीवन को जिएँ, सुख-दुख की भरमार।।
36. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध रहें सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
37. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
38. छलिया
काली करतूतें बढ़ीं, जागो हे ! भगवान ।
छलिया बनकर छल रहे, कुछ ढोंगी इंसान।।
39. पूँछ
पूँछ रही हनुमान की, राक्षस करें बवाल।
रावण की लंका जली, आसन रचा कमाल।।
40. तुलसी
भारत का अनमोल है, तुलसी-मानस ग्रंथ।
मानव उस पथ पर चले, कभी न भटके पंथ।।
41. पिंजरा
पिंजरा में पंछी जिए, अपने पंख समेट।
कैदी-जीवन काटता, स्वजनों से कब भेंट।।
42. श्रेय
पवनपुत्र हनुमान ने, बड़े किए हर काम।
अभिमानी का दमन कर, श्रेय दिया श्रीराम।।
43. जाड़ा
जाड़ा लगे गरीब को, थर-थर काँपें अंग।
गुदड़ी में सोया रहे, या अलाव के संग।।
44. अवसान
हुआ तिमिर अवसान है, आया नया प्रभात।
सुख के दिन अब आ गए, बीती काली रात।।
45. मानसरोवर
मानसरोवर में बसे, शिव को आया रास।
राजहंस विचरण करें, परमानंद निवास।।
46. क्षितिज
विश्व क्षितिज में छा गए, संत विवेकानंद।
तीस वर्ष की आयु में, भारत का आनंद।।
47. प्रयाण
जग से पूर्व-प्रयाण पर, करें बड़ा ही काम।
यही काम अमरत्वता, बनवा देता धाम।।
48. विक्षिप्त
दिल में लगती चोट जब, सहना हो दुश्वार।
घायल मन विक्षिप्त हो, रोता बारम्बार।।
49. चमत्कार
चमत्कार को देखकर, मानव होते दंग।
आस्था अरु विश्वास का, उन पर चढ़ता रंग।।
50. सदगति
सद्गति है सत्कर्म से, करें नेक ही काम।
लोक और परलोक में, हो जाता तब नाम।।
51. मोह
लोभ, मोह, आसक्ति सब, मानव के हैं दोष।
इनसे बचकर ही चलें, कभी न छाता रोष।।
52. अमंगल
कभी अमंगल मत करें, रखिए अच्छी सोच।
मंगल ही मंगल रहे, नहीं रहे संकोच।।
53. कुमार्ग
सही मार्ग पर ही चलें, मंजिल पहुंँचें आप।
जो चल पड़े कुमार्ग में, झेल रहे अभिशाप।।
54. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
55. उत्कर्ष
जीवन में संघर्ष से, होता है उत्कर्ष।
कार्यसिध्दि मिलती सहज, मन में होता हर्ष।।
56. संज्ञान
मोदी के संज्ञान में, हर संकट का भान।
निराकरण में हैं जुटे, बनी विश्व पहचान।।
57. विश्राम
कर्मठ मानव के लिए, दिन हो चाहे रात।
कभी नहीं विश्राम है, जग में करें प्रभात।।
58. मर्यादा
मर्यादा में सब रहें, यही मंत्र है नेक।
लक्ष्मण-रेखा है खिंची, संकट हटें अनेक।।
59. वरदान
कोरोना के काल में, वैकसीन वरदान ।
भारत में निर्माण से, बढ़ी जगत में शान।।
60. संरचना
संरचना परिवार की, मिलजुल रहना साथ।
सुख-दुख आपस में बटें, कुशल चितेरे हाथ।।
61. भरोसा
करें भरोसा ईश पर, कर्म करें नित आप।
सभी कार्य होंगे सफल, मिट जाएँ संताप।।
62. उमंग
मन में भरें उमंग को, जीवन है सौगात।
छोटी सी है जिंदगी, व्यर्थ फिरे बौरात।।
63. जिज्ञासा
जिज्ञासा मन में रखें, बने सभी गुणवान।
पीढ़ी दर पीढ़ी चले, इससे बढ़ता ज्ञान।।
64. स्वाद
प्रभु ने जिह्वा को दिया, जिससे मिलता स्वाद।
तृप्ति बोध होता सदा, ब्रह्म ग्रंथि का नाद।।
65. हर्षित
हर्षित वातावरण से, हट जाता मन-भार।
जीवन खुशियों से भरा,तन-मन हो गुलजार।।
66. समास
दो शब्दों में अर्थ को, व्यापक करे समास।
सुनते ही हम जल्द से, सहज करें आभास।।
67. सोच
सोच समझकर बोलते, ज्ञानी अपनी बात।
अज्ञानी हर बात पर, खाते रहते मात।।
68. सेवा
सेवा फल मीठा रहे, प्रभु देते हैं साथ।
दीन दुखी की तृप्ति से, ऊँचा होता माथ।।
69. समय
समय बड़ा बलवान है, पल में देता मात।
