करवट
राम नाथ शुक्ल 'श्री नाथ'
राम नाथ शुक्ल 'श्री नाथ'
सेठ धन्नामल को कौन नहीं जानता ? शहर के बीचों बीच उनकी संगमर्मरी हवेली अपने ऐश्वर्य के लिये विख्यात है। वह बेशकीमती पत्थरों से बनी है। दीवारों पर विभिन्न मुद्राओं की मूर्तियां गढ़वायीं गयीं हैं। सालों के श्रम से निर्मित श्रम जीवियों का वह चमत्कार देखने दूर दूर के पर्यटक आते है। बाहर का वैभव जन साधारण के लिये है, भीतर का वैभव कुछ खास व्यक्यिों के लिये है। यह बहुत बड़े क्षेत्र में पाँव पसारे हैं। इसके अलावा अनेक बँगले, फार्म हाउस और सैकडों एकड़ जमीन के स्वामी है।
सेठ जी के अनगिनत कारोबार हैं। कुछ सही भी हैं, तो कई गलत। सभी पर उनका आधिपत्य है। राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक प्रतिष्ठा उनकी मुट्ठी में है। सरकारी तंत्र पर भी उनका दबदबा है। करोड़ों की बेहिसाब सम्पत्ति जिसमें कुछ तो पैत्रिक है, पर ज्यादातर उनकी इसी बुद्धि कौशल से कुछ ही सालों में अर्जित हुई है। सभी उनको सेठ जी, बाबू जी, सर, व्यक्ति अपनी हैसियत के अनुसार सम्बोधित करते हैं। नगरसेठ कहने वाले सम्बोधन से उन्हें चिढ़ है।
सेठ जी किसी भीे तरह के व्यापार पर नहीं बैठते। उनकी रौबीली आकृति अप्रत्यक्ष रूप से बैठती है। सभी काम मैंनेजर बाबू सम्हालते हैं। महीना पन्द्रह दिन मे एक आधबार दौरा कर लेते हैं। पर जिस आफिस में पहुँचते, मानों वहाँ भूकम्प आ जाता है। इसी गुण विशेष के कारण सब काम ठीक ठाक से चल रहा था। भगवान की हर तरह से कृपा थी। उन्हें छः फुट का हृष्टपुष्ट, गोरा शरीर दिया तो दो बड़-बड़ी क्रूर दृष्टि युक्त आँखें। उनसे मिलने वालों ने तो शायद ही कभी उनके चेहरे पर हँसी देखी हो।
आज एक एजेंसी के कार्यालय में सर आये हैं। वहाँ के सभी कर्मचारी चौकन्ने हैं। हर कर्मचारी पर भेदक दृष्टि पड़ रही है। और कर्मचारी ऐसा अनुभव कर रहा है जैसे ‘सटाक’ से किसी ने कोड़ा मारा हो। बात यह थी कि आफिस के शो बाक्स से एक दो फुट ऊँची पत्थर की मूर्ति चोरी चली गयी थी। उनका यह दौरा उसी कारण से था।
“मिस्टर सिन्हा....” “यस सर ....।” मैंनेजर घबड़ाया हुआ सामने आया। “चोरी का पता चला ?.....” “नो सर ........”कैसे केयरलेस मैनेजर हो। ठीक से इंक्वारी करो। मूर्ति मिलना ही चाहिये। वरना पुलिस रिपोर्ट होगी। मतलब सबकी फजीहत। समझे ?........” कड़ा आदेश ‘सर’ का हुआ।
बेचारा मैंनेजर ’यस सर’ कह चुप हो गया। ‘सर’ गेट पर खड़ी कार की तरफ बढ़े तो अचानक एक व्यक्ति औंधे मुँह उनके पैरों के पास गिर गया। जैसे भक्त भगवान के मंदिर में साष्टांग प्रणाम करता है।
“मिस्टर सिन्हा”... “सर..” -ऐ, हट सामने से।“ सिन्हा ने बाद वाली बात उस सामने वाले पड़े व्यक्ति से कही।
“कौन बद्तमीज है ये ..............?”
“सर, रामदीन चपरासी, सर”। तब तक वह व्यक्ति हाथ जोड़कर खड़ा हो चुका था। ”क्या कहता है ?......
“सर, इसकी लड़की की शादी है। बीस हजार लोन की एप्लीकेशन है।”
“बीस हजार....?” आँखों में आश्चर्य का भाव प्रदर्शित कर सर बोले “कभी चपरासी को बीस मिला? दो तीन बस। और सुनो, इस तरह का नाटक मुझे पसंद नहीं।” सर शीघ्रता से कार में बैठे, चले गये। समय की सुई आगे खिसकी।
एक सनसनीखेज समाचार।
नगर के सभी अखबारों में छपा। सेठ धन्नामल के सभी प्रतिष्ठानों पर आयकर विभाग का छापा। छापे में करोड़ों की अघोषित सम्पत्ति मिली। खोजबीन चालू। बैंक लाकर सील। भारी पुलिस फोर्स द्वारा सभी प्रतिष्ठानों पर छापा।
सेठ जी ने अपने जिस प्रतिष्ठान में कुछ माह पूर्व विजिट की थी। उसी में आयकर अधिकारी द्वारा छापा डाला गया था। यहाँ कई तरह के घपले पाये गये थे। उनका छः फुट का गोरा शरीर मुरझाकर पाँच फिट का रह गया था। आज उनके क्रूर आँखों में दीनता के भाव थे। क्योंकि हर तरह के लालची हथकंडों के बाद भी वह अधिकारी अपने कर्त्तव्य को बड़ी ईमानदारी से निभा रहा था।
बरसों की बनायी साख जिस व्यक्ति की जीवन में पहली बार मटियामेट हो रही हो, उसके दिल की पीड़ा वही जान सकता है और सभी तो तमाशबीन बने देख रहे हैं। उस प्रतिष्ठान के कर्मचारी, मिस्टर सिन्हा, और वह चपरासी रामदीन भी।
समय ! तू कब करवट बदले ? क्या यह कोई जानता है ?
रामनाथ शुक्ल ‘श्रीनाथ’