नदियों का है नीर.....
नदियों का है नीर कह रहा, कुछ तो समझो पीर।
निर्मल जल को गंदा करते, हम सब हैं आधीर।।
सदियों से हम प्यास बुझाते, सबको किया अमीर।
भेद-भाव से ऊपर उठकर, सौंपी है जागीर।।
सबके पापों को हम धोते, खूब खिलाई खीर।
कूड़ा कड़कट लाश डालते, है कैसी यह भीर।।
जीवन-अमृत पिला रही हूँ, खींची नहीं लकीर।
याचक बन के द्वार खड़ी हूँ, आँखों में है नीर।।
माँ समान दर्जा देते हैं, जाप करें फिर तीर।
रूठ गयी माँ की ममता तब, होंगे सभी फकीर।।
कोई तो सच्चा बेटा हो, भागीरथ सा वीर।
दिशा दिखा के हरे हमारी, यह बिगड़ी तकदीर।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’