दोहे मनोज के: भाग - 2
301. चंदन
शीतल चंदन धारते, मस्तक पर हर संत।
वाणी के माधुर्य से, दुख का करते अंत।।
302. नदी
नदी सरोवर प्राण हैं, जीवन के आधार।
रखें सुरक्षित हम सभी, तब जीने का सार।।
303. आकाश
सूर्य, चंद्र, तारे सभी, देते सदा प्रकाश।
मानव उनको नाप कर, भ्रमण करे आकाश।।
304. सागर
सागर में नदियाँ मिलें, बदले में सौगात।
उदधि-नीर बादल भरें, करते फिर बरसात।।
305. पेड़
पेड़ काटकर खुश हुए, कुछ मूरख इंसान।
झुलसा गर्मी में तभी, हुआ उसे यह भान।।
306. रेगिस्तान
सूखी नदियाँ ताल सब, दिखते रेगिस्तान।
शोषण मानव ने किया, कैसा है इन्सान।।
307. गुलाब
काँटों में खिलता सदा, मोहक फूल गुलाब।
खुशबू से मन मोहता, लगता वही नवाब।।
308. प्रफुल्लित
हृदय प्रफुल्लित हो अगर, बने काम आसान।
हार कभी मिलती नहीं, झुकता सकल जहान।।
309. कमान
संकट की हर घड़ी में, राह बनी आसान।
सेना को जब से मिली, अंकुशरहित कमान।।
310. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि का, नवदुर्गा उपवास।
विजयादशमी का दिवस, हृदय भरे उल्लास।।
311. चकोर
चन्दा और चकोर का, बड़ा अजब संबंध।
इक टक उसे निहारता, कैसा है अनुबंध।।
312. विरोध
बदले चाल, चरित्र सब, राजनीति में आज।
बस विरोध के नाम पर, गूँज रही आवाज।।
313. अभियोग
राजनीति में लग रहे, मनचाहे अभियोग।
दाँव-पेंच में उलझकर, भटक रहे कुछ लोग।।
314. प्रबुद्ध
मानव देश, समाज हित, रहें द्वेष से दूर।
मन प्रबुद्ध होता तभी, फल मिलता भरपूर।।
315. निष्काम
कर्म सदा निष्काम हो, मिलती कभी न हार।
विद्वानों से है सुना, यह गीता का सार।।
316. लगाव
विषय वासना,मोह तज, निश्छल हुआ लगाव।
हरि चरणों में मन लगा, पूजन,भक्ति,जुड़ाव।।
317. कलम
कलम सदा चलती रहे, मन भावन सुविचार।
जहाँ दिखे मानव-अहित, करंे करारा वार।।
318. यामा
यामा को दे चाँदनी, जब उजली सौगात।
देख मुदित प्रेमी सभी, करें दुखों को मात।।
319. अनुराग
पीहर से बेटी गई, लेकर मन अनुराग।
प्रियतम से अठखेलियाँ, खुशियों का नव-भाग।।
320. आमंत्रण
आमंत्रण दिल से मिला, दौड़ पड़े हैं पाँव ।
कंटक पथ को भूलकर, लगे पास ही गाँव।।
321. नलिनी
रूप जलाशय का खिला, नलिनी के जब संग।
दिखती अनुपम छटा तब, प्रकृति उलीचे रंग।।
322. रोटी
रोटी जैसा ही लगे, पृथ्वी का भूगोल।
देश विदेशों में बने, होती है वह गोल।।
323. घाव
मन के घावों का कठिन, होता है उपचार।
तन के भरते घाव सब, वैद्य करे उपकार।।
324. पंछी
मन-पंछी बन बावरा, ऊँची भरे उड़ान।
लौटे पुनः जमीन पर, तब सच्ची पहचान।।
325. प्यास
कुआँ पास आता नहीं, जब लगती है प्यास।
हम जाते नजदीक जब, पूरण होती आस।।
326. पहाड़
सीना तानें हैं खड़े, जग में बड़े पहाड़।
पर मानव के कर्म ने, उनके तोड़े हाड़।।
327. दर्पण
मन दर्पण इंसान का, है सच्चा प्रतिरूप।
मानव की पहचान कर, कहते सभी अनूप।।
328. अनुवाद
करें नैन अनुवाद तो, हो जाता है ज्ञान।
प्रेम क्रोध विद्वेष का, करवाता है भान।।
329. उल्लास
