दोहे मनोज के: भाग - 4
901. बारूद
कट्टरता की सोच ही, मानवता पर भार।
बैठी है बारूद पर, दुनियाँ की सरकार।।
902. मेदनी
निकल पड़ी जन-मेदनी, विंध्याचल को आज।
नव-दुर्गा का पर्व यह, सभी बनेंगे काज।।
903. चीवर
गेरू-चीवर पहनकर, चले राम वनवास।
अनुज लखन सीता चलीं, दशरथ हुए उदास।।
904. कलिका
कोमल कलिका देखकर, हर्षित पालनहार।
फूल खिलेगा बाग में, खुश होगा संसार।।
905. संविधान
संविधान वह ग्रंथ है, पावन सुखद पुनीत।
अधिकारों कर्तव्य का, अनुबंधित यह मीत।।
906. गणतंत्र
भारत के गणतंत्र का, करता जग यशगान।
जनता के हित साधकर, सबका रखता मान।।
907. राष्ट्रगान
राष्ट्रगान हर देश का, गरिमा-शाली मंत्र।
आराधक हम नागरिक, राष्ट्र समर्पण तंत्र।।
908. तिरंगा
हाथ तिरंगा ले चले, राष्ट्रभक्त चहुँ ओर।
गणतंत्री त्यौहार यह, लहराता है भोर।।
909. सौगंध
सेना की सौगंध है, झुके न भारत भाल।
हो दुश्मन कितना बड़ा, होगी सफल न चाल।।
910. रागनी
प्रेम रागनी बह चली, नव युगालों के बीच।
मधुरिम रात गुजर गई, प्रिय स्मृतियाँ सींच।।
911. राग-रागनी
राग-रागनी में बसे, प्रेम भाव का वास।
पूजन अर्चन संग में, प्रभु को आता रास।।
912. मयूर
हर्षित हुआ मयूर है, चला प्रेम संवाद।
देख मयूरी नाचती, मेघों का है नाद।।
913. पुष्पज
वासंती ऋतु आ गई, भौरों का मधु गान।
पुष्पज पर गुंजन करें, किया झूम रस पान।।
914. अंगना (स्त्री)
अंगना के पजना बजे, खुशियों के बरसात।
घर आई नव पाहुनी, शुभ मुहूर्त की रात।।
915. पर्जन्य
बरस उठे पर्जन्य हैं, गरज-धरज के साथ।
झूम उठी है यह धरा, बढ़े कृषक के हाथ।।
916. कुसुमाकर
कुसुमाकर प्रिय आ गया, लेकर मस्त बहार।
गली-गली में झूमते, मस्ती में नर-नार।।
917. वसंत
ऋतु वसंत की धूम है, बाग हुए गुलजार।
रंग-बिरंगे फूल खिल, लुटा रहे हैं प्यार।।
918. पलाश
हँस पलाश कहने लगा, फागुन आया द्वार।
राधा खड़ी उदास है, कान्हा से तकरार।।
919. महुआ
चखा नहीं फिर भी चढ़ा, मादकता का जोर।
महुआ मन में आ बसा, तन में उठी हिलोर।।
920. खुमार
वासंती मौसम हुआ, तन-मन चढ़ा खुमार।
मादक महुआ सा लगे, होली का त्यौहार।।
921. सेमल
सेमल का यह वृक्ष है, गुणकारी भरपूर।
मानव का हित कर रहा, औषधि में है नूर।।
922. संझा
संझा बिरिया बीतती, ईश्वर से मनुहार।
द्वारे-बैठ निहारती, प्रियतम से है प्यार।।
923. पतंग
आशाओं की डोर हो, नित जीवन की भोर।
मन की उड़े पतंग जब, पकड़ रखो हर छोर।।
924. माघ
माघ माह की पूर्णिमा, होती पुण्य महान।
नदी किनारे पर करें, डुबकी-कर फिर दान।।
925. किंशुक (पलाश)
मौसम में किंशुक खिले, मधुमासी त्योहार।
प्रेम-प्रणय की चाहना, प्रकृति करे मनुहार।।
926. वसंत
है बसंत द्वारे खड़ा, ले कर रंग गुलाल।
बैर बुराई अलविदा, जग से हटें मलाल।।
927. टेसू
टेसू ने बिखरा दिए, लाल रेशमी रंग।
परछी में है पिस रही, सिल-बट्टे से भंग।।
928. ऋतुराज
स्वागत है ऋतुराज का, सबके मन को हर्ष।
पीली सरसों खिल उठी, मिलकर करें विमर्ष।।
929. मध्वासव
मध्वासव-मधुमास में, छाया है चहुँ ओर।
बिन पीये ही मगन हैं, होती ऐसी भोर।।
930. विजया (दुर्गा)
विजया से वरदान का, झुका रहे यह शीश।
बनी रहे सब पर कृपा, फल देते जगदीश।।
931. चाहत
मन में चाहत हों बड़ी, ऊँची भरो उड़ान।
अपने पर फैला उड़ो, जग में बढ़ती शान।।
932. नेक
नेक काम सब ही करें, जग में होता नाम।
याद रखे पीढ़ी सदा, देश बनेगा धाम।।
933. फसल
हरित क्रांति है आ गई, भारत है धनवान।
फसल उगाकर भर रहा, पेट और खलिहान।।
934. मिट्टी
मिट्टी की महिमा अलग, सभी झुकाते माथ।
जनम मरण शुभ कार्य में, हरदम रहता साथ।।
935. खलिहान
कृषक भरें खलिहान को, रक्षा करें जवान।
खुशहाली है देश में, जगत करे यशगान।।
836. अन्न
अन्न उपजता खेत में, श्रम जीवी परिणाम।
बहा पसीना कृषक का, प्रातकाल से शाम।।
937. किसान
कुछ किसान दुख में जिएँ, कष्टों की भरमार।
उपज मूल्य अच्छा मिले, मिलकर करें विचार।।
