दोहे मनोज के: भाग - 5
1201. विग्रह
विग्रह शालिगराम का, देव विष्णु प्रतिरूप।
पूजन अर्चन हम करें, दर्शन सुखद अनूप।।
1202. वितान
उड़ने को आकाश है, फैला हुआ वितान।
पंछी पर फैला उड़े, मानव उड़ें विमान।।
1203. विहंग
उड़ते दिखें विहंग हैं, नापें नभ का छोर।
शाखों पर विश्राम कर, उड़ते फिर नित भोर।।
1204. विहान
नव विहान अब हो रहा, भारत में फिर आज।
विश्व पटल पर छा गया, सिर में पहने ताज।।
1205. विवान
किरणें बिखरा चल पड़ा, रथ आरूढ़ विवान।
प्राणी को आश्वस्त कर, गढ़ने नया विहान।।
1206. अंत
अंत भला तो सब भला, सुखमय आती नींद।
शुभारंभ कर ध्यान से, सफल रहे उम्मीद ।।
1207. अनंत
श्रम अनंत आकाश है, उड़ने भर की देर।
जिसने पर फैला रखे, वही समय का शेर।।
1208. आकाश
पक्षी उड़ें आकाश में, नापें सकल जहान।
मानव अब पीछे नहीं, भरने लगा उड़ान।।
1209. अवनि
अवनि प्रकृति अंबर मिला, प्रभु का आशीर्वाद।
धर्म समझ कर कर्म कर, मत चिंता को लाद।।
1210. अचल
अचल रही है यह धरा, आते जाते लोग।
अर्थी पर सब लेटते, सिर्फ करें उपभोग।।
1211. धूप
बदला मौसम कह रहा, ठंडी का है राज।
धूप सुहानी लग रही,इस अगहन में आज।।
1212. धवल
धुआँधार में नर्मदा, निर्मल धवल पुनीत।
गंदे नाले मिल गए, बदला मुखड़ा पीत।।
1213. धनिक
धनिक तनिक भी सोचते, कर देते उद्धार।
कृष्ण सखा संवाद कर, हरते उसका भार।।
1214. धरती
धरती कहती गगन से, तेरा है विस्तार।
रखो मुझे सम्हाल के, उठा रखा है भार।।
1215. धरित्री
जीव धरित्री के ऋणी, उस पर जीवन भार।
रखें सुरक्षित हम सभी, हम सबका उद्धार।।
1216. परिवर्तन
परिवर्तन से देश में, diदखने लगा उजास।
शत्रु पड़ोसी देख कर, मन में बड़ा उदास।।
1217. भूजल
भूजल पर्यावरण अब, देता है संदेश।
हरित क्रांति लाना हमें, तब बदले परिवेश।।
1218. फसल
फसल खड़ी है खेत में, आनन पर मुस्कान।
पल पल रहा निहारता, बैठा कृषक मचान।।
1219. सोना
सोना उपजे खेत में, कृषक बने धनवान।
यही शिला श्रम की सुखद, मिले सदा सम्मान।।
1220. कृषक
कृषक आधुनिक हो गया, ट्रैक्टर कृषि संयंत्र।
बदल रहे हैं गाँव अब, बिगुल बजाता तंत्र।।
1221. खेत
कृषक ला रहे खेत में, नित नूतन कृषि यंत्र।
इन उपकरणों ने दिया, उन्नति के नवमंत्र।।
1222. कुसुम
कुसुम खिले हैं बाग में, सुरभित हुई बयार।
मुग्ध हो रहे लोग सब, बाग हुए गुलजार ।।
1223. बसंत
ऋतु बसंत की पाहुनी, स्वागत करें मनोज।
बाग बगीचे खेत में, दिखता चहुँ दिश ओज।।
1224. अलसी
अलसी से कपड़े बने, बीजों से है तेल।
जो खाते इस बीज को, स्वस्थ निरोगी मेल।।
1225. सरसों
खेतों में सरसों खिली, चूनर ओढ़ी पीत।
बासंती ऋतु आ गई, झूम उठे मनमीत।।
1226. खेत
खेत सभी हर्षित हुए, फसलें हुईं जवान।
श्रम की सिद्धि हो गई, ऊगा नया विहान।।
1227. खलिहान
फसल काट खलिहान तक, बना स्वयं मजदूर।
कोठी में धन-धान्य रख, नहीं हुआ मजबूर।।
1228. फागुन
देख माघ मुस्का रहा, फाग खड़ा दहलीज।
रंग गाल में मल गया, राधा आँखें मींज।।
1229. सूत्र
माह जनवरी छब्बीस, बासंती गणतंत्र।
संविधान के सूत्र से, संचालन का यंत्र।।
1230. बसंत
ऋतु बसंत की धूम फिर, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, बाँट रहे हैं प्यार।।
1231. शिशिर
शिशिर काल में ठंड ने, दिखलाया वह रूप।
नदी जलाशय जम गए, तृण हिमपात अनूप।।
1232. ऋतु
स्वागत है ऋतु-राज का, छाया मन में हर्ष।
पीली सरसों बिछ गई, मिलकर करें विमर्ष।।
1233. बहार
आम्रकुंज बौरें दिखीं, करे प्रकृति शृंगार।
कूक रही कोयल मधुर, छाई मस्त बहार।।
1234. राह
चटृटानों को चीर कर, नदी बनाती राह।
मानव मन यदि ठान ले, पूरण होती चाह।।
1235. हित
हित सबका हम चाहते, जनता देश समाज।
जुड़ें सभी अब देश हित,सुख यश वैभव राज।।
1236. केतकी
श्वेत पीत यह केतकी, लगा सुगंधित फूल।
आकर्षक मन भावनी, ओढ़े खड़ी दुकूल।।
1237. कचनार
बवासीर मधुमेह में, औषधि से भरपूर।
पौधा यह कचनार का, लता बिखेरे नूर।।
1238. रसाल
मौसम आया द्वार में, करना नहीं मलाल।
आम्रकुंज में दिख रहा, मोहक पीत रसाल।।
1239. ऋतुराज
ऋतुओं का ऋतुराज है, मनमोहक मधुमास।