किसकी किस्मत कब फिरे, किस घर करे प्रभात।।
70. सुरसा
महँगाई सुरसा हुई, मचा रखा उत्पात।
बलशाली हनुमत कृपा, निश्चित देंगे मात।।
71. घनश्याम
श्याम देह घनश्याम की, गोरी राधा संग।
दोनों में बस प्रेम का, छाया चोखा रंग।।
72. उपालम्भ (उलाहना)
उपालम्भ सुनते सदा, मातु यशोदा, नंद।
दधि माखन चोरी करे, करे सभी से द्वंद्व।।
73. संदेश
देश-प्रेम संदेश का, सभी करें सम्मान।
इसमें हित सबका निहित, बढ़ती जग में शान।।
74. गोपी
ग्वाल-बाल, गोपी रहे, द्वापर में ब्रज धाम।
बाल-सखा उनके रहे, जगत पिता घनश्याम।।
75. बाँसुरी
मुरलीधर की बाँसुरी, छेड़े मधुरिम तान।
तन-मन सम्मोहित करे, करती कष्ट निदान।।
76. अंतःकरण
मानव का अंतःकरण, करता सदा सचेत।
ज्ञानी जन सुनते सभी, रक्षित करें निकेत।।
77. शेर
सीमा पर चैकस रहें, प्रहरी दिन हो रात।
भारत मांँ के शेर हैं, दुश्मन को दें मात।।
78. सौजन्य
जब मिलते सौजन्य से, बढ़ जाता अनुराग।
मिले हाथ से हाथ जब, मतभेदों को त्याग।।
79. चित्र
चित्र उकेरो हृदय में, प्रभु का कर गुणगान।
वही सदा रक्षा करें, वही करें कल्यान।।
80. संगम
सेवा कर मांँ-बाप की, कुछ हो जाते धन्य।
संगम में डुबकी लगा, लूट रहे कुछ पुण्य।।
81. कलियुग
कलियुग के इस दौर में, कब होती नित भोर।
छल प्रपंच के जोर से, घिरा तमस चहुँ ओर।।
82. निराहार
निराहार जप-तप करें, इसका बड़ा महत्त्व।
निर्मल तन-मन से सधें, पूजन का अभिसत्त्व।।
83. पारस
नैतिकता जबसे गुमी, लोग बजाते बीन।
पारस मणि है खो गयी, कैसे बदले सीन।।
84. वैतरणी
तन-मन में शुचिता रहे, कलियुग का विश्वास।
यह वैतरणी पार हो, जब तक तन में श्वांस।।
85. बियाबान
जीव-जंतु बेहाल हैं, ढूँढ़ें सरिता-कूप।
बियाबान जंगल हुए, प्रकृति बदलती रूप।।
86. हलधर
हलधर श्री बलराम ने, देख-कृष्ण की ओर।
अब फिर से पकड़ा गया, क्यों रे माखन चोर।।
87. आंदोलन
आंदोलन कर सड़क को, बाधित करते लोग।
पथिक सभी अब कोसते, फैला कैसा रोग।।
88. उद्योग
दौर चला षड्यंत्र का, टाँग खींचते लोग।
ईश्वर खड़ा निहारता, कैसा यह उद्योग।।
89. अनमोल
देश, प्रेम अरु एकता, तीनों हैं अनमोल।
राष्ट्र सुरक्षा के लिए, इससे बड़ा न बोल।।
90. हिमालय
सदियों से अविचल खड़ा, श्वेत-कांत चितचोर।
तुंग हिमालय देखता, दुश्मन की ही ओर।।
91. उद्योग
मानव ने उद्योग कर, किए अनोखे काम।
यंत्रों का निर्माण कर, पाए नये मुकाम।।
92. परिधान
तन सजता परिधान से, बसे सभी की आंँख।
बगिया जन मन मोहती, लदे फूल से शाख।।
93. परिणाम
लोभ, मोह, विद्वेष छल, बुरे रहें परिणाम।
पास न इनके जाइए, हृदय बसेंगे राम।।
94. लक्ष्य
लक्ष्य साध कर जो बढ़े, मिले सफलता नेक।
दिशा हीनता में फंँसा, भटके राह अनेक।।
95. अनाथ
मात-पिता का साथ ही, आशीषों के द्वार।
विदा हुए जग से तभी, पड़े उठाना भार।।
96. देव
त्यागें जो माता-पिता, देव न देते साथ।
कुपित न इनको कीजिए, होगे नहीं अनाथ।।
97. अगहन
अगहन ने दस्तक दिया, हुआ शीत का जोर।
सूरज की किरणें लगें, मनभावन, चितचोर।।
98. आकाश
श्रम मानव का शौर्य है, खुला हुआ आकाश।
जितने पर फैला सको, उतना रहे प्रकाश ।।
99. अलाव
ठिठुरन कितनी भी रहे, अंदर जले अलाव।
आशाओं की ताप से, भरते जल्दी घाव।।
100. सागर
सागर से भयभीत सब, डगमग चलती नाव।
पर मानव का हौसला, भर देता हर घाव।।
101. कविता
कवि ने दिया समाज को, नव-चिंतन उपहार।
भावपूर्ण कविता लिखी, मन-दर्पण उद्गार।।
102. कामिनी
नव पल्लव, सी कामिनी, नारी की है देह।