938. बरजोरी
बरजोरी हैं कर रहे, ग्वालबाल प्रिय संग।
श्यामलला भी मल रहे, गालों पर हैं रंग।।
939. चूनर
चूनर भीगी रंग से, कान्हा से तकरार।
राधा भी करने लगीं, रंगों की बौछार।।
940. अँगिया
फागुन का सुन आगमन, होती अँगिया तंग।
उठी हिलोरें प्रेम की, चारों ओर उमंग।।
941. रसिया
रसिया ने फिर छेड़ दी, ढपली लेकर तान।
ब्रज में होरी जल गई, गले मिले वृजभान।।
942. गुलाल
रंगों की बरसात में, उड़ती रही गुलाल।
गले मिल रहे हैं सभी, करने लगे धमाल।।
943. बरसे
गाँवों की चैपाल में, बरसे है रस-रंग।
बारे-बूढ़े झूमकर, करते सबको दंग।।
944. होलिका
जली होलिका रात में, हुआ तमस का अंत।
अपनी संस्कृति को बचा, बने जगत के कंत।।
945. होली
कवियों की होली हुई, चले व्यंग्य के बाण।
हास और परिहास सुन, मिला गमों से त्राण।।
946. बाँह
बाँह थाम कर चल पड़े, मोदी जी के साथ।
देश प्रगति पथ पर चला, बढ़े सभी के हाथ।।
947. छैला
छैला बनकर घूमते, गाँव-गली पर भार।
बनें मुसीबत हर घड़ी, कैसे हो उद्धार।।
948. महान
हाथ जोड़कर कह रहा, भारत देश महान।
शांति और सद्भाव से, है मानव कल्यान।।
949. ग्रीष्म
ग्रीष्म-तप रहा मार्च से, कमर कसे है जून।
जब आएगा नव तपा, तपन बढ़ेगी दून।।
950. चिरैया
पतझर में तरु झर गए, ग्रीष्म मचाए शोर।
उड़ीं चिरैया देखकर, कल को यहाँ न भोर।।
951. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, ममता देखे राह।
दाना रोज बिखेरती, रही अधूरी चाह।।
952. लू
भरी दुपहरी में लगे, लू की गरम थपेड़।
कर्मवीर अब कृषक भी, दिखते सभी अधेड़।।
953. तपन
सूरज की अब तपन का, दिखा रौद्र अवतार।
सूख रहे सरवर कुआँ, सबको चढ़ा बुखार।।
954. पनघट
पनघट बिछुड़े गाँव से, टूटा घर-संवाद।
सुख दुख की टूटी कड़ी, घर-घर में अवसाद।।
955. कुआँ
कुआँ नहीं अब शहर में, ट्यूबबैल हैं गाँव।
पीने को पानी नहीं, दिखती कहीं न छाँव।।
956. जेठ
जेठ दुपहरी की तपन, दिन हो चाहे रात।
उमस बढ़ाती जा रही, पहुँचाती आघात।।
957. ताल
ताल सभी बेहाल अब, नदी गई है सूख।
तरुवर झरकर ठूँठ से, दिखे नहीं वे रूख।।
958. पंछी
प्रकृति हुई अब बावली, बदला है परिवेश।
पंछी का कलरव कहाँ, चले गए परदेश।।
959. यश-अपयश
यश-अपयश की डोर है, हर मानव के हाथ।
जितना उसे सहेजता, फल मिलता है साथ।।
960. विचार
जीवन कैसा जी रहे, मिलकर करो विचार।
लोक और परलोक में, मिलें पुष्प के हार।।
961. अभिमान
हमसे अच्छा कौन है, करो न यह अभिमान।
कूएँ के मेंढक सदा, रखें यही बस शान।।
962. सच्चा-साथी
मन सच्चा-साथी बने, समझो नहीं अनाथ।
निर्भय होकर तुम बढ़ो, हरदम रहता साथ।।
963. समय
चलो समय के साथ में, समय बड़ा अनमोल।
गुजरा समय न लौटता, ज्ञानी जन के बोल।।
964. राह
राह चुनो अच्छी सदा, जीवन में है भोर।
गलत राह में जब बढं़े, तम का बढ़ता जोर।।
965. मोहन-भोग
दिखे जगत में बहुत से, भाँति-भाँति के लोग।
तृप्त-पेट को ही भरें, देते मोहन भोग।।
966. अकड़
अकड़ दिखाते जो बहुत, पागल हैं वे लोग।
विनम्र भाव से जो जिएँ, घेरे कभी न रोग।।
967. सच्चा-रिश्ता
चलो आपके साथ हैं, कदम बढ़ाते साथ।
सच्चा-रिश्ता है वही, थामे हरदम हाथ।।
968. मन-मंदिर
मन-मंदिर में राम हों, रक्षक तब हनुमान।
सीता रूपी शांति से, सुखद-सुयश धनवान।।
969. रामराज्य
रामराज्य का आसरा, राजनीति की डोर।
देख पतंगें गगन में, पकड़ न पाते छोर।।
970. अनुभव
अनुभव कहता है यही, दुख में जो दे साथ।
सच्चा मानव है वही, कभी न छोड़ें हाथ।।
971. दोहा
दोहा में ंदेश हो, भाषा, सरल, सुबोध।
सहज भाव में ही लिखें, दिखे नहीं अवरोघ।।
972. ताल
ताल हुए बेताल अब, नीर गया है सूख।
सूरज की गर्मी विकट, उजड़ रहे हैं रूख।।
973. नदी
नदी हुई है बावली, पकड़ी सकरी राह।
सूना तट है देखता, जीवन की फिर चाह।।
974. पोखर
पोखर दिखते घाव से, तड़प उठे हैं जीव।
उपचारों के नाम पर, खड़ी कर रहे नीव।।
975. झील
झील हुई ओझल अभी, नाव सो रही रेत।