प्रकृति हवा सँग झूमती,दिल को आता रास।।
1240. किंशुक
सुग्गे जैसी चोंच ले, लगता किंशुक फूल।
विरही को समझा रहा, विरह वेदना शूल।।
1241. फागुन
फागुन का यह मास अब, लगता मुझे विचित्र।
छोड़ चला संसार को, परम हमारा मित्र।।
1242. फाग
उमर गुजरती जा रही, फाग न आती रास।
प्रियतम छूटा साथ जब, उमर लगे वनवास।।
1243. पलास
रास न आते हैं अभी, अब पलास के फूल।
बनकर दिल में चुभ रहे, काँटों से वे शूल।।
1244. वन
वन में झरे पलास जब, दिखें गिरे अंगार।
आग लगाने को विकल, लीलेंगे संसार।।
1245. जोगी
धर जोगी का रूप दिल, चला छोड़ संसार।
तन बेसुध सा है पड़ा, जला रहा अंगार।।
1246. रामचरित मानस
राम चरित मानस बृहद, यह अनुपम है ग्रंथ।
संस्कृति का प्रतिबिंब यह,सकल सुमंगल पंथ।।
1247. रहल
सुखद रहल पावन पवित्र, तुलसी का साहित्य।
जीवन में अनमोल यह, करें अनुसरण नित्य।।
1248. अतुल्य
अतुल्य हमारा देश यह, सब देशों से देश ।
देश विदेशों में रहा, यहाँ नहीं कुछ क्लेश।।
1249. राष्ट्रधर्म
राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा, हो इसका आभास।
प्रगति राह पर सब बढ़ें, मानवता को रास।।
1250. परिवेश
समझोतों में हल छिपा, भागे हैं हर क्लेश।
सुखमय जीवन की घड़ी,नेक सुखद उपदेश।।
1251. भाषा
सहज सरल भाषा लिखी, साधारण परिवेश।
दोहे लिखे मनोज ने, भाव पूर्ण संदेश।।
1252. अज्ञान
छंदो का ज्ञाता नहीं, मैं बिल्कुल अग्यान।
मुझसे जैसा बन सका, लिखता गया सुजान।।
1253. आभार
साहित्यकार, कवि दोस्त, सबके प्रति आभार।
सानिध्य-मिला लिख सका, हृदय भाव उद्गार।।
1254. क्षितिज
क्षितिज नापने उड़ चला, पंछी नित ही भोर।
शाम देख कर फिर मुड़े, सुनने कलरव शोर ।।
1255. वायुयान
वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।
अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।
1256. पलाश
मन में खिला पलाश है, होली का त्यौहार।
साजन रूठे हैं पड़े, सुबह-सुबह तकरार।।
1257. भूषित
धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।
प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार।।
1258. उन्मेश
भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश।
पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।
1259. अबीर
ऋतु बसंत में बह रही, मादक-मंद समीर।
हुई प्रकृति है बावली, माथे लगा अबीर।।
1260. मुखड़ा
मुखड़ा चितवन पर लगा, सेमल-लाल अबीर।
सुधबुध भूली मोहनी, प्रियतम हृदय अधीर।।
1261. सुकुमार
लखन राम सुकुमार सिय, चले कौशलाधीश।
मातु-पिता आशीष ले, बढ़े नवा कर शीश।।
1262. राधिका
प्रेम राधिका का अमर, जग करता नित याद।
भक्त सभी जपते सदा, जब आता अवसाद।।
1263. उपवास
तन-मन को निर्मल करे, जो करता उपवास।
रोग शोक व्यापे नहीं, जीवन भर मधुमास।।
1264. लोचन
लोचन हैं राजीव के, श्याम वर्ण अभिराम।
द्वापर में फिर आ गए, अवतारी घन-श्याम।।
1265. मिठास
वाणी सिक्त मिठास की, होती है अनमोल।
जीवन भर जो स्वाद ले, बोले मिश्री घोल।।
1266. रोटी
रोटी दुनिया से कहे, धर्म-कर्म-ईमान।
मुझसे ही संसार यह, गुँथा हुआ है जान।।
1267. गुलाब
मुखड़ा सुर्ख गुलाब-सा, नयन झील कचनार।
ओंठ रसीले मद भरे, घायल-दिल भरमार।।
1268. मुँडेर
कागा बैठ मुँडेर पर, सुना गया संदेश।
खुशियाँ घर में आ रहीं, मिट जाएँगे क्लेश।।
1269. पाती
पाती लिखकर भेजती, प्रियतम को परदेश।
होली हम पर हँस रही, रूठा सा परिवेश।।
1270. साक्षी
सनकी प्रेमी दे गया, सबके मन को दाह।
दृश्य-कैमरा सामने, साक्षी बनी गवाह।।
1271. शृंगार
नारी मन शृंगार का, पौरुष पुरुष प्रधान।
दोनों के ही मेल से, रिश्तों का सम्मान।।
1272. पाणिग्रहण
संस्कृति में पाणिग्रहण, नव जीवन अध्याय।
शुभाशीष देते सभी, होते देव सहाय।।
1273. वेदी
अग्निहोत्र वेदी सजी, करें हवन मिल लोग।
ईश्वर को नैवेद्य फिर, सबको मिलता भोग।।
1274. विवाह
मौसम दिखे विवाह का, सज-धज निकलें लोग।
मंगलकारी कामना, उपहारों का योग।।
1275. जंगल
जंगल सारे कट गए, नहीं मिली जब छाँव।
सारे पक्षी दुबक कर, बैठ गए लघु ठाँव।।
1276. गर्मी