जीवन की मधु यामिनी, प्रेम-प्रीत का गेह।।
103. खंजन
खंजन नयन चकोर है, चितवन करे धमाल।
रात चंद्रमा को तके, उस पर हुआ निहाल।।
104. कोकिला
कुहू-कुहू कर कोकिला, गाती मंगल गान।
स्वर लहरी में डूब कर, सबका खींचे ध्यान।।
105. सदाचार
सदाचार का पाठ ही, देता जग संदेश।
चरित्रवान जीवन जिएँ, सबके मिटते क्लेश।।
106. संकल्प
देश-भक्ति संकल्प लें, भारत के सब लोग।
उन्नति के घर में पहुँच, खाएँ छप्पन भोग।।
107. शुभकामना
संतति को शुभकामना, रहें सभी खुशहाल।
हर संकट टल जाऐंगे, बीतेगा दुष्काल।।
108. छाँव
मात-पिता की छांँव में, चहुँदिश था उल्लास।
बिछुड़ गए हमसे तभी, हम हैं बड़े उदास।।
109. बसंत
ऋतु बसंत फिर आ रही, लेकर के सौगात।
होली की फिर मस्तियांँ, रंगों की बरसात।।
110. मंत्र
मंत्र सफलता का यही, कर्म साधना योग।
विमुख रहे जो कर्म से, मांँगे मिले न भोग।।
111. सुरभि
प्रेम-सुरभि जग में भली, घर-घर बिखरे नेह।
अहंकार को त्यागिए, नश्वर है यह देह।।
112. कलेवर
वैक्सीन अब मिल गई, बीती काली रात।
नए कलेवर में जिएँ, होगा नया प्रभात।।
113. सविता
सविता ने झाँका विहँस, बिखराई नव भोर।
जड़-चेतन सब जग उठे, मन में नाचे मोर।।
114. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष में छा गया, भारत का परिवेश।
कर्मठता ने दे दिया, जग को शुभ-संदेश।।
115. परिवेश
विश्व गुरू भारत बना, जग को है संदेश।
खुशियों की झोली भरें, तब बदले परिवेश।।
116. गरीबी
देख गरीबी रो पड़े, गोकुल के घनश्याम।
मित्र सुदामा को दिया, नगर सुदामा-धाम।।
117. दंभ
नेताओं में दंभ का, बढ़ा अनोखा रोग।
विनय भाव भूले सभी, सत्ता मद का योग।।
118. मुद्रा
मुद्रा के भंडार से, देश बने संपन्न।
कर्मशीलता से सभी, रहते नहीं विपन्न।।
119. गीता
गीता का उपदेश है, रखें कर्म पर ध्यान।
फल की इच्छा छोड़ दें, यही बड़ा है ज्ञान।।
120. पुनीत
मास्क लगाकर ही रहें, सबके लिए पुनीत।
कोरोना के काल में, क्यों होते भयभीत।।
121. माँ
माँ ममता की छाँव है, माँ का रूप अनूप।
संतानों को पालती, रंक रहे या भूप।।
122. ममता
मांँ की ममता है बड़ी, जिसका कभी न मोल।
सुख सुविधा कब मांँगती, चाहे मीठे बोल।।
123. शिक्षा
नैतिक शिक्षा है बड़ी, इस जग में अनमोल।
जीवन को सुखमय रखे, मार्ग प्रगति के खोल।।
124. सूर्याेदय
सूर्याेदय की रश्मियाँ, भर देतीं उत्साह।
सभी कर्म की राह में, चलते बेपरवाह।।
125. निर्माण
शिक्षा का उद्देश्य ही, मूल्यों का निर्माण।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, हो सबका कल्याण।।
126. अनदेखी
अनदेखी जो कर रहे, जनता की फरियाद।
उनसे सत्ता छीन कर, कर देती बर्बाद।।
127. तिमिर
ज्ञानवान अज्ञान का, करता है उपचार।
दूर भगाता तिमिर को, फैलाता उजियार।।
128. ज्योतिर्मान
दीवाली की रात में, दीपक-ज्योतिर्मान।
रात अमावस की छटे, दीपक का अभियान।।
129. सूरज
सूरज नित ही ऊगता, देता है संदेश।
कर्म करें नित ही सभी, मिट जाएँगे क्लेश।।
130. बिजली
वैज्ञानिक इस सदी में, बिजली का उपयोग।
इसके बिन जीवन कठिन, करें सभी उपभोग।।
131. प्रमाद
नेताओं को है लगा, बस सत्ता का स्वाद।
कुर्सी पाते ही चढ़े, उनको गजब प्रमाद।।
132. रंक
राजा, रंक, फकीर का, लिखा गया है भाग्य।
जितने दिन जीवन मिले, यह उसका सौभाग्य।।
133. विचित्र
है विचित्र जनतंत्र में, जनहित का विश्वास।
भ्रष्टाचारी लिख रहे, एक नया इतिहास।।
134. शालीन
रावण के वंशज बढ़े, कैसी होगी भोर।