प्रिय का सुनकर आगमन, झूम उठा संसार।
तन-मन में उल्लास का, हो जाता संचार।।
330. शिथिल
शिथिल पड़ें जब इंद्रियाँ, तन का है वनवास।
मन का हाल विचित्र है, बढ़ता दृढ़ विश्वास।।
331. अभिनव
अभिनव भारत रच रहा, एक नया इतिहास।
देख रहा सारा जगत, फैला हुआ उजास।।
332. पुरस्कार
पुरस्कार उनको मिलें, रहते जो बदनाम।
हर सरकारी तंत्र का, बड़ा अनोखा काम।।
333. नाम
कर्म पथिक का जगत में, हुआ हमेशा नाम।
पीढ़ी दर पीढ़ी सदा, करते हैं जो काम।।
334. शिखर
उच्च शिखर छू लीजिए, रखकर दृढ़ विश्वास।
जिसके अंदर यह नहीं, करें व्यर्थ ही आस।।
335. सामान
जोड़-जोड़ कर मर गए, हर सुख का सामान।
नियति नटी के सामने, बेबस है इंसान।।
336. समकालीन
कविता समकालीन की, भरती रंग अनेक।
सुगम बोध संदेश दे, राह दिखाती नेक।।
337. षड्यंत्र
दौर चला षड्यंत्र का, राजनीति में आज।
सत्ता सुख सब चाहते, करें निरंकुश राज।।
338. सैलाब
सूखा सावन ही गया, भादों में सैलाब।
बादल बरसे इस तरह, उफन पड़े तालाब।।
339. वामन
तम का बढ़ा प्रभाव जब, धर वामन का रूप।
तीन-पगों में नाप ली, तीन लोक, अरु भूप।।
340. नागिन
कोरोना से सब दुखी, डरे सभी हैं देश।
नागिन बनकर नाचता, जहर भरा परिवेश।।
341. कानून
समता का कानून ही, करता है कल्याण।
समरसता को बींधते, भेदभाव के बाण।।
342. कृष्ण
दिया कृष्ण ने जगत को, कर्म-योग उपहार।
फल की इच्छा छोड़ कर, कर्म करे संसार।।
343. राधा
राधा की आराधना, हरती तन-मन क्लेश।
प्रेम-शक्ति जग में बड़ी, द्वापर का संदेश।।
344. प्रेम
इस दुनिया में प्रेम ही, मजबूती की डोर।
एक बार जो बंँध गया, जीवन में है भोर।।
345. समर्पण
भाव समर्पण का रहे, पति-पत्नी के बीच।
सुखमय जीवन बेल को, नित्य नेह से सींच।।
346. त्याग
त्याग तपस्या से बने, मानव देव समान।
संस्कार आदर्श से, भारत बना महान।।
347. लोक कल्याण
लोक-भाव, कल्याण का, शासन का हो मंत्र।
उन्नति और विकास का, परिचायक है तंत्र।।
348. दुष्ट-दमन
दुष्ट-दमन, कलिमल हरण, प्रभु ही कृपा निधान।
भक्ति भाव से पूजिए, होंगे कष्ट निदान।।
349. धर्म
मानवता को मानिए, सब धर्मों का धर्म।
मानव हित को समझता, समझा उसने मर्म।।
350. कर्म
कर्म, धर्म से है बड़ा, उन्नति का सोपान।
देश प्रगति पथ पर बढ़े, जग करता सम्मान।।
351. ज्ञान
ज्ञान और विज्ञान से, बनता देश महान।
जितना व्यापक क्षेत्र हो, उतना है सम्मान।।
352. योग
योग-गुरू भारत बना, दिया जगत को ज्ञान।
सभी निरोगी ही रहें, मानव ले संज्ञान।।
353. भक्ति
भक्ति योग कहता सदा, जाग्रत रखो विवेक।
ईश्वर में रख आस्था, मानव बनता नेक।।
354. त्योहारों
हर त्योहारों की छटा, है संस्कृति की जान।
एक सूत्र में सब बँधे, यह भारत की शान।।
355. अक्षर
वेद ऋचाएँ मंत्र सब, अक्षर से निर्माण।
ज्ञान और विज्ञान का, हैं अचूक यह बाण।।
356. अवसर
अवसर आता एक दिन, सबके जीवन काल।
चूक हुयी तो शर्म से, झुक जाता है भाल।।
357. आदर
आदर देते आप जब, पाते हैं सम्मान।