तरबूजे, सब्जी उगीं, झील हो गई खेत।।
976. झरने
हरियाली गुम हो रही, सूरज करता दाह।
प्यासे झरने है खड़े, दर्शक भूले राह।।
977. अतिक्रमण
बढ़ा अतिक्रमण देश में, खड़ी कर रहा खाट।
राष्ट्र-सृजन के दौर में, बुलडोजर के ठाट।।
978. बुलडोजर
बुलडोजर से पथ बनें, बुलडोजर से बाँध।
पर्वत को भी तोड़ता, बने प्रगति का काँध।।
979. वेदांत
शांति और सौहार्द से, आच्छादित वेदांत।
धर्म ध्वजा की शान यह, सदा रहा सिद्धांत।।
980. विहान
आभा बिखरी क्षितिज में, खुशियों की सौगात।
नव विहान अब आ गया, बीती तम की रात।।
981. संविधान
संविधान से झाँकती, मानवता की बात।
दलगत की मजबूरियाँ, पहुँचाती आघात।।
982. ओजस्वी
मन ओजस्वी जब रहे, कहते तभी मनोज।
सरवर के अंतस उगंे, मोहक लगें सरोज।।
983. आराधना
देवों की आराधना, करते हैं सब लोग।
कृपा रहे उनकी सदा, भगें व्याधि अरु रोग।।
984. अमीर
दिल से बने अमीर सब, कब धन आया काम।
साथ नहीं ले जा सकें, हो जाती जब शाम।।
985. अमर
नाम अमर होता वही, बड़ा करे जो काम।
परहित में जो प्राण दे, बने उसी का धाम।।
986. महल
महल अटारी हों बड़ी, दिल का छोटा द्वार।
स्वार्थ करे अठखेलियाँ, बिछुड़ें पालनहार।।
987. घर
छोटा-घर पर दिल बड़ा, हँसी खुशी किल्लोल।
जीवन सुखमय से कटे, होता यह अनमोल।।
988. ममता
माँ की ममता ढूँढ़ती, वापस मिले दुलार।
वृद्धावस्था के समय, बसे दिलों में प्यार।।
989. वृद्धाश्रम
बेटों के संसार में, वृद्धों का क्या काम।
वृद्धाश्रम में रख दिया, वही हुए बदनाम।।
990. सूरज
आँख दिखा सूरज चला, अस्ताचल की ओर।
चंदा ने शीतल किया, धरती का हर छोर।।
991. धरती
धरती की पीड़ा यही, उजड़ा घर संसार।
खनिज-संपदा लुट गई, वृक्षों का संहार।।
992. गगन
नील गगन में उड़ रहे, पंछी संग जहाज।
मानव के पर उग गए, समय कर रहा नाज।।
993. पारा
सूरज का पारा चढ़ा, बढ़ा ग्रीष्म का रूप।
धरती तप कर कह उठी, बदरी लगे अनूप।।
994. पखेरू
प्राण पखेरू उड़ गए, तन हो गया निढाल।
अर्थी सज कर चल पड़ी, रिश्ते सब बेहाल।।
995. अनिकेत
पुत्र मोह कैकेई घिरी, वर माँगे अभिप्रेत।
चले राम सिय लखन संग, हुए राम अनिकेत।।
996. पंछी
प्रात पखेरू उड़ चले, दानों की है खोज।
नन्हें-पंछी डाल पर, राह निहारें रोज।।
997. नई सदी
नई सदी अब आ गई, चैराहे हर ओर।
भ्रमित हो रहे हैं सभी, पकड़ें किसका छोर।।
998. सागर
सागर की लहरें सदा, करतीं आत्मविभोर।
जीवन के संघर्ष में, प्रेरक हैं हिलकोर।।
999. सरोवर
शांत सरोवर दे रहा, जग को यह संदेश।
अंतस से उगते कमल, छवि मोहक परिवेश।।
1000. हुंकार
सागर की सिंह गर्जना, भरती है हुंकार।
लड़ें चुनौती से सभी, कभी न मिलती हार।।
1001. छंद
छंदबद्ध कविता लिखें, पाठक पढ़ें प्रवीण ।
गायक गाएँ मधुर स्वर, समझें हर ग्रामीण।।
1002. शब्द
शब्द शब्द में ओज है, शब्द शब्द माधुर्य।
हिन्दी में लालित्य है, कविता का चातुर्य।।
1003. ग्रंथ
ग्रंथ अनेकों हैं लिखे, ऋषि मुनियों के काल।
विश्व जगत में आज हम, सबसे मालामाल ।।
1004. संवाद
परम्परा संवाद की, रही हमारे देश।
द्वापर में श्रीकृष्ण का, शांति-दूत संदेश ।।
1005. भाषा
भाषा में संवाद ही, कहलाता अनमोल ।
वाणी में हो मधुरता, लगते अमरित बोल।।
1006. वाणी
मीठी वाणी बोलिए, करिए प्रिय संवाद।
सुखद रहे वातावरण, कभी न हो अवसाद।।
1007. व्याकरण
भाषा में है व्याकरण, अभिव्यक्ति की जान।
सक्षम हिन्दी कह रही, हमको बड़ा गुमान।।
1008. वृष्टि
ग्रीष्म काल के बाद ही, होती अमरित ’वृष्टि’।
धरा स्वयं शृंगार कर, रचे अनोखी सृष्टि।।
1009. धाराधर
इन्द्र देव ने ले रखा, ’धाराधर’ का भार।
प्राणी हैं निश्चिंत सब, ईश्वर ही आधार।।
1010. बरसात
यह मौसम ’बरसात’ का, करता है फरियाद।
प्रियतम का हो साथ तब, दूर हटें अवसाद।।
1011. प्यास
’प्यास’ अधूरी रह गयी,बिछुड़ गए फिर श्याम।
ब्रज की रज व्याकुल हुई, छोड़ चले ब्रजधाम।।
1012. पुष्करिणी
’पुष्करिणी’ के ताल में, खिलें कमल अनमोल।