राम खड़े शालीन हैं, तिमिर बढ़ा चहुँ ओर।।
135. खेल
खेल रहा दानव अभी, लुका छुपी का खेल।
मानव पर संकट बढ़ा, कर ले ईश्वर मेल।।
136. दीपक
दीपक का संदेश है, दिल में भरें उजास।
घोर तिमिर का नाश हो, कोई हो न उदास।।
137. आलोक
सूरज का आलोक ही, भर देता संदेश।
कर्म सभी अपना करें, तो बदले परिवेश।।
138. उजास
घोर अमावस रात में, दीपक करे उजास।
जीवन का तम दूरकर, भरता है उल्लास।।
139. सौहार्द
मानवता का भाव ही, मानव पर उपकार।
मानव में सौहार्द हो, स्नेह प्रेम सत्कार।।
140. दीवाली
रामलला मंदिर बना, हर्षित हुआ समाज।
हर घर दीवाली मने, सुख का हो अब राज।।
141. सूर्य
सारे जग में सूर्य ही, निर्भय करे प्रकाश।
भोर करे नित धरा में, फिर निखरे आकाश।।
142. देहरी
बीच देहरी बैठकर, किया पाप का अंत।
बचा भक्त प्रहलाद को, बना दिया भगवंत।।
143. अटारी
बड़ी अटारी पर खड़ा, नेताओं का दम्भ।
जनता बेबस है खड़ी, आश्वासन है खम्भ।।
144. गंगा घाट
डुबकी गंगा घाट की, क्या कर देगी माफ।
मुख दमके इंसान का, कर्म करे जो साफ।।
145. पर्ण कुटी
पर्ण कुटी में शांति है, जप ले सीताराम।
महलों में रहकर कभी, नहीं मिले आराम।।
146. जुलाहा
तन पर कपड़े पहनना, गया जुलाहा भूल।
उसने धागे से बुना, अपने दिल का शूल।।
147. शांत
शांत सौम्य रघुकुल तिलक,त्रेता के श्री राम।
आदर्शों के प्राणधन, मर्यादा के धाम।।
148. वेदना
छद्म वेष धरकर करें, देश-प्रेम की बात।
मन में होती वेदना, राष्ट्र-कुठारा घात।।
149. कारावास
द्वापर युग अवतार ले, जन्में कारावास।
दुष्टों का संहार कर, बना गए इतिहास।।
150. बुद्ध
राजपाट सब त्याग कर, बन वैरागी शुद्ध।
तांडव-हिंसा देखकर, बन गए गौतम बुद्ध।।
151. उमंग
फागुन की रँगरेलियाँ, मन में भरे उमंग।
ले ढपली फिर हाथ में, सभी बजावें चंग।।
152. बाल्मीकि
बालमीकि भटके बहुत, तब उपजा है ज्ञान।
रामायण सदग्रंथ रच, बनी सुखद पहचान।।
153. मनुज
देव मनुज दानव सभी, ऋषि कश्यप संतान।
संस्कार के बीज से, अलग- अलग पहचान।।
154. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
155. लिप्सा
राम गए वनवास को, पद लिप्सा को छोड़।
जन मानस में बस गए, आया तब शुभ मोड़।।
156. आयु
जीने की यह लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, कोई बचा न संत।।
157. मोर
मोर बना जब बावला, देख प्रकृति का रूप।
झूम-झूम कर नाचता, लगता बड़ा अनूप।।
158. परिवार
भारत में परिवार का, सदियों का इतिहास।
रिश्ते-नातों में बसा, जीवन का मधुमास।।
159. संसार
यह संसार विचित्र है, भिन्न-भिन्न हैं भोग।
रहन-सहन, जीवन-मरण, भाँति-भांँति के लोग।।
160. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना सुख संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से ही प्यार।।
161. अंतरंग
सभी पड़ौसी से रखें, अंतरंग संबंध।
शांति और सदभाव से, बहती सुखद सुगंध।।
162. अभिव्यक्ति
प्रजातंत्र अभिव्यक्ति का, चला अनोखा दौर।
चाहे जो कुछ बोलना, मचा गजब का शोर।
163. वार्ता
वार्ता से ही सुलझते, समस्याओं के हल।
ठुकराएँ प्रस्ताव जब, मिले कहाँ से फल।।
164. हल्दी
बसंत पंचमी पर्व पर, फैली सरसों पीत।
हल्दी कुमकम को लगा, गाए सबने गीत।।
165. अर्पण
कविताएँ अर्पण सभी, सरस्वती के नाम।
ऐसी बुद्धि, विवेक दें, करें जगत हित काम।।
166. शैल पुत्री
प्रथम दिवस नवरात्रि का, सजे सती दरबार।
मातु शैलपुत्री बनीं, भोले-शिव का हार।।
167. श्रद्धा
पुण्य पर्व नवरात्रि का, श्रद्धा-जप का योग।