कभी अनादर मत करें, दुगनी होती शान।।
358. दूभर
दृढ़ इच्छा से ही बनें, दूभर सबके काम।
ईश्वर देता साथ है, जग में होता नाम।।
359. उर
त्रेता से कलिकाल तक, सबके उर में राम।
नगर अयोध्या फिर सजा, उसका यह परिणाम।।
360. कोरोना
कोरोना का संक्रमण, फैला है चहुँ ओर।
छूने से यह बढ़ रहा, सचमुच आदम खोर।।
361. अँगड़ाइयाँ
खेत और खलिहान में, श्रम की है दरकार।
फसलें ले अँगड़ाइयाँ, देश करे सत्कार।।
362. अधिकार
आजादी अधिकार है, देशभक्ति कत्र्तव्य।
रक्षा में जो प्राण दें, है महानतम् हव्य।।
363. विश्वास
संकट के हर काल में, लगी सभी को आस।
भारत की सरकार पर, बढ़ा आज विश्वास।।
364. शारदा
मैहर की मांँ शारदा, सब पर कृपा निधान।
दर्शन करते भक्तगण, पूर्ण करे वरदान।।
365. नवरात्रि
दिव्य पर्व नवरात्रि में, मंदिर का निर्माण।
आज अयोध्या फिर सजी, जैसे तन में प्राण।।
366. सहनशीलता
सहनशीलता है भरी, भारत में भरपूर।
संघर्षों की राह चल,बना विश्व का नूर।।
367. कानून
अपराधी भी समझते, सज्जनता है मौन।
बने सभी कानून पर, अमल करेगा कौन।।
368. सरकार
चुनी हुई सरकार जब, करती अच्छे काम।
तब विरोध के नाम पर, कुछ नेता बदनाम।।
369. ललकार
संकट जब हो देश में, गूँज उठे ललकार।
देशभक्ति उर में जगे, धारदार तलवार।।
370. मशाल
जागरूक बनकर जिएँ, थामे रखें मशाल।
जनहित में सब काम हों, सद्गुण मालामाल।।
371. शृंगार
ऋतु बसंत ने कर दिया, वसुधा का शृंगार।
तन-मन पुलकित हो उठे, अद्भुत है उपहार।।
372. अभिसार
ऋतुराजा है आ गया, प्रीत मिलन अभिसार।
सरसों पीली खिल गई, बासंती मनुहार।।
373. दुश्वार
पिया गए परदेश में, रातें हैं दुश्वार।
संझा-बेरा आ गई, भुज बंधन अभिसार।।
374. वंदनवारे
वंदनवारे बँध गए, खुशियों की सौगात।
बेटी का मंडप सजा, घर आई बारात।।
375. तकदीर
कर्मठ मानव लिख रहा, खुद अपनी तकदीर।
बना रहा जो आलसी, भोग रहा वह पीर।।
376. प्राण
तन से निकले प्राण जब, तन का क्या है मोल।
हीरा माणिक व्यर्थ है, प्राण रहें अनमोल।।
377. मिश्री
प्रियतम प्यारे हैं लगें, यह जीवन अनमोल।
प्रेमी के मीठे वचन, लगते मिश्री-घोल।।
378. चंचरीक (भौंरा)
चंचरीक करने लगा, मधुवन में नव गान।
फूलों के मकरंद पर, छेड़ी उसने तान।।
379. पतझड़
पतझड़ के पहले सदा, आता है मधुमास।
नव पल्लव ज्यों झूम कर, मना रहे उल्लास।।
380. हरसिंगार
बगिया की छवि देखकर, हँसता हरसिंगार।
भौरों का गुंजन हुआ, लुटा दिया सब प्यार।।
381. बहार
मधुमासी ऋतु आ गई, छायी मस्त बहार।
कोयल की सुर तान सँग, बहती मधुर बयार।।
382. फागुन
फागुन का यौवन निरख, बौरा गया समीर।
गालों को छूकर गया, छलक उठा है नीर।।
383. पाटल (गुलाब)
सबके दिल को भा गई, मनमोहक मुस्कान।
उपवन में पाटल हँसा, गूँजा गुंजन गान।।
384. शिविका (डोली)
बाबुल अँगना छोड़ कर, चली पिया के देश।
घर से शिविका चल पड़ी, नव जीवन परिवेश।।
385. चषक (शराब प्याला)
स्वाद चषक का जब चढ़ा, भूला जीवन मोल।
मानव फिर बचता कहाँ, रह जाता बस खोल।।