नंदी के मुख से बहे, अविरल अमरित घोल।।
1013. पावस
पावस का सुन आगमन,दिल में उठे हिलोर।
धरा गगन हर्षित हुआ, नाच उठा मन मोर ।।
1014. अनुभूति
पावस देती है सुखद, हरियाली अनुभूति।
करें मंत्रणा हम सभी, जल-संरक्षण नीति।।
1015. बरसा
मेघों ने बरसा दिया, जल की अमरित बूँद।
चलो सहेजें मिल अभी, आँखों को मत मूँद।।
1016. धन
धन की बरसा हो रही, हुआ देश धनवान।
खड़ा पड़ोसी रो रहा, देखो पाकिस्तान।।
1017. फुहार
बरखा ने जब कर दिया, अमरित की बौछार।
ग्रीष्म हुआअब अलविदा,तन-मन पड़ीं फुहार।।
1018. खेत
बरसा की बूँदें गिरीं, हर्षित हुआ किसान।
चला खेत की ओर फिर, करने नया विहान।।
1019. पसीना
खेत और खलिहान में, फिर झाँकी मुस्कान।
बहे पसीना कृषक का, पहने तब परिधान।।
1020. बीज
बरखा की बूँदें गिरीं, हर्षित माटी-बीज।
कृषक देखता है उसे, फिर आएँगे तीज।।
1021. किस्मत
बीज अंकुरित हो गए, देखे विहँस किसान।
ईश्वर ने किस्मत लिखी, होगा नया विहान।।
1022. बदरी
बदरी नभ में छा गई, लुभा रही चितचोर।
पानी की बूँदें गिरें, तब नाचे मन मोर।।
1023. बिजली
बिजली चमकी गगन में, लरज रहे हैं नैन।
प्रियतम को पाती लिखी, लौटो घर तब चैन।।
1024. मेघ
गरज चमक कर मेघ ने, भेजी है सौगात।
शीतल करने आ रही, मनभावन बरसात।।
1025. चैमास
जब आया चैमास यह, है पुलकित मधुमास।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, मिलकर खेलें रास।।
1026. ताल
चैमासे का आगमन, सुनकर हैं खुशहाल।
ताल तलैया बावली, नाच उठी दे ताल।।
1027. पसीना
देख पसीना बह रहा, कृषक खड़ा है खेत।
जेठ पूस सावन-झरे, हर फसलों को सेत।।
1028. जेठ
जेठ उगलता आग है, श्रमिक रहा है ताप।
अग्नि पेट की शांत हो, करे कर्म का जाप।।
1029. अग्नि
अग्नि-परीक्षा की घड़ी, करो विवेकी बात।
आपस में मिलकर रहें, दुश्मन को दें मात।।
1030. ज्वाला
मरघट में ज्वाला जली, दे जाती संदेश।
मानव की गति है यही, छोड़ चला वह वेश।।
1031. आतप
सूरज का आतप बड़ा, दे जाता संताप।
वर्षा ऋतु ही रोकती, सबका रुदन-प्रलाप।।
1032. भूख
खुश होता है वह श्रमिक, उसको मिले रसूख।
उसके घर चूल्हा जले, मिटे पेट की भूख।।
1033. मनमीत
मन से मन का हो मिलन, बन जाता मनमीत।
शब्दों की माला बने, मोहक बनता गीत।।
1034. पारिजात
इन्द्रप्रस्थ उद्यान की, पारिजात थी जान।
स्वर्ग धरा से वृक्ष यह, लाए कृपा निधान।।
1035. प्रपात
संगमरमर की वादियाँ, भेड़ाघाट प्रपात।
शरद पूर्णिमा रात में, करे स्वर्ग को मात।।
1036. अंगार
जेठ माह में नव तपा, उगले मुख अंगार।
धरती को व्याकुल करे, हो कैसे उद्धार।।
1037. उपवास
तन-मन की शुद्धि करे, जो करता उपवास।
दीर्घायु जीवन जिए, स्वस्थ निरोगी आस।।
1038. बिजली
बिजली कड़की गगन में, मेघा छाए भोर।
सूरज की गर्मी गई, मानसून का शोर।।
1039. पानी
जीवन पानी-बुलबुला, जीने का हो ढंग।
समझा जिसने है इसे, झूमा पी कर भंग।।
1040. हवा
शुद्ध हवा बहती यहाँ, वृक्षों की भरमार।
इठलाती नदियाँ बहें, न्याग्रा-सी जलधार।।
1041. तूफान
मानव साहस से भरा, कभी न मानी हार।
जीवन में तूफान सब, हैं बेबस लाचार।।
1045. आँधी
घाव दिया आँधी गई, छोड़ा जख्म निशान।
उपचारों से भर गया, फिर से उगा विहान।।
1046. तपस्या
करें तपस्या साधना, सुखमय जीवन मंत्र।
सतकर्मों की राह से, सुखद सिद्धि का तंत्र।।
1047. निर्भीक
मन होता निर्भीक जब, जग भी देता साथ।
राह दिखाता जगत को, सबका झुकता माथ।।
1048. आचरण
नेक आचरण हैं उचित, मिले सफलता नेक।
नीति नियम परिपालना, जाग्रत रखें विवेक।।
1049. मंत्र
शिक्षक देते मंत्र हैं, करें साधना-जाप।
कदम चूमता तब समय, सफल तभी हैं आप।।
1050. गूँज
मन मंदिर में गूँजती, ऋद्धा की वह डोर।
गूँज रही संसार में, होती तब शुभ-भोर।।
1051. अलौकिक
अलौकिक प्रतिभा लिए, कुछ जन्में हैं लोग।
उनके पुण्य प्रताप से, मिलता सबको भोग।।
1052. संस्कार
वृक्षों की पूजा करी, भूले सब संस्कार।