माँ की पूजा-अर्चना, भग जाते हैं रोग।।
168. नववर्ष
संवत्सर नववर्ष यह, खुशियों का आगाज।
हिन्दू संस्कृति का सुभग, नव-प्रभात शुभकाज।।
169. कोरोना
कोरोना को रोकना, हम सब का कत्र्तव्य।
मानवता रक्षित रहे, मंगलकारी हव्य।।
170. भारत माता
भारत माता देखती, उन पूतों की ओर।
जिनसे भारत देश में, खिले सुनहरी भोर।।
171. मित्र
मित्र वही है आपका, जो बनता निस्वार्थ।
दोष देख कर टोंकता, बन जाता है पार्थ।।
172. धर्म
धर्म कभी करता नहीं, भेद भाव अपमान।
पाखंडी खुद रूप धर, बन जाते भगवान।।
173. दर्पण
दर्पण जब हो सामने, करता सच उजियार।
झूठ नहीं वह बोलता, बदलो रूप हजार ।।
174. परिवार
टूट रही परिवार से, मात-पिता की डोर।
वृद्धाश्रम में रख रहे, नवयुग की यह भोर।।
175. शहीद
जो शहीद हो गए हैं, सीमाओं पर वीर।
हम सबका कत्र्तव्य है, बदलें घर-तकदीर।।
176. रक्तबीज
सूक्ष्म जीव का वायरस, रक्तबीज धर रूप।
कलयुग का दानव यही, डरते मानव-भूप।।
177. भारत
पूज्यनीय भारत रहा, देवों का यह धाम।
राम कृष्ण गौतम यहाँ, महावीर से नाम।।
178. भारतवंशी
देश-विदेशों में बसे, भारतवंशी लोग।
हृदय सभी का मोहते, करते सब सहयोग।।
179. विश्व
विश्व पटल पर छा गई, हिंदी देखो आज।
मोदी जी ने रख दिया, भारत के सिर ताज।।
180. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
181. संकट
संकट का जब दौर हो, लें विवेक से काम।
घबराएँ बिल्कुल नहीं, करें काम निष्काम।।
182. धैर्य
कार्य कठिन होते नहीं, जप लें प्रभु का नाम।
संकट हो जब आप पर, करें धैर्य रख काम।।
183. गेह
गेह सभी हैं चाहते, जीव जन्तु अरु लोग।
जहाँ सदा मिलता रहे, स्वजनों का सहयोग।।
184. मातृभूमि
मातृ भूमि की चाहना, मानव मन का भाव।
जो इसके विपरीत हैं, करते वही छलाव।।
185. निदान
संकट हो जब देश में, मिल-जुल करें निदान।
हों सकुशल मानव सभी, राह तभी आसान।।
186. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हो रहे काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
187. कत्र्तव्य
शासन का कत्र्तव्य है, हों विकास के काम।
देश हितों को घ्यान रख, मिले सुयश परिणाम।।
188. दस्यु
दस्यु समस्या अब नहीं, उसने बदला रूप।
अब गुंडों के वेश में, कुछ दिखते प्रतिरूप।।
189. भूकंप
जबलपूर भूकंप से, काँप चुका हर बार।
आज तलक भूले नहीं, उजड़े थे घर द्वार।।
190. कुटिया
कुटिया एक गरीब की, होती महल समान।
शाम ढले विश्राम कर, भोर-हुए बलवान।।
191. चैपाल
गाँवों की चैपाल में, जमता जब रस रंग।
झूम-झूम कर नाचते, हो जाते सब दंग।।
192. नवतपा
जेठ माह में नवतपा, बरसाता अंगार।
सड़कें सब वीरान सी, घर तब कारागार।।
193. पीर
मजदूरों की पीर को, पढ़ न सकी सरकार।
पैदल ही वे चल पड़े, स्वजनों की दरकार।।
194. साकेत
रामजन्म की आस्था, जन्मभूमि साकेत।
सबकी है यह चाहना, सुंदर बने निकेत।।
195. वाटिका
पुष्प वाटिका जनक की, बनी प्रेम की धाम।
जहाँ नेह की डोर से, बँधे स्वयं श्री राम।।
196. सरस
सरस सरल कविता लिखें, मिले सभी की दाद।
क्लिष्ट शब्द उसमें रखें, किसे रहे फिर याद।।
197. अनुदित
भाषा-भावों से परे, अनुदित हैं श्री राम।
मन मंदिर में जब रहें,बने हृदय सुख-धाम।।
198. बाँसुरी
द्वापर युग के कृष्ण की, बजे बाँसुरी आज।
हर मन की चाहत यही, सजे वही सुर साज।।
199. बेकल
अपने घर में बंद सब, कोरोना का राज।
मानव-मन बेकल हुआ, संकट छाया आज।।
200. समीर
वृक्ष सदा देते हवा, बहता मंद समीर।
जंगल में हर जीव को, मिलता निर्मल नीर।।
