पिता श्री राम नाथ शुक्ल ‘श्री नाथ’ की इस पुस्तक को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत में मुझे काफी समय लग गया । जिसके अनेक कारण थे । मेरे द्वारा डायरी के लगभग 245 पृष्ठों को कम्पोजिंग के बाद मेरे पोता-पोति के वीडियो गेम की चाहत ने कम्प्यूटर-वायरस की वजह से डेढ़ माह की सारी मेहनत बेकार कर डाली । कुछ समय तक तो मैं हार मान कर बैठा गया किन्तु फिर उनकी लिखी डायरी ने मुझे सम्मोहित किया । मेरे अंतरमन ने मुझे ढाढस बंधाया और प्रेरणा दी, फिर नए सिरे से जुट गया उस कार्य को करने में, अन्तोगत्वा सफलता मिली । अपने मार्गदर्शक साथी श्री विजय तिवारी ‘किसलय’ एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री सनातन बाजपेयी जी से सलाह ले जुट गया। उनकी डायरी के तीखे तेवर को संवारने में कई बार मुझे स्वविवेकी बनकर समयानुकूल बदलाव करना पड़ा । ताकि उनके किसी भी पात्रों को चोट न पहुँच पाए । चूँकि हमारे पिता जी ने डायरी की शुरूआत में ही मुझे यह अधिकार दे दिये थे । जिसका पालन करना मेरे लिए आवश्यक हो गया था । हालाकि कुछ लोंगों का आग्रह था कि ज्यों का त्यों रखना ही सही है परन्तु पिताजी के आदेशों का पालन करना हमारे लिए आवश्यक था ।
पिता जी के जीवन काल में उनके बड़े पुत्र होने के नाते मुझे काफी लम्बे समय तक उनके सानिद्धय में रहने का सुअवसर प्राप्त हुआ। घर की आर्थिक विपन्नता हमसे छुपी हुयी नहीं थी । उनकी हमसे बहुत कुछ अपेक्षाएं भी स्वाभाविक थीं जो कि हर पिता अपने बड़े पुत्र से रखता है । इस लिहाज से वे मुझसे हर छोटी बड़ी समस्याओं पर सलाह मशवरा भी करने लगे थे । दोनों मिलकर परिवार के हर सुख दुख में अपनी हिस्सेदारी बंटाने लगे थे । यहीं से हमारी अंतर्ररंगता एवं आत्मीयता का अभ्युदय हुआ था । उनके उस आत्मविश्वास पर मैं हर समय कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश भी करता रहा ।
हमारे जीवन में डायरी में उल्लखित पिछली तीन पीढ़ियों का प्यार पाने का शुभ अवसर मिला । इसके लिए हम अपने आपको काफी धन्य भी समझते हैं ।पिता जी का लिखा साहित्य सदा से ही मुझे प्रेरणा देता रहा है । उनके बड़े होने के नाते परिवार के प्रति कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व के निर्वहन की चुनौती के कारण साहित्य से विमुख हो जाना, मुझे वर्षों तक बड़ा कचोटता रहा । हर पुत्र अपने पिता में कुछ विषेशता एवं सद्गुणों को देखने की मन में एक अभिलाषा रखता है । जब वे मुझे बचपन में हिन्द पाकेट बुक्स की किताबें मंगवाकर देते थे, तो मेरे अंदर का अंकुरित नन्हा सा साहित्यकार अपने पिता को भी उसमें प्रकाशित देखना चाहता था । चाहने और करने में बड़ा अंतर होता है। शायद इसीलिए पिता जी ने मुझे हिन्दी साहित्य की जगह कामर्स लेकर पढ़ने को बाध्य किया । जो कि बाद में उनका यह आदेश मेरे जीवन और परिवार के लिए वरदान बना ।
गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी थी । वर्शों के अंतराल के बाद उनके अंदर सोये साहित्यकार को मेरी बेटी अर्थात उनकी नातिन सपना ने जगा दिया । उन्होंने मेरे सपने को ‘एक पाव की जिंदगी ’ कहानी संग्रह के माध्यम से साकार करने का अवसर दिया । हालाकि उनके लिखे दो उपन्यास कापीयों में मेरे पास आज भी रखे हुए हैं पर समय काफी गुजर गया था । उनके अंदर के साहित्यकार ने पुनः अपने अतीत को अपनी डायरी में सहेज कर मुझे सौगात में थमा गए । जो उनके निधन के बाद अचानक मेरे हाथों में लगी । शायद मुझे वे यह सरप्राईज के रूप में देना चाहते थे । तभी तो मुझसे इसका कभी उल्लेख नहीं किया ।