हाथ कुल्हाड़ी थाम ली, काटा मूलाधार।।
1053. प्रियतम
हरी-भरी है यह धरा, प्राण-वायु चहुँ ओर।
मन आनंदित है यहाँ, लगता प्रिय हर छोर।।
1054. धरती
धरती कहती गगन से, कितना है विस्तार।
तेरा तो कुछ है नहीं, बस सूना संसार।।
1055. गगन
मेघ गगन में छा रहे, सबको लगी है आस।
जेठ गया आषाढ़ अब, सुखद हुआ आभास।।
1056. पाताल
सूख गया पाताल अब, रोता कृषक निराश।
इन्द्र देव वर्षा करें, प्रकृति का न हो नाश।।
1057. त्रिलोक
गूँजे सुखद त्रिलोक में, प्रभु की जय जयकार।
भक्तजनों की धूम है, लीला अपरंपार।।
1058. त्रिभुवन
शिवशंकर त्रिभुवन बसे, काशी शिव का धाम।
सोमवार का शुभ दिवस, विश्वनाथ का नाम।।
1059. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम-पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1060. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे -केश।
पावों में अलता लगा, चली सजन के देश।।
1061. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे, ऋतु बसंत की धूप।।
1062. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ हैं, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1063. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ रहा, भाई का संदेश।।
1064. आरंभ
करें कार्य आरंभ शुभ, लेकर प्रभु का नाम।
मिले सफलता आपको, पूरण होते काम।।
1065. प्रारब्ध
मिलता है सबको वही, लिखता प्रभु प्रारब्ध।
अधिक न इससे पा सके, कितना हो उपलब्ध।।
1066. आदि
आदि शक्ति दुर्गा बनीं, जग की तारण हार।
शत्रुदलन कलिमल हरण, रक्षक पालनहार।।
1067. अंत
अंत भला तो सब भला, कहते गुणी सुजान।
कर्म करें नित नेक सब, मदद करें भगवान।।
1068. मध्य
मध्य रात्रि शारद-निशा, खिला चाँद आकाश।
तारागण झिलमिल करें, बिखरा गए प्रकाश।।
1069. प्रपंच
छल-प्रपंच का दौर यह, चला देश में आज।
समझदार जनता हुई, कैसे चले सुराज।।
1070. पावस
पावस की बूँदें गिरीं, हर्षित फिर खलिहान।
धरा प्रफुल्लित हो उठी, हरित क्रांति अनुमान।।
1071. पपीहा
गूँज पपीहा की सुनी, अब तक बुझी न प्यास।
आम्र कुंज में बैठकर, स्वाति बूँद की आस।।
1072. मेघ
मेघ गरज कर चल दिए, देकर यह संदेश।
बरसेंगे उस देश में, भक्ति कृष्ण -अवधेश।।
1073. हरियाली
शिव की अब आराधना, हरियाली की धूम।
काँवड़ यात्रा चल पड़ी, आया सावन झूम।।
1074. घटा
छाई सावन की घटा, रिमझिम पड़ी फुहार।
भीगा तन उल्हास से, उमड़ा मन में प्यार।।
1075. पाती
पाती लिखकर भेजती, बाबुल आँगन देश।
दरस-बरस अँखियन बसी, सावन का उन्मेश।।
1076. बाबुल
सावन आया है सखी, चल बाबुल के देश।
आँगन में झूले पड़े, बदलेंगे परिवेश।।
1077. कजरी
झूला सावन में लगें, गले मिलें मनमीत।
कजरी की धुन में सभी, गातीं महिला गीत।
1078. देवी
देवी की आराधना, कजरी-सावन-गीत।
नारी करतीं प्रार्थना, जीवन-पथ में जीत।।
1079. त्योहार
सावन-भादों माह में, पड़ें तीज-त्यौहार।
संसाधन कैसे जुटें, महँगाई की मार।।
1080. तीज
भाद्र माह कृष्ण पक्ष को, आती तृतिया तीज ।
महिला निर्जल वृत करें, दीर्घ आयु ताबीज।।
1082. सिंदूर
लाड़ो चूड़ी पहन कर, भर माथे िसंदूर।
चली पराए देश में, मात-पिता मजबूर।।
1083. चूड़ी
शृंगारित परिधान में, चूड़ी ही अनमोल।
रंग बिरंगी चूड़ियाँ, खनकातीं कुछ बोल।।
1084. मेहँदी
सपनों की डोली सजा, आई पति के पास।
हाथों में रच-मेहँदी, पिया मिलन की आस।।
1085. मनभावनी
लालरँग मेहँदी रची, आकर्षित सब लोग।
प्रियतम के मनभावनी, मिलते अनुपम भोग।।
1086. झूला
सावन की प्यारी घटा, लुभा रही चितचोर।
झूला झूलें चल सखी, हरियाली चहुँ ओर।।
1087. जन्माष्टमी
सावन में झूला सजें, कृष्ण रहे हैं झूल।
भारत में जन्माष्टमी, मना रहे अनुकूल।।
1088. अतिवृष्टि
अल्प-वृष्टि, अति-वृष्टि से, जूझ रहा संसार।
पर्यावरण बचाइए, तब होगा उद्धार।।
1089. पर्व
भारत में जन्माष्टमी, पर्व मनाते लोग।
पूजन अर्चन संग में, लगते लड्डू भोग।।