बैरन गर्मी ने किया, सबको है बेचैन।
दुबके पंछी छाँव में, नीर ढूँढ़ते नैन।।
1277. मिथ्या
मिथ्या वादे कर रहे, राजनीति के लोग।
मिली जीत फिर भूलते, खाते छप्पन भोग।।
1278. छलना
छलना है संसार को, कैसा पाकिस्तान।
पहन मुखौटे घूमता, माँगे बस अनुदान।।
1279. सर्प
सर्प बिलों में छिप गए, स्वर्ग हुआ आबाद।
काश्मीर पर्यटन बढ़ा, खत्म हुआ उन्माद।।
1280. मछुआरा
मछुआरा तट बैठकर, देख रहा जलधार।
मीन फँसेगी जाल में, सुखमय तब परिवार।।
1281. जाल
मोह जाल में उलझकर, मन होता बेचैन।
सजे चिता की सेज फिर, पथरा जाते नैन।।
1282. लू
ज्येष्ठ माह का नवतपा, बरसाता है आग।
लू-लपटों से घिर चुके, सभी रहे हैं भाग।।
1283. लपट
झुलस रहे हैं लपट से, शहर गाँव खलिहान।
श्रमजीवी श्रम कर रहे, पहिन फटी बनियान।।
1284. ग्रीष्म
ग्रीष्म काल में चल पड़ा, पर्यटन का है शोर।
हिल स्टेशन फुल हुए, लगे सुहानी भोर।।
1285. प्रचण्ड
सूरज प्रचण्ड तप रहा, जेठ लगा जब माह।
आएगा आषाढ़ तब, खतम करेगा दाह।।
1286. अग्नि
सूरज अग्नि उगल रहा, सूख गये मृत-पात।
फिर नवपल्लव ऊगते, खाद बनें हर्षात ।।
1287. पथिक
जीवन के हम हैं पथिक, चलें नेक ही राह।
चलते-चलते रुक गए, तन-मन दारुण दाह।।
1288. मझधार
जीवन-सरि मझधार में, प्रियजन जाते छोड़।
सबके जीवन काल में, आता है यह मोड़।।
1289. आभार
जो जितना सँग में चला, उनके प्रति आभार।
हृदय कृतघ्न न हो कभी, यह जीवन का सार।।
1290. उत्सव
जीवन उत्सव की तरह, हों खुशियाँ भरपूर।
दुख, पीड़ा, संकटघड़ी, खरे उतरते शूर।।
1291. छाँव
धूप-छाँव-जीवन-मरण, हैं जीवन के अंग।
मानव मन-संवेदना, दिखलाते बहु रंग।।
1292. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका, नाप सका कुछ थाह।।
1293. बाँसुरी
हिंदी रचनाकारों से, हुआ पटल धनवान।
गद्य-पद्य की बाँसुरी, मोहक लगे सुजान।।
1294. सजल
छंद, गीत, मुक्तक, सजल, पढ़कर बनो महान।
सिद्ध हस्त कवि वृंद जन, जुड़े सभी गुणवान।।
1295. आभारी
आभारी हम आपके, सबके प्रति आभार।
विसंगतियों से आपने, मुझको लिया उबार।।
1296. प्रणम्य
सबरे पटल प्रणम्य हैं, जो जग करे प्रकाश।
हिंदी ध्वज फहरा रहे, बड़ी लगी है आश।।
1297. कोंपल
कोंपल खिली डगाल पर, हर्षाया वट वृक्ष।
स्वागत आगत कर रहा, वर्षों से वह दक्ष।।
1298. कलगी
झूमी कलगी शीश पर, मुर्गे ने दी बाँग।
चला जगाने जगत को, पीकर सोए भाँग।।
1299. कुसुम
कुसुम फूल के फायदे, औषधि गुण भरपूर।
उदर रोग का शमन कर, आँखों का है नूर।।
1300. डाली
डाली झूमी वृक्ष की, पत्तों से संवाद।
पथिक थका-हारा सुनो, चखा फलों का स्वाद।।
1301. विटप
धरा विटप को पालती, प्रकृति लुटाती प्यार।
वायु प्रदूषण रोकती, जीव जगत उपकार।।
1302. आभार
सबके प्रति आभार है, दिखलाई जो राह।
कवितातल तक जा सका,नाप सका कुछ थाह।।
1303. ज्वार
ज्वार बाजरा खाइए, मिटें उदर के रोग।
न्यूट्रीशन तन को मिले, होता उत्तम भोग।।
1304. सुकुमार
बाल्यकाल सुकुमार है, रखें सदा ही ख्याल।
संस्कारों की उम्र यह, होता उन्नत भाल।।
1305. पुलकन
मन की पुलकन बढ़ गई, मिली खबर चितचोर।
बेटी का घर आगमन, बाजी ढोलक भोर ।।
1306. चितवन
चितवन झाँकी राम की, राधा सँग घनश्याम।
आभा मुख की निरखते, हृदय बसें श्री राम।।
1307. कस्तूरी
मृग कस्तूरी ढूँढ़ता, व्यर्थ हुआ बेचैन।
अंदर तन में है रखा, ढूँढ़ न पाए नैन।।
1308. कबूतर
बोल कबूतर गुटरगूँ, क्या देगा संदेश।
चैट मेल अब भेजते, बदल गया परिवेश।।
1309. खेत
फसलों का निर्यात कर, हुआ देश विख्यात।
खेत सभी हरिया उठे, हरे भूख दिन रात।।
1310. अशोक
खड़ा विश्व के सामने, भारत हुआ अशोक।
शत्रु पड़ोसी देश भी, उन्नति सके न रोक।।
1311. दृष्टि
दूर-दृष्टि का अर्थ ही, मोदी जी का नाम।
किए अनोखे कार्य हैं, दुर्लभ निपटे काम।।
1312. धूप
तेज धूप में झुलसता, मानव का हर अंग।
छाँव-छाँव में ही चलें, पानी-बाटल संग।।
1313. कपोल
लाली बढ़ी कपोल की, पड़ी तेज जब धूप।
मुखड़े की वह लालिमा, लगती बड़ी अनूप।।
1314. आखेट
आँखों के आखेट से, लगे दिलों पर तीर ।
मृगनयनी घायल करे, कितना भी हो वीर।।
1315. प्रतिदान