386. सेमल
सेमल का जो वृक्ष है, औषिधियों की खान।
इसका जो सेवन करे, रखे स्वस्थ तन-जान।।
387. कामदेव
कामदेव के बाण से, मूर्छित हुआ समाज।
संयम सबके टूटते, नैतिकता नाराज।।
388. नैतिकता
नैतिकता के पाठ से, सुदृढ़ बने समाज।
कार्य अनैतिक जब करें, नहीं सुरक्षित ताज।।
389. प्रेम
प्रेम हृदय में जब बसे, जग को करे निहाल।
काम, वासना, क्रोध से, मानव खींचे खाल।।
390. ज्ञान
ज्ञान जगत में है बड़ा, उसका कहीं न छोर।
जितना उसे सहेजते, होती घर में भोर।।
391. उन्वान
सीमा में रक्षा करे, देश भक्ति उन्वान।
ऐसे जज्बे को नमन, जो देते बलिदान।।
392. संताप
मनाव खुद पैदा करे, रोग शोक संताप।
कर्मठ मानव जूझकर, उनको देता नाप।।
393. निर्मल
निर्मल-मन को चाहते, सबको है दरकार।
दूषित-मन से भागते, कौन करे सत्कार।।
394. नाहर
सीमा पर नाहर सदा, करते दुश्मन साफ।
शरणागत को देखकर, कर देते हैं माफ।।
395. नृप
सच्चा-नृप दिल में बसे, होता कृपा निधान।
जन-जन की पीड़ा हरे, दुख का करे निदान।।
396. नानक
नानक के संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
कुछ रोगों को पालते, कुछ फैलाते रोग।।
397. निपुणता
दृढ़ निश्चय अरु लगन में, होती है जब वृद्धि।
सबसे आगे वह चले, मिले उसी को सिद्धि।।
398. निकेत
निर्धन को है कब मिला, अपना उसे निकेत।
नेता होते यदि सही, क्यों रहते अनिकेत।।
399. आराधना
करें ईश आराधना, समय कठिन है आज।
खुशहाली में सब जिएँ, सुखमय रहे समाज।।
400. वेदना
मानवता गुम हो गई, शोर मचा चहुँ ओर।
यही वेदना आज की, कैसी होगी भोर।।
401. चैतन्य
रहें सदा चैतन्य ही, जाग्रत रखें विवेक।
जीवन में निर्भय बढ़ें, राह मिलेगी नेक।।
402. संकल्प
कर्मयोग संकल्प से, हो जाते सब काम।
इसके बल पर ही बढ़ें, जग में सबके नाम।।
403. चेतना
सुप्त चेतना जब जगे, होती जीवन भोर।
तिमिर कभी छाता नहीं, नाचे जीवन मोर।।
404. पतवार
युवा देश की शक्ति हैं, थाम रखें पतवार।
पार लगे नैया सही, सच्चे खेवनहार।।
405. उपाय
चलो सभी मिल बैठकर, खोजें नये उपाय।
सद्भावों की डोर से, आपस में गुँथ जाँय।।
406. छंद
कविता है मंदाकिनी, मन होता खुशहाल।
छंद रूप में जब सजे, सबको करे निहाल।।
407. वनवास
कटा आज वनवास है, लौटे हैं श्री राम।
दीपों से है सज गया, सकल अयोध्या धाम।।
408. अभियान
छेड़ें मिल-जुलकर सभी, एक बड़ा अभियान।
जिससे भारत देश का, बढ़े जगत में मान।।
409. परिवार
सुसंस्कृत परिवार से, बनता नेक समाज।
यही देश निर्माण में, पहनाता है ताज।।
410. चूल्हा
चूल्हा कहता अग्नि से, हम दोनों का साथ।
कितने युग बदले मगर, कभी न छूटा हाथ।।
411. धुआँ
अम्मा का चूल्हा बुझा, मिली धुआँ से मुक्ति।
नव पीढ़ी ने खोज ली, गैस सिलेंडर युक्ति।।
412. चूल्हा
चूल्हा ने जग से कहा, बदला हमने रूप।
जंगल में मंगल रहे, ढले समय अनुरूप।।
413. उज्ज्वला
आज उज्ज्वला गैस ने, फैलाये हैं पैर।
अब हरियाली हँसेगी, नहीं प्रकृति से बैर।।
414. जीवन