1090. सखी
हाथों में रच मेहँदी, छाईं खुशियाँ भोर।
झूला झूलें दो सखी, नभ का नाँपें छोर।।
1091. साजन
रचा हाथ में मेहँदी, दुल्हन का शृंगार।
सपनों में साजन बसे, छोड़ा घर संसार।।
1092. परहित
अपने हित की चाह में, मानव बना पिशाच।
परहित सेवा भाव से, कभी न आती आँच।।
1093. अधर
अधर फड़कते रह गए, प्रियतम आए द्वार।
प्रेम पियासे ही रहे, मिला न कुछ उपहार।।
1094. अलता
रच-हाथों में मेहँदी, बाँधा बिखरे केश।
पाँवों में अलता सजा, चली सजन के देश।।
1095. अलकें
अलकें लटकीं गाल पर, सपन सलोना रूप।
आँखों में साजन बसे,़ ऋतु बसंत की धूप।।
1096. ओष्ठ
कंपन करते ओष्ठ जब, पिया-सेज-शृंगार।
नव जीवन की कल्पना, खड़े प्रेम के द्वार।।
1097. अलि
अलि ने कानों में कहा, जाती बाबुल देश।
रक्षाबंधन आ गया, भाई का संदेश।।
1098. पराग
कण-पराग के चुन रहे, भ्रमर कर रहे गान।
कली झूमतीं दिख रही, प्रकृति करे अभिमान।।
1099. काजल
नयनों में काजल लगा, देख रही सुकुमार।
चितवन गोरा रंग ले, लगे मोहनी नार।।
1100. किताब
खोली प्रेम किताब की, सभी हो गए धन्य।
नेह सरोवर डूबकर, फिर बरसें पर्जन्य।।
1101. फुहार
तन पर पड़ी फुहार जब, वर्षा का संकेत।
सावन की बरसात में, कजरी का समवेत।।
1102. गौरैया
गौरैया दिखती नहीं, राह गईं हैं भूल।
घर-आँगन सूने पड़े, हर मन चुभते शूल।।
1103. झरोखा
स्वयं झरोखा झाँकिए, अन्तर्मन में आप।
दूषित भाव नकारिए, दूर करें संताप।।
1104. क्षीर (दूध)
नीर-क्षीर का भेदकर, हटा अँधेरी रात।
हर मानस में हँस है, रखें विवेकी बात।।
1105. छीर (वस्त्र)
भूख गरीबी में पिसा, किसने समझी पीर।
अश्रु बहे इतने सुनो, भींग चुके हर छीर।।
1106. तीर
कर्कश वाणी तीर सम, उतरे दिल के पार।
मीठी वाणी बन शहद, सदा करे उपचार।।
1107. बिजना
बिजना डोले हाथ में, तपी दुपहरी धूप।
चाहत निर्मल नीर की, घर-आँगन में कूप।।
1108. मौका
मौका कभी न चूकिए, हिस्से में शुभ काम।
ईश्वर का वरदान यह, जग में रोशन नाम।।
1109. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, झुका रहे सब शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1110. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1111. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान ।।
1112. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1113. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस ।।
1114. अंतर्मन
अंतर्मन में नेह का, बिखरे प्रेम प्रकाश।
मानव जीवन सुखद हो, हर मानव की आश।।
1115. ऊर्जा
शांति प्रेम सौहार्द को, सच्चे मन से खोज।
भारत की ऊर्जा यही, मन में रहता ओज।।
1116. वातायन (खिड़की)
उर-वातायन खुली रख, ताने नया वितान।
जीवन सुखमय तब बने, होगा सुखद विहान।।
1117. वितान (टेंट)
अंतर्मन की यह व्यथा, किससे करें बखान।
फुटपाथों पर सो रहे, सिर पर नहीं वितान।।
1118. विहान (सुबह)
खड़ा है सीना तानकर, भारत देश महान।
सदी बीसवीं कह रही, होगा नवल विहान।।
1119. विवान (सूरज की किरणें)
अंधकार को चीर कर, निकलीं सुबह विवान।
जग को किया प्रकाशमय, फिर भी नहीं गुमान।।
1120. व्रत
ब्रह्मचर्य-व्रत-साधना, रहा देवव्रत नाम।
श्री शांतनु के पुत्र थे, अटल प्रतिज्ञा-धाम।।
1121. उपवास
तन-मन को निर्मल रखे, पूजन व्रत उपवास।
जीवन सुखद बनाइए, हटें सभी संत्रास।।
1122. फल
फल की इच्छा छोड़कर, कर्म करें अविराम।
गीता में श्री कृष्ण का, सार-तत्व अभिराम।।
1123. निर्जल
तीजा के त्यौहार में, निर्जल व्रत उपवास।
शिव की है आराधना, पावन भादों मास।।
1124. मौन
विजयी होता क्रोध पर, जिसने सीखा मौन।
सुखमय जीवन ही जिया, व्यर्थ लड़ा है कौन।।
1125. संस्कृति
देश-विदेशों में रहे, कभी न उतरा रंग।
अनुष्ठान व्रत जप सभी, संस्कृति के हैं अंग।
1126. आराधना
ईश्वर की आराधना, निर्मल-मन उपवास।
भक्ति-भाव की भावना, सहज सरल है खास।।
1127. फल
फल की सबको कामना, वृक्षों का उपकार।