मानवता कहती यही, करें सुखद प्रतिदान।
बैर बुराई छोड़ कर, प्रस्थापित प्रतिमान ।।
1316. निकुंज
आम्र-निकुंज में डालियाँ, झुककर करें प्रणाम।
आगत का स्वागत करें, चखें स्वाद चहुँ याम।।
1317. आजादी
कैसे कुछ इंसान हैं, मचा रखी है लूट।
आजादी के नाम पर, समझें बम्फर छूट।।
1318. उत्कर्ष
सही दिशा में अब बढ़े, भारत का उत्कर्ष।
प्रगति और उत्थान से, जन मानस में हर्ष।।
1319. लोकतंत्र
लोकतंत्र बहुमूल्य यह, समझें इसका मूल्य।
राष्ट्र धर्म के सामने, होता सब कुछ शून्य।।
1320. भारत
भारत ऐसा देश यह, सदियों रहा गुलाम।
किन्तु ज्ञान विज्ञान से, पाया विश्व मुकाम।।
1321. तिरंगा
हाथ तिरंगा थामकर, गूँजी जय-जयकार।
राष्ट्र भक्ति सँग एकता, जनमानस का प्यार।।
1322. सावन
आया सावन झूम कर, हरियाली हर ओर।
पीहर में झूलें सखी, कजरी का है शोर।।
1323. फुहार
सावन लगता है मधुर, रिमझिम पड़े फुहार।
कोयल राग अलापता, करता है मनुहार।।
1324. झूले
बाबुल का संदेश है, आ जा बेटी पास।
झूला डाले बाग में, सखियाँ आईं खास।।
1325. सखी
यौवन में झूलें सखी, बचपन लौटा पास।
मन गोरी का बावला, सावन पावस खास।।
1326. कजली
चैपालों में गूँजता, कजली का स्वर रोज।
कोयल के संगीत से, नवप्रभात सा ओज ।।
1327. परदेश
चला ऊँट का काफिला, पिया चले परदेश।
नजरें उसे निहारतीं, छूट रहा परिवेश।।
1328. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रकृति की जीत।
वृक्ष उगाकर बन रहे, मानव-जग के मीत।।
1329. हलधर
पानी खेतों में भरा, हर्षित हुआ किसान।
रोपे-पौधे खेत में, मिला उसे वरदान।।
1330. हरियाली
हरियाली को मिल गया, पावस का संदेश।
सावन-भादों बरसते, बदलेंगे परिवेश।।
1331. छतरी
मेघों की छतरी तनी, खुश हैं सभी किसान।
माटी की सौंधी महक, चलते सीना तान।।
1332. नाव
हिचकोलें लेकर बढ़े, सबकी जीवन-नाव।
ईश्वर की सब कृपा है, हों कृतज्ञ के भाव।।
1333. अंकुर
अंकुर निकसे प्रेम का, प्रियतम का आधार।
नेह-बाग में जब उगे, लगे सुखद संसार ।।
1334. मंजूषा
प्रेम-मंजूषा ले चली, सजनी-पिय के द्वार।
बाबुल का घर छोड़कर, बसा नवल संसार।।
1335. भंगिमा
भाव-भंगिमा से दिखें, मानव-मन उद्गार।
नवरस रंगों से सजा, अन्तर्मन शृंगार।।
1336. पड़ाव
संयम दृढ़ता धैर्यता, मंजिल तीन पड़ाव ।
मानव उड़े आकाश में, मन से हटें तनाव।।
1337. मुलाकात
मुलाकात के क्षण सुखद, मन में रखें सहेज।
स्मृतियाँ पावन बनें, बिछे सुखों की सेज।।
1338. दर्पण
नित-दर्पण में झाँकिए, निरखें अपना रूप।
अंदर-बाहर एक से, गुण हों सुखद अनूप।।
1339. उपहार
दिया सुखद उपहार है, ईश्वर ने अनमोल।
मानव रूपी धर्म से, चखते अमरत घोल।।
1340. विराम
सभी विवादों पर लगा, अब तो पूर्ण विराम।
कश्मीरी परिक्षेत्र में, हुए सृजन के काम।।
1341. हरा-भरा
हरा-भरा यह देश है, इसका रखना ख्याल।
सबका ही कर्तव्य है, बढ़ें न व्यर्थ बवाल।।
1342. समीर
धरा प्रफुल्लित हो गई, ऋतु आई बरसात।
बहने लगा समीर है, मिली मधुर सौगात।।
1343. अंबुद
उमड़-घुमड़ अंबुद चले, हाथों में जलपान।
प्यासों को पानी पिला, पाया शुभ वरदान।।
1344. नटखट
नटखट बादल खेलते,लुका-छिपी का खेल।
कहीं तृप्त धरती करें, कहीं सुखाते बेल।।
1345. प्रार्थना
यही प्रार्थना कर रहे, धरती के इंसान।
जल-वर्षा इतनी करो, धरा न जन हैरान।।
1346. चारुता
प्रकृति चारुता से भरी, झूम उठे तालाब।
मेघों ने बौछार कर, खोली कर्म-किताब।।
1347. अभिसार
वर्षा-ऋतु का आगमन, नदियाँ हैं बेताब।
उदधि-प्रेम अभिसार में, उफनातीं सैलाब।।
1348. सावन
सावन के त्यौहार हैं, पूजन-पाठ प्रसंग।
रक्षाबंधन-सूत्र से, चढ़ें नेह के रंग।।
1349. बादल
उमड़-घुमड़ बादल चले, लेकर प्रेम फुहार।
तनमन अभिसिंचित करें,जड़चेतन उपकार।।
1350. मेघ
मेघ बरसते हैं वहाँ, जहाँ प्रभु घनश्याम।
उनकी कृपा अनंत है, मानव मन विश्राम।।
1351. झड़ी
झड़ी लगी आनंद की, गिरिजा-शिव परिवार।
सावन-भादों घर रहें, महिमा अपरंपार।।
1352. चैमास
कर्म-धर्म का योग ले, आया है चैमास।
मंगलमय खुशहाल का, माह रहा है खास।।
1353. बूँदाबाँदी