201. नीर
हरी-भरी वन सम्पदा, सुरभित बहे समीर।
जल स्तर घटता नहीं, निर्मल मिलता नीर।।
202. सागौन
धरा-अधर उंँगली धरे, कटा हरा सागौन।
निर्मम हत्या हो रही, सरकारें हैं मौन।।
203. संदेश
भारत का संदेश अब, गढ़ना नया समाज।
देश तरक्की पर बढ़े, होगा सिर पर ताज।।
204. प्राणवायु
प्राणवायु मिलती रहे, हो नित सुखद प्रभात।
जीवन में तब सजेगी, खुशियों की बारात।।
205. सर्जक
सर्जक बने समाज यह, गुणीजनों की खान।
हर विकास के पथ गढ़ें, सृजनशील गुणवान।।
206. अवगाहन
हर मन अवगाहन करे, मानवता की सोच।
दुष्ट भाव मन से भगें, कभी न आए मोच।।
207. अरिहंत
मन का अरि-मर्दन करे, कहलाता अरिहंत।
सच्चा मानव तब वही, बन जाता भगवंत।।
208. वैतरणी
वैतरणी के पार की, सबकी होती चाह।
सही राह पर ही चलें, सरल सहज है राह।।
209. सरोज
मुस्काता है कीच से, उठकर फूल सरोज।
लक्ष्मी को भाता वही, भक्त चढ़ाते रोज।।
210. जलधर
जलधर, नभचर, चर-अचर, होती सब में जान।
जन्म-मरण के खेल में, तजना पड़ते प्रान।।
211. संवाद
रिश्तों में मधु-चासनी, रहे सदा भरपूर।
बंद हुए संवाद जब, अपनों से फिर दूर।।
212. पेट
पेट कर्म की प्रेरणा, इसका बड़ा महत्त्व।
सब करते हैं साधना, यह जीवन का तत्त्व।।
213. पीठ
पेट पीठ से जब मिले, भूख करे अल्सेट।
दोनों में दूरी बढ़े, तृप्त रहे तब पेट।।
214. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
215. आशाएँ
आशाएंँ मन में जगें, फैलातीं उजियार।
विजयी होते हैं वही, रचता सुख संसार।।
216. उजियार
ज्ञानी अपने ज्ञान से, बिखराता उजियार।
अज्ञानी जग का सदा, करता बंटाढार।।
217. नेपथ्य
गूँज रही नेपथ्य से, खतरे की आवाज।
घर में ही अब बैठकर, सुख का पहनें ताज।।
218. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
219. चंचलता
चंचलता मन में बसे, उस पर लगे लगाम।
जिसने वश में कर लिया, होता जग में नाम।।
220. नैतिकता
मानव ने यदि पढ़ा हो, नैतिकता का पाठ।
दिशा-हीनता रोकती, बढ़ जाते तब ठाठ।।
221. संस्कारों
नैतिकता की धूप से, नींव करें मजबूत।
सदाचार की राह से, भग जाएँगे भूत।।
222. मादकता
रीझ गया मानव अगर, मादकता की ओर।
जीवन में भटका वही, मुश्किल होती भोर।।
223. यौवन
यौवन में रहता सदा, मस्ती से गठजोड़।
प्रौढ़ अवस्था में तभी, आ जाता नव मोड़।।
224. मौलिकता
मौलिकता कृतिकार को, दिलवाती पहचान।
लोगों के दिल पहुँच कर, पाता वह सम्मान।।
225. लोलुपता
धन की लोलुपता बढ़ी, जग में चारों ओर।
नैतिकता को छोड़कर, बनें सुसज्जन चोर।।
226. आलोक
सत्त्कर्मों की राह में, मिलता कभी न शोक।
दिव्य शक्ति का आगमन, बिखराता आलोक।।
227. भागीरथी
भागीरथी प्रयास कर, भारत बना महान।
सभी समस्या खत्म कर, जीता सीना तान।।
228. पाखंडी
पाखंडी धरने लगे, साधु संत का रूप।
पोल खुली जब सामने, मुखड़ा दिखा कुरूप।।
229. वर्तिका
जली वर्तिका दीप की, बिखरा गया उजास।
तिमिर भगा जग से सभी, जगी हृदय में आस।।
230. कुंजी
श्रम की कुंजी है सही, खुलें प्रगति के द्वार।
कभी न जीवन में मिले, कर्मवीर को हार।।
231. परिमल
परिमल की बिखरे महक, हो जाता शृंगार।
प्रेम बसे मन आँगना, खुलें हृदय के द्वार।।
232. उपवास
रोटी नहीं नसीब में, पेट करे उपवास।
हर गरीब का बस यही, छोटा सा इतिहास।।
233. फसल
फसल पके जब खेत में, ताके-खड़ा किसान।
चिंता उसकी है यही, कटे- रखें खलिहान।।
234. कंचन
कंचन दाने देखकर, खुशी कृषक परिवार।
उचित दाम वह पा सके, जीवन बेड़ा पार।।