पालें-पोसें घर-धरा, उनका हो सत्कार।।
1128. निर्मल
निर्जल जीवन कष्टमय, चाहत निर्मल नीर।
जीवन का आधार यह, कब सुलझेगी पीर।।
1129. शक्ति
बड़ी शक्ति है मौन में, कहता रहा मनोज।
रखता संकट काल में, अंतर्मन में ओज।।
1130. अंजन
आँखों में अंजन लगा, माँ ने किया दुलार।
कोई नजर न लग सके, किया मातु उपचार।।
1131. आनन
आनन-फानन चल दिए, पूँछ न पाए हाल।
सीमा पर वापस गए, चूमा माँ का भाल।।
1132. आनन (चेहरा)
आनन पढ़ना यदि सभी, लेते मिलकर सीख।
दश-आनन को द्वार से, कभी न मिलती भीख।।
1133. आनन
गज-आनन की वंदना, करती बुद्धि विकास।
दुख की हटती पोटली, बिखरे ज्ञान उजास।।
1134. आमंत्रण
आमंत्रण है आपको, खुला हुआ है द्वार।
प्रेम पत्रिका है प्रिये, करता हूँ मनुहार।।
1135. आँचल
गाँवों का आँचल सुखद, मिले सभी को छाँव।
हरियाली से है घिरा, श्रमिकजनो का गाँव।।
1136. अलकें
घुँघराली अलकें लटक, चूमें अधर कपोल।
कान्हा खड़े निहारते, झूल रहीं हिंडोल।।
1137. अक्षत
रोली-अक्षत का तिलक, लगा रहे प्रभु-शीश।
सुख वैभव बरसे सदा, कृपा करें जगदीश।।
1138. अक्षर
सरस्वती आराधना, मंदिर अक्षर धाम।
ज्ञानार्जन की साधना, ज्ञानी करें प्रणाम।।
1139. अंकुर
अंकुर निकसे धरा से, दिया जगत को ज्ञान।
यही हमारी मातु है, करें सभी गुणगान।।
1140. अंजन
आँखों में अंजन लगा, चली पिया के देश।
सपनों की दुनिया दिखे, बुला रहा परिवेश।।
1141. अधीर
मानव हुआ अधीर अब, रामराज्य की आस।
दौर-विसंगति का बढ़ा, चुभी गले में फाँस।।
1142. श्रेष्ठ
भारत जग में श्रेष्ठ है, मिलते जहाँ सुमित्र।
धर्माें का संगम यहाँ, नदियाँ मिलें पवित्र।।
1143. छाँव
माँ का आँचल है सुखद, मिले सदा ही छाँव।
कष्टों से जब भी घिरा, मिली गोद में ठाँव।।
1144. कृतार्थ
मन कृतार्थ तब हो गया, देखस मित्र संदेश।
याद किया परदेश में, मिला सुखद परिवेश।।
1145. कलकंठी
कलकंठी-आवाज सुन, दिल आनंद विभोर।
वन-उपवन में गूँजता, नाच उठा मनमोर।।
1146. कुंदन
दमक रहा कुंदन सरिस, मुखड़ा चंद्र किशोर।
यौवन का यह रूप है, आत्ममुग्ध चहुँ ओर।।
1147. गुंजार
चीता का सुन आगमन, भारत में उन्मेश।
कोयल की गुंजार से, झंकृत मध्यप्रदेश।।
1148. घनमाला
घनमाला आकाश में, छाई है चहुँ ओर।
बरस रहे हैं भूमि पर, जैसे आत्मविभोर।।
1149. नेकी
नेकी खड़ी उदास है, लालच का बाजार।
मानवता मूरत बनी, दिखी बहुत लाचार।।
1150. परिधान
बैठ गया यजमान जब, पहन नया परिधान।
देख रहा ईश्वर उसे, मन में है अभिमान।।
1151. अनाथ
देखो किसी अनाथ को, उसका दे दो साथ।
अगर सहारा मिल गया, होगा नहीं अनाथ।।
1152. सौजन्य
सही मित्र सौजन्य से, मिलते हैं हर बार।
दुश्मन खड़े निहारते, मन में पाले खार।।
1153. सरपंच
गाँवों के सरपंच ने, दिया सभी को ज्ञान।
फसलों की रक्षा करें, प्राण यही भगवान।।
1154. तृषा,(प्यास)
मानव की यह तृषा ही, करवाती नित खोज।
संसाधन को जोड़कर, भरती मन में ओज।।
1155. मृदा,(मिट्टी)
कृषक मृदा पहचानता, बोता फिर है बीज।
लापरवाही यदि हुई, वह रोया नाचीज।।
1156. मृणाल,(कमल, की जड़)
कीचड़-बीच मृणाल ने, दिखलाया वह रूप।
पोखर सम्मानित हुआ, सबको लगा अनूप।।
1157. तृषित
तृषित रहे जनता अगर, नेता वह बेकार।
स्वार्थी नेता डूबते, फँसे नाव मँझधार ।।
1158. मृषा (झूठ-मूठ)
नयन मृषा कब बोलते, मुख से निकलें बोल।
सच्चाई को परखने, दोनों को लें तौल।।
1159. मृषा
प्रिये मृषा मत बोलिए, बनती नहीं है बात।
पछताते हम उम्र भर, बस रोते दिन-रात।।
1160. पोखर
पोखर में मृणाल खिले, मुग्ध हुआ संसार।
सूरज का पारा चढ़ा, प्रकृति करे मनुहार।।
1161. दीपक
मानवता की ज्योत से, नव प्रकाश की पूर्ति।
सबके अन्तर्मन जगे, मंगल-दीपक-मूर्ति।।
1162. वर्तिका
जले वर्तिका दीप की, फैलाती उजियार।
राह दिखाती जगत को, संकट से उद्धार।।
1163. दीवाली
रात अमावस की रही, घिरा तमस चहुँ ओर।
राम अयोध्या आ गए, दीवाली की भ् ाोर।।
1164. रजनी