बूँदाबाँदी ने भरा, तन-मन में उल्लास।
जेठ माह की ज्वाल से,मन था बड़ा उदास।।
1354. बरसात
धरा मुदित हो कह उठी, लो आई बरसात।
अनुपम छटा बिखेर दी, गर्मी को दी मात।।
1355. धाराधार
रूठे बादल घिर गए, बरसे धाराधार।
ग्रीष्म काल दुश्वारियाँ, बदल गया संसार।।
1356. पावस
प्रिय पावस की यह घड़ी,लगती सबको नेक।
नव अंकुर निकले विहँस, मुस्कानें हैं एक।।
1357. चातुर्मास
भक्ति भाव आराधना, आया चातुर्मास।
धर्म धुरंधर कह गए, माह यही हैं खास।।
1358. धार
नदिया के तट बैठकर, देखी उसकी धार।
मीन करे अठखेलियाँ, कभी न मानी हार।।
1359. लहर
सुखदुख की उठती लहर,हर दिन होती भोर।
सफल वही तैराक जो, पार करे बिन शोर।।
1360. प्रवाह
नद-प्रवाह जीवनमधुर, सागर का जलक्षार।
कंठ प्यास की कब बुझी,यह जीवन का सार।।
1361. भँवर
मानव फँसता भँवर में, बचकर निकले वीर।
संयम दृढ़ता धैर्य से, बन जाते रघुवीर।।
1362. कलकल
कलकल बहती है नदी, शांत मनोरम कूल।
तनमन आह्लादित करे, मिटें हृदय के शूल।।
1363. सच्चाई
सच्चाई परिधान वह, श्वेत हंस चितचोर।
धारण करता जो सदा, आँगन नाचे मोर।।
1364. परिधान
नवल पहन परिधान सब, चले बराती संग।
द्वार-चार में हैं खड़े, स्वागत के नव रंग।।
1365. सौभाग्य
कर्म अटल सौभाग्य है, बनता जीव महान।
फसल काट समृद्धि से, जीता सीना तान।।
1366. बदनाम
मानव को सत्कर्म से, मिल जाते हैं राम।
फँसता जो दुष्कर्म में, हो जाता बदनाम।।
1367. आहत
सरल देह-उपचार है, औषधि दे परिणाम।
आहत मन के घाव को, भरना मुश्किल काम।।
1368. यात्रा
अंतिम यात्रा चल पड़ी, समझो पूर्ण विराम।
मुक्तिधाम का सफर ही, सबका अंतिम धाम।।
1369. अनुभूति
ईश्वर की अनुभूति पा, होते व्यक्ति महान।
आस्था औ विश्वास से, दृढ़-निश्चय की खान।।
1370.अनुश्रुति
अनुश्रुति के बल पर लिखे, अपने वेद-पुरान।
जीवन की संजीवनी,ऋषि मुनियों का ज्ञान।।
1371. अनुकूल
परिस्थितियाँ अनुकूल अब, प्रगतिशील का शोर।
भारत उन्नति कर रहा, निश्चित होगी भोर।।
1372. अनुदान
सरकारी अनुदान पा, करें श्रेष्ठ व्यापार।
श्रमिकों को भी काम दें, उन्नति का आधार।।
1373. अनुदार
मातृ-भूमि ऋण भूल कर, दिखते कुछ अनुदार।
निज स्वार्थों में उलझते, भारत पर हैं भार।।
1374. खंजन
खंजन नयन निहारते, धारण करें दुकूल।
पथ से भटकें जब पथिक, तब चुभते हैं शूल।।
1375. सौरभ
सौरभ बिखरा कर हँसे, फूल खिल उठे बाग।
तन-मन को सुरभित किया, झंकृत होते राग।।
1376. दुकूल
धारण वस्त्र दुकूल से, भ्रमण करें बाजार।
आकर्षण की लालसा, फिर हो जाती भार।।
1377. जीवनदान
अंगदान है कीजिए, कर मानव कल्यान।
श्रेष्ठ दान है आज यह, देता जीवनदान।।
1378. समर्थ
यदि समर्थ हैं आप तो, कुछ कर लें उपकार।
सुयश कीर्ति फहरा उठे, जीवन का उपहार।।
1379. संन्यास
कर्मठ मानव ही बनें, कभी न लें सन्यास।
जब तक तन में साँस है, करते रहें प्रयास।।
1380. अभिषेक
श्रम का ही अभिषेक कर, करें पुण्य के काम।
सार्थक जीवन को जिएँ, जग में होगा नाम।।
1381. आलोक
सत् कर्मों की हो फसल, करें सभी जन वाह।
दिग्-दिगंत आलोक हो, हर मानव की चाह।।
1382. विरासत
वरासत को संग्रह करें, होता यह अनमोल।
दर्पण रहे अतीत का, चमके मुखड़ा-बोल।।
1383. रक्षासूत्र
रक्षासूत्र प्रतीक है, बंधु भगिनि का प्यार।
रक्षाबंधन पर्व यह, रचे नया संसार।।
1384. पत्थर
*पत्थर* दिल को पूजते, मौनी बना समाज।
कौन अलख जाग्रत करे, मौन हो गए आज।।
1385. पतित
*पतित* पावनी नर्मदा, बहा रही जलधार।
मानव दूषित कर रहा, बहा रहा है क्षार।।
1386. गोदान
प्रेमचंद मुंशी हुए, हिन्दी करे प्रणाम।
उपन्यास *गोदान* लिख, किया उजागर नाम।।
1387. विदुर
*विदुर* नीति द्वापर लिखी, कैसी हो सरकार।
कलयुग में चाणक्य ने, दिया उसे विस्तार।।
1388. व्यापार
सद्-*व्यापार* न कर सके, करते उल्टा काम।
टैरिफ का डंडा घुमा, ट्रंप हुए बदनाम।।
1389. संयम
*संयम* नैतिक आचरण, का है बड़ा महत्व।
जीवन जीने के लिए, श्रेष्ठ यही है तत्व।।
1390. संकेत
*संकेत* लगे राह में, सब करते परवाह।
निर्भय होकर चल पड़ो, नहीं मिलेगी आह।।
1391. नटखट
*नटखट* बालक मोहते, प्यारे लगते बोल।
