मनोज की बहुविध कविताओं में दोहे
आत्मनिवेदन
कृपा करो माँ शारदे
याद आतीं हैं बहुत वे
शांति गीत को दें विराम अब
कवि ने अल्पनाओं में
वतन की आन पर मिटते
लौह पुरुष को सौंपी होती
कवि की कल्पनाओं में
नैतिक शिक्षा के बिना
हिन्दू संस्कृति में प्रमुख
नारी ने पैदा किए
राष्ट्रवाद की बात पर
जीवन की गाड़ी सदा
रंगमंच सा लग रहा
सैनिक पाती लिखने बैठा
बिना कर्म के व्यर्थ हैे
प्रभु की दया असीम है
जीवन के हर मोड़ पर
प्रश्न करे मन बावरा
छल प्रपंच की आड़ ले
बूढ़ा बरगद देखता
समय चक्र के सामने
पिछला बरस गुजर गया
हम सब हैं इस जगत के
शहर जबलपुर जानिए
सास-ससुर, माता-पिता
रिश्तों में खट्टास का
फागुन के दिन आ गए
आत्म प्रशंसा रोग है
पाखंडी धरने लगे
याद सुबह से आ रही
गुरू शिष्य का प्रेम यह
ग्यारह दोहे लिख रहे
सबके जीवन काल में
बचपन के दिन सबके अच्छे
प्रिये आपकी बात को, सुनता हूँ
हिन्दू संस्कृति में बसा
जन्म दिवस की शुभ घड़ी
कलियुग में धन ही सदा
पानी की बूँदें कहें
यह होली आयी है
प्रेम रंग में रम गया
स्मार्ट सिटी
खिड़की से अब झाँकते
प्रभु हमको कुछ ज्ञान दो
कृतघ्नता की पराकाष्ठा
सभी दिशाएँ गा उठीं, नमो नमो
उपचारों के नाम पर
बरसों पहले जब रहा
बोली भाषा अलग पर
राजनीति से हो गया
नीड़ बनाने को उड़ा
अहंकार रवि को हुआ
हीरे मोती व्यर्थ हैं
कबिरा तुम अच्छे रहे
सृष्टि रचियता ने दिया
मंदिर मस्जिद सज रहे
साधु-संत बदले सभी
नव संवत्सर आ गया
चंदा सूरज कर रहे
हर मंदिर में है बढ़ी
भगत सिंह सुखदेव जी राजगुरू
सनातन काल से कवि ने
नदिया रूठी गाँव से
राष्ट्रभक्ति का मस्तक ऊँचा
याद मातु की आ रही
माँ देवी का रूप है
शहर टोरेण्टो है बसा
मुझे तुमसे शिकायत है
विहग उड़ें आकाश में
नाते-रिश्तों से बंँधा
भस्मासुर तपस्या करके
नेताओं ने बो दिये
हिन्दी हिन्दुस्तान के
नदियों का है नीर
भारत की पहिचान
राष्ट्रसंघ स्थापना
कैसे भाषण हो रहे
राष्ट्रीय सम्मान लौटाने वालों से
नैतिकता है खो गयी
धर्म और आतंक का
रचा मंत्र है शांति का
काश्मीर पर कर रहा
जेएनयू में हो रही, राष्ट्रद्रोह की बात
आज शहीदों के प्रति,कृतघ्न हुये
चरित्र गिरा है इस कदर
राष्ट्रभक्ति की ठेकेदारी
राजनीति में ताल ठोंकते
इक नन्हा सा दीपक देखो
संस्कारों के ज्ञान से
सबई के दिल में राम बसत हैं
जोड़े रचकर ईश ने
दोहे संत कबीर के
रावण भ्रष्टाचार का
धरती है बँगाल की
पाक नाम धर कर कभी
बिना दृष्टि के शून्य है
जनता खुश होती अगर
भ्रम में जो भी जी रहे
चाटुकारिता भाव का
गाँधी के इस देश में
नित्य दोहरे आचरण
नाम सुभद्रा जब रखा
साधू इस संसार में
हर कवि का कर्तव्य है
अर्थतंत्र की रीढ़ को
जीवन में सम्मान की
नारी तेरी अजब कहानी
हिन्दी हिन्दुस्तान की
माँ की ममता है बड़ी
मोबाइल पर आज है
जीवन में आलस्य का
धर्म वही होता बड़ा
सैंतालिस से चल रही
सत्ता का भोगी बुरा
सदियों से हमने किया
जन मानस का हृदय अब
मैंने सत्-साहित्य पढ़ा है