235. खेत
लहराती हर खेत में, उम्मीदों की आस।
स्वर्णमयी बालें हुईं, खुशियाँ आईं पास।।
236. माटी
माटी जग अनमोल है, वही कराती मेल।
माटी से उपजे फसल, माटी का ही खेल।।
237. उदास
लिप्साओं के जाल में, मानव हुआ उदास।
उच्च विचारों से बढ़े, अन्तस में विश्वास।।
238. लिप्सा
धन की लिप्सा बढ़ गई, भौतिकता की प्यास।
मानव का जीवन बना, यही गले की फाँस।।
239. वैभव
धन वैभव औ सम्पदा, नहीं रहा कुछ मोल।
जीवन ही इंसान का, होता है अनमोल।।
240. संकीर्ण
दृष्टि अगर संकीर्ण है, भोगे मानव कष्ट।
निज स्वार्थों में लिप्तता, जीवन होता भ्रष्ट।।
241. पुरुषार्थ
जीवन में पुरुषार्थ का, होता बड़ा महत्त्व।
मंजिल पाने के लिए, उचित यही है तत्त्व।।
242. चुनाव
मनुज यदि हर मोड़ पर, करते सही चुनाव।
भले-बुरे को भाँप ले, कभी न लगता घाव।।
243. शोषण
शोषण-शोषक हैं बुरे, दोनों बड़े कलंक ।
मिलकर देश समाज को, करते सदा निरंक।।
244. चंद्रमौलि
चंद्रमौलि संकट-हरण, सावन भादों माह ।
पूजन अर्चन से सदा, मिलता है उत्साह ।।
245. विष
चंद्रमौलि विष पी गए, जग की हर ली पीर।
जटा-जूट से है बहा, पाप मोचनी नीर।।
246. फुहार
मेघों का शुभ आगमन, जल की पड़े फुहार।
जड़-चेतन खुश हो उठे, लो आ गई बहार।।
247. परिमल
परिमल बिखरे बाग में, भौरों का गुंजार ।
मानव को हर्षित करे, खुशियों का संसार ।।
248. तुलसी
तुलसी का साहित्य है, सद्भावों का ग्रंथ।
हिंदु संस्कृति का यही, निर्मल पावन पंथ ।।
249. रश्मियाँ
सूर्य देव की रश्मियाँ, करतीं हैं नित भोर।
तमस हरे इस जगत का,हो प्रकाश चहुँ ओर।।
250. निनाद
राष्ट्र धर्म सबसे बड़ा, मत हो व्यर्थ विवाद।
सबका स्वर अब एक हो, गूंँजे यही निनाद।।
251. कुचक्र
पाक-चीन-नेपाल का, भू-विस्तार कुचक्र।
भारत की सरकार का, चला सुदर्शन चक्र।।
252. छल
छल-विद्या में निपुण हैं, राजनीति के लोग।
जनसेवक खुद को कहें, खाते छप्पन भोग।।
253. सौरभ
सौरभ सत्-साहित्य का, बिखरे चारों ओर।
पढ़ता-लिखता जो सदा, उसके जीवन भोर।।
254. फूल
फूल खिलें जब बाग में, महक उठे मकरंद।
मधुप गान करने लगें, कविगण लिखते छंद।।
255. सूरज
भोर हुई सूरज उगा, फैला गया उजास।
कर्म-पथिक आगे चलें, बढ़ जाता विश्वास।।
256. वैभव
भारत का वैभव रहा, शिल्प कला का ज्ञान।
एलोरा की गुफा हो, खजुराहो की शान।।
257. निपुण
हस्त शिल्प प्रस्तर कला, निपुण रहे हैं लोग।
मीनाक्षी तंजावरू, कर्म भक्ति अरु भोग।।
258. विपदा
विपदा की छाई घटा, चीन पाक नेपाल।
सीमा पर प्रहरी खड़े, नहीं झुकेगा भाल।।
259. पक्षपात
पक्षपात की नीतियाँ, पहुँचाती हैं क्लेष।
सामाजिक परिवेश में, बढ़ जाता विद्वेष।।
260. मायावी
मायावी कुछ शक्तियांँ, घृणित भ्रमित हैं जान।
इनसे बचना ही सदा, कर ईश्वर का ध्यान।।
261. आहत
सीमा पर दुश्मन खड़ा, आहत हुए जवान।
घर के ही कुछ भेदिए, घूमें सीना तान।।
262. परिवेश
चीन पड़ोसी दे रहा, सारे जग को क्लेश।
मानवता आहत करे, रोता है परिवेश।।
263. पछुवा
पूरब में पछुआ चली, संस्कृति पर आघात।
संस्कारों पर कर रही, क्षण प्रतिक्षण प्रतिघात।।
264. पड़ोसी
तीन पड़ोसी हो गए, अपने बैरी-देश।
सीमा पर आघात कर, पहुँचाते हैं क्लेश।।
265. विभोर
देख सुदामा मित्र को, मचा महल में शोर।
सुनी कृष्ण ने जब व्यथा, उनके घर में भोर।।
266. दहेज
कभी न हो पाया भला, जिसने लिया दहेज।
श्रम-साध्य ही श्रेष्ठ है, सुख की सजती सेज।।
267. आघात
वाणी में संयम रखें, नहीं करें प्रतिघात।
सबका हित इसमें सधे, कटुता को दें मात।।