ऐसी परिस्थिति में मैं अपने पिता की अंतिम इच्छा को पूरा न कर पाउँ । तो मेरे जैसा अपराधी पुत्र कौन होगा । और मैं नहीं चाहता था कि मैं जीवन भर आत्म ग्लानि की अग्नि में जलता और पछताता रहूँ ।
आज खुशी इस बात की है कि उन्होंने जो हमें यह कार्य सौंपा, उसका निर्वाहन हम कर रहे हैं । हमारे लिए यह गौरव की बात है कि उन्होंने हमारे पूर्वजों की गाथा को लिपिबद्ध ही नहीं किया वरन् देश की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण भी किया है । वे अपने अतीत इतिहास की अनमोल धरोहर हमें सौंप गये हैं । जिसे संभाल कर रखना हमारा दायित्व भी है । इस धरोहर को चिर स्थाई बनाने के लिए हमारे दोनों बेटे जिसमे मनीष एवं गौरव शुक्ल को तो हाथ है ही साथ ही बेटी सपना का भी बड़ा योगदान है।
श्री रामनाथ शुक्ल ‘‘श्रीनाथ’’ के द्वारा लिखित उपन्यास एवं कहानियाँ:
उपन्यास
लाल चुनरिया - उपन्यास अप्रकाशित
शीर्षक विहीन - उपन्यास अप्रकाशित
कहानियाँ
सफर के साथी - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
जेबकट - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
दहेज - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
मरघट का धुँआ - सन्मार्ग - प्रकाशित -संवत 2007
दर्द का दर्द - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
माँ- एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
एक पाव की जिंदगी - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
अंधेरे के गमःउजाले के आँसू - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
सबक - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
करवट - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
वर्चस्व - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
भिखारिन - एक पाव की जिंदगी - प्रकाशित -1997
संकल्प - चिंगारी पत्रिका - प्रकाशित -1950
संघर्ष - सन्मार्ग - प्रकाशित -1948
एक चिरैया -- सन्मार्ग - प्रकाशित -1950
स्वतंत्रे - सन्मार्ग - प्रकाशित -1948
लाल चुनरिया - सन्मार्ग - प्रकाशित -1948
कसम गांधी की - जय हिन्द-प्रकाशित -
भूख - प्रकाशित 1951
पुकार - आवाज- प्रकाशित -1948
पश्चाताप - जय हिन्द-प्रकाशित -1948
आशाओं का शव - जय हिन्द- प्रकाशित -1949
आग की लपटों में.....? - प्रकाशित -
क्रांति के बुझते दीपक - प्रकाशित -
आयशा रूठ गई! - प्रकाशित -
अबोध की शरारत - प्रकाशित -
शिकारी - स्वतंत्र - प्रकाशित -1948
और ये अभागे मरते भी नहीं - प्रकाशित -1951
प्यास - प्रकाशित -
दो आँसू...! - प्रकाशित -
माँ और दिल - प्रकाशित -
दो चित्र - प्रकाशित -
छल छल छल... - प्रकाशित -
देख लो ! ये खून के आँसू हैं!! - प्रकाशित -1948
लुट रही किस्मत किसी की - भर रही झोली किसी की.... - प्रकाशित -
अदा ! - प्रकाशित -
स्वतंत्रते ! - प्रकाशित -
चोर - चिंगारी - प्रकाशित -1950
हत्यारा...! - प्रकाशित - जयहिन्द - प्रकाशित -1948
चिर-स्नेह - चिंगारी - प्रकाशित -1951
मेरा कसूर क्या है...? अप्रकाशित 1960
हार जीत - कमल - प्रकाशित -
दो सहेलिया - सन्मार्ग - प्रकाशित - संवत 2008
दोषी कौन - सन्मार्ग - प्रकाशित - संवत 2005
उसकी हँसी - सन्मार्ग - प्रकाशित -संवत 2006
मंसूबों की भीत - चिंगारी - प्रकाशित -1949
होली पर अबोध की शरारत - सन्मार्ग - प्रकाशित संवत 2007
बुझते दीपक - चिंगारी - प्रकाशित -1949
करनपुरा की होली - रंगमंच - प्रकाशित -1949
अधम मानव - सन्मार्ग - प्रकाशित - संवत 2005
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’