जीव-जन्तु सब खुश हुये, सबने जोड़े हाथ।
अपना जीवन धन्य है, अब मानव का साथ।।
415. मजदूरी
मजदूरी मिलती नहीं, मानव खड़ा उदास।
घर की चिंता है उसे, काम नहीं कुछ पास।।
416. पहचान
मजदूरी से देश की, होती है पहचान।
आर्थिक उन्नति का यही, पैमाना है जान।।
417. मूलाधार
मजदूरी मजदूर की, जीवन का आधार।
रहन-सहन जीवन-मरण, सबका मूलाधार।।
418. निर्भय
श्रमिक-भलाई के लिए, मिलजुल करें प्रयास।
उन्नति के स्तंभ ये, होगा देश विकास।।
419. अस्मिता
नारी की अब अस्मिता, लुटे सरे बाजार।
अपराधी बेखौफ हैं, जागो अब सरकार।।
420. संवेदना
मानव की संवेदना, डूब मरी है आज।
मानवता रोती फिरे, नहीं किसी को लाज।।
421. ललकार
पाक रहा नापाक ही, बढ़ा रखी तकरार।
सीमा पर सैनिक उसे, खूब रहे ललकार।।
422. भोर
भोर सुनहरी आ गई, मधुवन छटा अनूप।
भँवरों का गुँजन हुआ, मौसम बदले रूप।।
423. क्षितिज
भोर क्षितिज से हँस रही, देख प्रकृति का रूप।
ईश्वर भी तब कह उठा, नव प्रभात ही भूप।।
424. ऊषा
ऊषा ने करवट बदल, झाँका खिड़की ओर।
इतनी जल्दी आ गया, कैसा है चितचोर।।
425. उजास
दीपक ने जग से कहा, होना नहीं उदास।
कदम-कदम पर साथ हूँ, मैं बिखराउँ उजास।।
426. सूर्य
सूर्य ठंड में दे रहा, तपस भरा आराम।
छोड़ रजाई चल निकल, अपने कर ले काम।।
427. नागफनी
मंदिर में तुलसी नहीं, नागफनी का राज।
भक्तों में श्रद्धा नहीं, लूट रहे हैं बाज।।
428. पाहुने
घर में आए पाहुने, चिंतित है परिवार।
बड़ी समस्या आ खड़ी, कैसे हो सत्कार।।
429. लक्ष्य
सुखमय जीवन सब जियें, आए नहीं विराम।
जीवन में बस लक्ष्य हो, जीतें दुख-संग्राम।।
430. कडवाहट
कडवाहट मन में भरे, पालें जो यह रोग।
खुद चिंता में जल मरें, करें न सुख का भोग।।
431. तकदीर
कर्म साधना से सभी, गढ़ते हैं तकदीर।
आओ मिलकर बदल दें, जीवन की तस्वीर।।
432. जल
जल जीवन मुस्कान है, समझो इसका अर्थ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहाओ व्यर्थ।।
433. साल
साल पुराना जा रहा, ‘नव’ देता संदेश।
गुजरी बातें भूल जा, तब बदले परिवेश।।
434. पसीना
नाच उठे सब गाँव में, ले ढपली औ ढोल।
बहा पसीना खेत में, फसल उगी अनमोल।।
435. धूप
वर्षा जल से हम भरें, ताल बाँध औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं छलेगी धूप।।
436. उद्यम
मानव उद्यम जब करे, मिलता है सम्मान।
हाथ धरे बैठा रहे, घट जाता सब मान।।
437. कुंचन
यौवन की दहलीज को, पार करे जब नार।
लट-कुंचन अठखेलियाँ, झूमे बारम्बार ।।
438. वागीश
दिल सबका जो जीतता, कहलाता वागीश।
खुशियों से झोली भरे, हम सबका जगदीश।।
439. राघव
रघुकुल में राघव हुए, त्रेतायुग की शान।
उनको कलयुग पूजता, न्यौछावर हर-जान।।
440. चंचला
लक्ष्मी होती चंचला, करे तमस कब भोर।
मोहित सबको कर रही, लुभा रही चहुँ ओर।।
441. नारी
नारी को जग पूजता, वह माता का रूप।
देव, मनुज, दानव सभी, दिल से लगे अनूप।।
442. नारी
नारी नर की खान है, जाने जग संसार।
माँ, पत्नी, दुहिता बने, घर का बाँटे भार।।