268. नारी
देव मनुज दानव सभी, नारी की संतान।
नारी माँ के रूप में, खुद पाती सम्मान।।
269. मिटृटी
जीवन मिट्टी का घड़ा, शीतल जल भंडार।
जिस दिन फूटा, मिल गया, माटी में संसार।।
270. संबंध
जीवन में संबंध हों, प्राणवान गतिशील।
मानवता की राह में, कभी न चुभती कील।।
271. संकल्प
करते हैं संकल्प सब, नहीं करेंगे पाप।
समय गुजरते फिर वही, उसको देते नाप।।
272. चाबी
ताले की चाबी अलग, बुध्दिमान की खोज।
फिर भी दुर्जन खोलकर, चोरी करते रोज।।
273. व्याल
मनुज मनुजता त्याग कर, बना व्याल औ बाघ।
हिंसक पशु ने छोड़ दी, जो थे पहले घाघ ।।
274. पाप
पाप-पुण्य के फेर में, मानवता का लोप।
सज्जन मानव ही सदा, जग का झेलें कोप।।
275. प्रसंग
शुचि प्रसंग श्री राम के, देते हैं संदेश।
जीवन में अनुसरण से, कभी न छाएँ क्लेश।।
276. मानस
मानस अद्भुत ग्रंथ है, शुभ प्रसंग संदेश।
मानव के संकट छटें, प्रगति करे फिर देश।।
277. अनुपम
राम कथा संवाद के, अनुपम सभी प्रसंग।
ज्ञान और वैराग्य का, है रोचक सत्संग।।
278. विभूति
ज्ञान और विज्ञान में, पारंगत जो लोग।
इसकी परम विभूति से, हरता मानव रोग।।
279. झील
नदी बावली झील सब, ईश्वर के वरदान।
इनका संरक्षण करें, मिलता जीवन दान।।
280. आँचल
कष्टों में छलकें सदा, कृपा सिन्धु के नैन।
प्रभु का आँचल जीव को, देता है सुख चैन।।
281. अभिसार
प्रीत-मिलन तन-मन जगे, प्रेम भरा संसार।
ऋतु बसंत का आगमन, प्रियतम से अभिसार।।
282. अनुप्रास
छंदों में अनुप्रास का, करें उचित उपयोग।
अलंकार से जब सजें, तन्मय पढ़ते लोग।।
283. अजेय
साहस दृढ़ता से भरा, बनता वही अजेय।
संकट आने पर सदा, उनको मिलता श्रेय।।
284. अनिकेत
नैतिकता कहती यही, सब को मिले निकेत।
अर्ध-सदी पश्चात भी, भटक रहे अनिकेत।।
285. नवगीत
धरा प्रकृति मौसम हवा, शृंगारित नवगीत।
गीत दिलों में बस रहा, बन जाता मनमीत।।
286. पनघट
गाँवों के पनघट गुमे, मन में है संत्रास।
सुख-दुख की बातें गुमीे, बेमन हुए उदास।।
287. दिनमान
भुवन भास्कर आ गए, जब तक था दिनमान।
अस्ताचल को जब गये, बढ़ा चंद्र का मान।।
288. शिल्प
शिल्प कला के क्षेत्र में, भारत बड़ा महान।
मूर्ति शिल्प की दक्षता, जग जाहिर पहचान।।
289. परिमल {चंदन}
परिमल में लिपटे रहें, विषधर काले सर्प।
खुशबू सदा बिखेरता, कभी न करता दर्प।।
290. देश
महावीर गौतम यहाँ, जग में उनका मान।
देव धरा का देश यह, राम कृष्ण भगवान।।
291. वेश
भारत का परिवेश ही, मानवता का वेश।
कभी नहीं विचलित हुआ, सुखद सुपावन देश।।
292. आवेश
जन्म भूमि खातिर लड़े, त्याग क्रोध आवेश।
पाँच सदी बीतीं तभी, मिला कोर्ट आदेश।।
293. समावेश
समावेश सबको किया, रखा देश ने मान।
जाति, धर्म, मजहब भुला, सबका है सम्मान।।
294. परिवेश
सद्भावों की डोर से, गुथा हुआ परिवेश।
बंधन में है बँध गया, अपना भारत देश।।
295. अनुपम
सत्य, अहिंसा, कर्म का, सुंदर है परिवेश।
सारे जग में छा गया, अनुपम भारत देश।।
296. देह
पंचतत्त्व की देह है, क्षणभंगुर पहचान।
इठलाना इस पर नहीं, जलता है शमशान।।
297. मेह
मेह, क्षितिज में खो गए, नहीं हुई बरसात।
व्याकुल आँखें देखतीं, नहीं मिली सौगात।।
298. नेह
बादल बरसें नेह के, हुआ प्रकृति उपकार।
हरित चूनरी ओढ़कर, ऋतु का है सत्कार।।
299. गेह
संघर्षों के बाद ही, मिला राम को गेह।
जनमानस हर्षित हुआ, कलियुग का है नेह।।
300. अनुवाद
नयनों का अनुवाद कर, लिखते छंद सुजान ।
शृंगारिक कविता रचें, रस का करें बखान।।