प्रिय जन मुग्ध निहारते, लगते हैं अनमोल।।
1392. नीलांबुज
*नीलांबुज* सरवर खिले, पक्षी करें किल्लोल।
दृश्य मनोरम देखकर, निकलें हर्षित बोल।।
1393. भंगिमा
दुर्जनता का भूल से, कभी न लेते नाम।
भाव *भंगिमा* देखकर, करते सभी प्रणाम।।
1394. संकल्प
जीवन में *संकल्प* लें, करें नीति गत काम।
भटकें कभी न राह से, मिले सुखद परिणाम।
1395. सावन
अमराई में कूकती, कोयल बारंबार।
सावन-भादों की झड़ी, मन भावन शृंगार।।
1396. बिजुरी
नयनों से आँसू झरें, घूँघट में है लाज।
बिजुरी चमके मेघ से, नहीं पिया घर आज।।
1397. कजरी
बरखा की बूँदें गिरीं, हरित धरा शृंगार।
कजरी गा-गा थम गई, शुरू राग मल्हार।।
1398. पीहर
बचपन का आँगन गुमा, बिछुड़ा माँ का प्यार।
पीहर आकर सोचती, कैसा यह उपहार ।।
1399. राखी
राखी का त्यौहार शुभ, भाइ-बहन का प्यार।
नहीं दिखा यह विश्व में, सामाजिक परिवार।।
1400. सजल
सजल मेघ बरसे बहुत, डूब गए हर धाम।
जीव-जन्तु ने याद कर, जपा राम का नाम।।
1401. वृष्टि
मेघ वृष्टि कर चल दिए, दे अनुपम उपहार।
धरा हरित हर्षित हुई, लुटा रही है प्यार।।
1402. घनघोर
उमड़-घुमड़ घन छा गए, बरसे चहुँ घनघोर।
सावन की पहुँनाइ में, आ गए नंद किशोर।।
1403. लहर
गाँव शहर सब डूबते, लहर करें बरजोर।
निर्बल साथ बहा लिए, गरज-बरस का शोर।।
1404. सैलाब
आया जल सैलाब जब, उखड़ गए सब वृक्ष।
घर सड़कें पुल बह गए, कुछ न कर सके दक्ष।।
1405. मेघावरी
आखिर *मेघावरी* ने, जून माह सौगात।
वर्षा ने आकर दिया, प्रबल ग्रीष्म को मात।।
1406. पतवार
नदिया रूठी नगर से, टूट गए *तटबंध*।
सागर में मिलने चली, हुआ प्रेम है अंध।।
1407. तटबंध
नदी *घाट* डूबे सभी, मन में अन्तर्द्वन्द्व।
रौद्र रूप दिखता कभी, या निर्मल मकरंद।।
1408. घाट
बलशाली मन-संतुलित, खेते हैं *पतवार*।
पार लगाता नाव को, कितनी भी हो धार।।
1409. धारावती
सूखी नद *धारावती*, बुझी धरा की प्यास।
हुए अंकुरित बीज सब, मन में जागी आस।।
1410. झील
आँखें उनकी झील सी, डूब गए घन श्याम।
प्रेम सरोवर में हुई, कभी सुबह से शाम।।
1411. सरोवर
भरी सरोवर गंदगी, जल कुंभी शृंगार।
दूषित जल करने लगा, कष्टों की बौछार।।
1412. मेघ
केश हुए अब मेघ सम, यौवन की दहलीज।
पक-पक कर झरने, मन में आती खीज।।
1413. चातुर्मास
चतुर्मास का है समय, ध्यान ज्ञान का योग।
इष्ट देव की भक्ति कर, भग जाएँगे रोग।।
1414. कछार
हरियाली मन भावनी, मिलती सबको छाँव।
नदी किनारे सज गए, हैं कछार के गाँव।।
1415. कछार
उपजी याद कछार की, फसलें हुईं जवान।
सुखद रहा जीना सफल, जीवन गुजरा शान।।
1416. कछार
यादें गाँव कछार की, कवियों की वह शाम।
विजय बागरी का सुखद,जन्म-कर्म का धाम।।
1417. संबंध
हुए व्यर्थ संबंध सब, गुमी प्रीति की डोर।
ईश्वर ही है जानता, कब होगी वह भोर ।।
1418. समर्थवान
करते समर्थवान ही, व्यर्थ सदा बकवास।
कर्म साधना छोड़ कर, उलझाते हैं खास।।
1419. वृष्टि
मेघ धरा पर कर रहे, पावस जल की वृष्टि।
प्रकृति प्रफुल्लित हो उठी, हरित हो गई दृष्टि।।
1420. बौछार
पानी की बूँदे गिरीं, खुशियों की बौछार।
कृषक चला अब खेत में, करने को शृंगार।।
1421. मल्हार
पावस की बौछार ने,किया प्रकृति उपकार।
धरा मुदित हो कह उठी, सुना मेघ मल्हार।।
1422. गंगा
*गंगा* की लहरें उठीं, हरने सबका श्राप।
मानव अविरल कर रहा, नित नूतन ही पाप।
1423. मल्लाह
नाव चला *मल्लाह* ने, दिया सुखद संदेश।
चली हवा अनुकूल है, बदल गया परिवेश।।
1424.बेलन
बेलन से रोटी बने, सदियों का औजार।
भूखे को भोजन मिले, रहा बड़ा उपकार।।
1425. मट्ठा
तन-निरोग मट्ठा करे, पिएँ सदा ही रोज।
नित उठ प्रातः घूमिए, जी भर खाएँ भोज।।
1426. घास
वर्षा ऋतु में ऊगती, हरियाली जब घास।
प्रकृति बिखेरे हरितिमा, स्वागत करती खास।।
1427. रबड़ी
सत्ता की रबड़ी चखें, नेतागण बैचेन।
जनता स्वप्नों में जिए, तरसें उसके नैन।।
1428. बटेर
जिसके हाथों लग गई, रूठी गुमी बटेर।
किस्मत उसकी खुल गई, कभी न लगती देर।।
1429. झरना
आँखों से झरना बहा, दिल में उठा गुबार।
पहलगाम को चाहिए, अब केवल प्रतिकार।।
1430. मधुकर