रजनी का घूँघट उठा, दीपक आत्म विभोर।
जीवन साथी मिल गया , बना वही चितचोर।।
1165. रंगोली
रंगोली द्वारे सजे, आए जब त्यौहार।
रंग बिरंगे पर्व सब, खुशियाँ भरें हजार।।
1166. रोशनी
दीवाली की रोशनी, बिखराती उजियार।
प्रखर रश्मियाँ दीप की, करे तमस संहार ।।
1167. उजियार
हिन्दू-संस्कृति है भली, नहीं किसी से बैर।
फैलाती उजियार को, माँगे सबकी खैर।।
1168. जगमग
जगमग दीवाली दिखी, देश कनाडा यार।
आतिशबाजी देख कर, सही लगा त्यौहार।।
1169. तम
तम घिरता ही जा रहा, सीमा के उस पार।
चीन-पाक आतंक का, कैसे हो उपचार।।
1170. दीप
दीप-मालिके कर कृपा, फैला दे उजियार।
सद्भावों की भोर हो, खुलें प्रगति के द्वार।।
1171. साँसें
गिनती की साँसें मिली, जीवन है अनमोल।
सद्कर्मों पर ध्यान दें, सब धर्मों के बोल।।
1172. आँखें
आँखें फटी निहारतीं, कलियुग की करतूत।
प्रेमी हत्या कर रहे, धोएँ सभी सबूत।।
1173. बातें
खत्म नहीं बातें हुईं, बीत गई जब रात।
प्रेमी ने हँस कर कहा, कल फिर होगी बात।।
1174. रातें
रातें अब छोटी हुईं, दिन हो गए जवान।
बिस्तर पर करवट बदल, बैठा हिन्दुस्तान।।
1175. घातें
कितनी घातें दे रहे, शत्रु-पड़ोसी देश।
छद्म रूप धर कर सदा, पहुँचाते हैं क्लेश।।
1176. अवसर
प्रभु देता अवसर सदा, रखिए इसका ध्यान।
चूक गए तो फिर नहीं, मिल पाता सम्मान।।
1177. अनुग्रह
हुआ अनुग्रह राम का, पूर्ण हुए सब काज।
विश्व पटल पर छा गया, भारतवंशी राज।।
1178. आपदा
करें प्रबंधन आपदा, संकट से हो मुक्ति।
बड़े बुजुर्गों से सदा, मिली हमें यह युक्ति।।
1179. प्रशस्ति
सद्कर्मों का मान हो, स्वागत मिले प्रशस्ति।
बदले मानव आचरण, यही देश की शक्ति।।
1180. प्रतिष्ठा
बढ़े प्रतिष्ठा देश की, मिलकर करें प्रयास।
मतभेदों को भूलकर, फसल उगाएँ खास।।
1181. ललाम
मोहक छवि श्री राम की, द्वापर युग घनश्याम।
दर्शन पाकर धन्य सब, मंजुल ललित ललाम।।
1182. लावण्य
नारी के लावण्य पर, मुग्ध हुए सब लोग।
मन दर्पण में झाँकिए, मिलें सुखों के भोग।।
1183. लौकिक
लौकिक परलौकिक सभी, सुख पाता इंसान।
प्रेम भक्ति में जो मगन, वही रहा धनवान।।
1184. लतिका
लतिका है मनभावनी, बँधे नेह की डोर।
लिपटे प्रेम से अंग में, रहती भाव विभोर।।
1185. ललक
जीवन जीने की ललक, हर प्राणी की चाह।
मिलकर सुखद बनाइए, यही नेक है राह।।
1186. शीत
शीत-लहर से काँपता, तन-मन पात समान।
ओढ़ रजाई बावले, क्यों बनता नादान।।
1187. शरद
शरद सुहानी छा गई, करती हर्ष विभोर।
रंगबिरंगी तितलियाँ, भ्रमर मचाते शोर।।
1188. माघ
माघ-पूस की रात में, सड़कें सब सुनसान।
शीत हवा बहती विकट, काँपें सबके प्रान।।
1189. पूस
कहा माघ ने पूस से, तेरी क्या औकात।
अभी तुझे बतला रहा, दूँगा निश्चित मात।।
1190. कुहासा
बढ़ा कुहासा ओस का, गाड़ी चलतीं लेट।
प्लेट-फार्म में बैठकर, प्रिय कब होगी भेंट।।
1191. चाँदनी
रात चाँदनी में मिले, प्रेमी युगल चकोर।
प्रणय गीत में मग्न हो, नाच उठा मन मोर।।
1192. स्वप्न
स्वप्न देखता रह गया, लोकतंत्र का भोर।
वर्ष गुजरते ही गए, शेष रह गया शोर।।
1193. परीक्षा
घड़ी परीक्षा की यही, दुख में जो दे साथ।
अवरोधों को दूर कर, थामें प्रिय का हाथ।।
1194. विलगाव
घाटी के विलगाव में, नेतागण कुछ लिप्त।
उनके कारण देश यह, हुआ बहुत अभिशप्त।।
1195. मिलन
प्रणय मिलन की है घड़ी, गुजरी तम की रात।
मिटी दूरियाँ हैं सभी, नेह प्रेम की बात।।
1196. आमंत्रण
आमंत्रण नव वर्ष को, बजे सुखद संगीत।
रूठे बिछुड़े जो खड़े, गले मिलें मनमीत।।
1197. अभ्यर्थना
प्रभु से कर अभ्यर्थना, सफल करें सब काज।
रक्षा जीवन की करें, सुखद शांति का राज।।
1198. आचमन
बुरे कर्म का आचमन, करना मिलकर मीत।
जीवन होगा तब सफल, गाएँगे मिल गीत।।
1199. अंचन
आँखों में अंजन लगा, निकली प्रिय चितचोर।
प्रेमी जन हैं रीझते, मन में नाचे मोर।।
1200. अंगीकार
तुमने अंगीकार कर, जगा दिया सौभाग्य।
जीवन के दुख हर लिए, भगा दिया वैराग्य।।