मधुकर उड़ता बाग में, गाता है मृदु गान।
आमंत्रित करती कली, दे कर मधु मुस्कान।।
1431. वंशिका
प्रेम-वंशिका बज रही, कृष्ण राधिका धाम।
मुदित गोपिका नाचती, बसे यहाँ घन-श्याम।।
1432. आँसू
बहते आँसू रुक गए, नाम दिया सिंदूर।
आतंकी गढ़ ध्वस्त कर,शरणागत-मजबूर।।
1433. कुटीर
जनसंख्या की वृद्धि जब, हों कुटीर उद्योग।
अर्थ-व्यवस्था दृढ़ रहे, मिले सभी को भोग।।
1434. नौतपा
धरा *नौतपा* में तपे, सूखे नद-तालाब।
मानव व्याकुल हो रहे,पशु पक्षी बेताब।।
1435. लूक
तपी दुपहरी *लूक*-सी, कठिन हुआ है काम।
जीव जगत अब भज रहा, इन्द्र देव का नाम।।
1436. ज्वाला
राष्ट्रप्रेम-*ज्वाला* उठी, चला सैन्य-सिंदूर।
पाकिस्तानी जड़ों में, मठा-डाल भरपूर।।
1437. धरा
*धरा* हमारी राम की, कृष्ण-बुद्ध की राह।
बुरी नजर यदि उठ गई, लग जाएगी आह।।
1438. ताप
बँटवारे के *ताप* को , भोग रहा था देश।
भारत के चाणक्य अब, बदल रहे परिवेश।।
1439. जल
*जल* बिन जीवन शून्य है, इन्द्र देव जी धन्य।
जीव जगत अब चाहता, हम सब हों चैतन्य।।।
1440. नदी
*नदी* व्यथित है प्यास से, पोखर हुए उदास।
जीव-जंतु-निर्जीव की, सुखद टूटती आस ।।
1441. तालाब
पूर दिए *तालाब* सब, उस पर बने मकान।
भूजल का स्तर गिरा, सभी लोग हैरान।।
1442. तृषित
*तृषित* व्यथित मौसम हुआ, आग उगलता व्योम।
दिनकर आँख तरेरता, मन को भाता सोम।।
1443. मानसून
आहट सुनकर खुश हुये, दौड़े स्वागत द्वार।
*मानसून* है आ रहा, पहनाओ सब हार।।
1444. अहिंसा
सत्य-अहिंसा मार्ग पर, मिलें पुष्प के हार।
सामाजिक परिवेश में, जीवन तब गुलजार।।
1445. निर्वाण
सुखद कर्म की नींव पर, करें भव्य निर्माण।
हों प्रसिद्ध इतिहास में, अमर रहे निर्वाण।।
1446. सिद्धार्थ
राजपाट को त्याग कर, बोधिसत्व पर ध्यान।
पूज्य हुए सिद्धार्थ जी, उपजा सच्चा ज्ञान।।
1447. बोधिसत्व
राजपाट को त्याग कर, बोधिसत्व पर ध्यान।
पूज्य हुए सिद्धार्थ जी, उपजा सच्चा ज्ञान।।
1448. बोधिसत्व
राजपाट को त्याग कर, बोधिसत्व पर ध्यान।
पूज्य हुए सिद्धार्थ जी, उपजा सच्चा ज्ञान।।
1449. बुद्ध
शक्ति-मार्ग से जा रहा, प्रेम-शांति संदेश।
बुद्ध-युद्ध के द्वंद्व में, सुखमय है परिवेश।।
1450. श्रम
सेना की *श्रम* साधना, अब लाई है रंग।
ऐसा मारा रह गया, पाकिस्तानी दंग।।
1451. नासूर
पहलगाम के घाव ने, दिया उसे *नासूर*।
कभी भुला न पाएगा, देख बहत्तर हूर।।
1452. आतंकी
सेना ने बदला लिया, *नापाकी* हैरान।
उड़ा दिये आतंक गढ़, बदला हिंदुस्तान।।
1453. श्रमिक
मानव बनता *श्रमिक* है, श्रम साधन ही साध्य।
कर्म करें मिलकर सभी, वही रहे आराध्य।।
1454. मजदूर
अपने-अपने क्षेत्र में, हम सब हैं *मजदूर*।
श्रम की करते साधना, देश रहे मशहूर।।
1455. पसीना
बहा *पसीना* श्रमिक का, भारत है खुशहाल।
अर्थ व्यवस्था पाँचवीं, बनी हमारी ढाल।।
1456. रोटी
*रोटी* से हर पेट का, रिश्ता बड़ा अजीब।
चाहे साहूकार हो, या हो निरा-गरीब।।
1456.ऑंधी
*आँधी* की आहट हुई, भय में पाकिस्तान।
पहलगाम की चोट से, गिरा-टूट अभिमान।।
1456. तूफान
जनरल बने मुनीर ने, खड़ा किया *तूफान*।
जनमत हुआ विरोध में, उसको भी है भान।।
1456. ओले
ओले बरसे शांति पर, भीषण वज्रापात।
आतंकी ने दे दिया, एक बड़ा आघात।।
1456. झंझावात
जीवन *झंझावात* में, भटक रहा दिन रात।
कष्टों के अंबार को, मिलकर देंगे मात।।
1456. भॅंवर
नाव *भँवर* में फँस गई, जेहादी के हाथ।
दूर खड़े सब देश हैं, नहीं दे रहे साथ।।
1457. सूरज
सूरज की दादागिरी, चलती है दिन रात।
हाथ जोड़ मानव करें, वरुणदेव दें मात।।
1458. धूप
धूप दीप नैवेद्य से, प्रभु को करें प्रसन्न।
द्वारे में जो माँगते, उनको दें कुछ अन्न।।
1459. बैसाख
दान पुण्य बैशाख में, होता बड़ा महत्व।
यही पुण्य संचित रहे, सत्य-सनातन-तत्त्व।।
1460. तेवर
मंदिर चौसठ योगनी, भेड़ाघाट सुनाम।
तेवर में माँ भगवती, त्रिमुख रूप सुख धाम।।
1461. ग्रीष्म
*ग्रीष्म* प्रतिज्ञा भीष्म सी, तपा धरा का तेज।
मौसम के सँग में सजे, बाणों की यह सेज।।
1462. सूरज
*सूरज* की अठखेलियाँ, हर लेती हैं प्राण।
तरुवर-पथ विचलित करे, दे पथिकों को त्राण।।
1463. अंगार
बना जगत *अंगार* है, धधक रहे अब देश।
कांक्रीट जंगल उगे, बदल गए परिवेश।।
1464. अग्नि
तपती धरती *अग्नि* सी, बनता पानी भाप।
आसमान में घन घिरें, हरें धरा का ताप ।।
1465. निदाघ
भू-*निदाघ* से तृषित हो, भेज रही संदेश।
इन्द्र देव वर्षा करो, हर्षित हो परिवेश।।
1466. खेत
कृषि-क्रांति ने बदल दिया, कृषक *खेत* परिणाम।
श्वेत-क्रांति ने लिख दिया, धरा-कृष्ण-बलराम।।
1467. माटी
*माटी* की खुशबू सदा, खींचे सबका ध्यान।
परदेशों में जब रहें, उपजे मन में ज्ञान।।
1468. रबी
फसल *रबी* की कट गई, आया अप्रैल माह।
सूरज की गर्मी मिली, दूर हटे कृषि-दाह।।
1469. फसल
राष्ट्रवाद की *फसल* को, रखें सुरक्षित आप।
संकट के हर काल में, मिट जाएंगे ताप।।
1470. खलिहान
भारत का *खलिहान* अब, लक्ष्मी का भंडार।
अन्नपूर्णा की कृपा, खुशहाली आधार।।
1471. वसंत
ऋतु वसंत की थपकियाँ, देतीं सदा दुलार।
प्रेमी का मन बावरा, बाँटे अनुपम प्यार।।
1472. बहार
चारों ओर बहार है, आया फिर मधुमास।
धरा प्रफुल्लित हो रही, देख कृष्ण का रास।।
1473. मधुमास
छाया है मधुमास यह, जंगल खिले पलाश।
आम्रकुंज है झूमता, यह मौसम अविनाश।
1474. कुसुमाकर
कुसुमाकर ने लिख दिया, फागुन को संदेश।
वृंदावन में सज गया, होली का परिवेश।।
1475. ऋतुराज
ऋतुओं का ऋतुराज है, छाया हुआ वसंत।
बाट जोहती प्रियतमा, कब आओगे कंत।।
1476. सड़क
बनी *सड़क* मजबूत हैं, जैसे बनी विदेश।
भारत यातायात का, बदल गया परिवेश ।।
1477. सुरक्षा
सड़क *सुरक्षा* के लिए, सजग हुई सरकार।
टू-लाइन से हो गए, फोर-लेन विस्तार।।
1478. हेलमेट
*हेलमेट* को पहनकर, वाहन पर हों लोग।
कभी न संकट घेरते, जीवन सुखमय-भोग।।
1479. दुर्घटना
कभी न *दुर्घटना* घटे, सजग रहें जब आप।
समय पूर्व घर से चलें, कभी न हो संताप।।
1480. रफ्तार
गाड़ी जब हो हाथ में, ध्यान रखें *रफ्तार*।
चौकस होकर ही चलें,जीवन की दरकार।।
1481. मौसम
मौसम कहता है सदा, चलो हमारे साथ।
कष्ट कभी आते नहीं, खूब करो परमार्थ।।
1482. बदलाव
जीवन में बदलाव के, मिलते अवसर नेक।
अकर्मण्य मानव सदा, अवसर देता फेक।।
1483. कुनकुन
कुनकन पानी सामने, शुभ होता इसनान।
कृष्ण कन्हैया कह रहे, कर न, माँ परेशान।।
1484. सूरज
सूरज कहता चाँद से, मैं करता विश्राम।
मानव को लोरी सुना, कर तू अब यह काम।।
1485. धूप
कर्मठ मानव ही सदा, पथ पर चला अनूप।
थका नहीं वह मार्ग से, हरा सकी कब धूप ।।
1486. माघ
*माघ* माह में शीत ऋतु, छोड़ चली घर द्वार।
फागुन बाँह पसार कर, करता है सत्कार।।
1487. फागुन
*फागुन* द्वारे पर खड़ा, लेकर रंग गुलाल।
कब निकलेगें साँवरे, नित राधा बेहाल।
1488. संन्यास
विरहन ने *संन्यास* को, लिख-लिख पाती-भेज।
गुजर गया फिर साल भी, प्रियतम सूनी सेज।।
1489. फगुनाहट
*फगुनाहट* मन में बसी, होली अब भी दूर।
तन बेचारा क्या करे, मन तो है मजबूर।।
1490. प्रस्थान
चौथापन *प्रस्थान* का, नित-नित देखे राह।
मंदिर-मंदिर भटकता, प्रभु दर्शन की चाह।।
1491. कुंभ
महा- *कुंभ* का आगमन, बना सनातन पर्व।
सकल विश्व है देखता, भारत को यह गर्व।।
1492. प्रयाग
*प्रयाग* राज में भर रहा, बारह वर्षीय कुंभ।
पास फटक न पाएगा, कोई शुंभ-निशुंभ।।
1493. त्रिवेणी
गँगा यमुना सरस्वती, नदी *त्रिवेणी* मेल।
पुण्यात्माएँ उमड़तीं, धर्म-कर्म की गेल।।
1494. संक्रांति
सूर्य देव उत्तरायणे, मकर *संक्रांति* पर्व।
ब्रह्म-महूरत में उठें, करें सनातन गर्व।।
1495. गंगा
*गंगा* तट की आरती, लगे विहंगम दृश्य।
अमरित बरसाती नदी,कल-कल करती नृत्य।।
1496. धुंध
जीवन की हर *धुंध* से, रहें सुरक्षित आप।
संकट कभी न घेरते, कभी न आते ताप।।
1497. धुआँ
*धुआँ*-धुआँ जीवन हुआ, जीना है बेकार।
चलो बुझाते आग को, करे प्रकृति शृंगार।।
1498. कुहासा
बढ़ा *कुहासा* देखकर, घबड़ाएँ क्यों आप।
सूरज ऊगेगा अभी, उसको लेगा नाप।।
1499. ओस
ज्यों-ज्यों ठंडी बढ़ रही, खेलें तृण पर *ओस*।
प्रकृति बिखेरे नव छटा, भरती मानव जोश।।
1500. उजास
सूर्य *उजास* बिखेरता, मन में भरे उमंग।
जीवन में उत्साह भर, जग को करता दंग।।