443. पिपीलिका
नन्हीं एक पिपीलिका, देती श्रम संदेश।
मिलकर हम सब ठान लें, बदलेगा परिवेश।।
444. गैस कांड
गैस कांड की त्रासदी, जब भी आती याद।
जीवित रहते भी मरे, कहीं नहीं फरियाद।।
445. डाक्टर
लाशों के अंबार को, देख सभी हैरान।
डाक्टर सारे जुट गये, लगे बचाने प्रान।।
446. अंगार
दिल में जब अंगार हों, धधकेगा फिर देश।
प्रेम सृजन के भाव से, सजता है परिवेश।।
447. सरकार
जनहित के जब काम हों, तब अच्छी सरकार।
निजी स्वार्थ में डूबकर, हो जाती बेकार।।
448. न्याय
न्याय-प्रणाली उचित हो, मिले सभी को न्याय।
जनता जब संतुष्ट हो, तब स्वर्णिम अध्याय।।
449. मंच
ज्ञानी बैठे मंच पर, रहता सदा प्रकाश।
तिमिर सभी मन के मिटें, मन उड़ता आकाश।।
450. कानून
सदा कड़े कानून ही, करते हैं कल्यान।
अपराधी डर कर रहें, बाकी सीना तान।।
451. नैतिकता
नैतिकता स्वीकार्य ही, मानवता की शान।
मापदंड की श्रेष्ठता, सदा बढ़ाता मान।।
452. जीत
जीत सदा मिलती नहीं, जीवन में हर बार।
हार मिले तो सोचिये, कैसे करें सुधार।।
453. उल्लास
जीवन में उत्साह का, बना रहे बस साथ।
सारा जग तब साथ में, होते नहीं अनाथ।।
454. त्यौहार
आता जब त्योहार है, खुशियाँ लाता साथ।
मन हर्षित हो झूमता, गर्वित होता माथ।।
455. संयोग
मानव का सत्कर्म से, होता जब संयोग।
भाग्योदय होता तभी, पल में बनता योग।।
456. सत्य
सत्य हमेशा सत्य है, सदा रहा सिरमौर।
झूठ सदा टिकता नहीं, कहीं न इसका ठौर।।
457. भ्रमर
काम वासना से घिरे, भ्रमर हुए बदनाम।
बगिया अब बेचैन है, होती काली-शाम।।
458. स्वर्णिम
हम सबका दायित्व है, यह सबका है न्यास।
स्वर्णिम देश बना रहे, मिलजुल करें प्रयास।।
459. अंतस्
अंतस् मन की वेदना, क्यों है भ्रष्ट-समाज।
अंत करें तब ही भला, होगा स्वर्णिम राज।।
460. खादी
गांधी हुए अतीत के, भूला उसे समाज।
खादी का अब युग गया, छाया फैशन आज।।
461. जुगनू
जुगनू करती रोशनी, जाने सकल जहान।
अंधकार से लड़ रही, वह नन्हीं सी जान।।
462. उदार
राम कृष्ण की भूमि है, सदियों का इतिहास।
दिल उदार रखते यहाँ, सबको आता रास।।
463. अभिनंदन
देश प्रगति पथ पर चला, कभी न मानी हार।
उसका अभिनंदन करें, हम सब बारम्बार।।
464. कल्पना
देश भक्ति में डूबकर,नेक करें सब काज।
संविधान की कल्पना, सुदृढ़ बने समाज।।
465. तंत्र
भ्रष्टाचारी तंत्र ने, खो दी शर्मो-लाज।
अनाचार है बढ़ गया, रोता आज समाज।।
466. आखर
ढाई आखर प्रेम से, जीतें सब संसार।
दुश्मन को भी जीत कर, बना सकें किरदार।।
467. नेह
काम क्रोध अरु मोह से, रहता है जो दूर।
प्रेम सदा दिल में बसे, जीता वह भरपूर।।
468. उजास
अपनी संस्कृति है भली, इस पर बड़ा गुमान।
दिल में भरे उजास वह, जग जाहिर पहचान।।
469. मीत
जीवन सजता मीत से, सुर से है संगीत।
शब्द छंद में जब ढलें, बनता गीत पुनीत ।।
470. पंख
बेटी है परदेश में, नहीं मिला संदेश।
पंख नहीं कैसे उड़ूँ, मन में भारी क्लेश।।
471. हर्ष
निश्छल प्रेम रहे सदा, जीवन में हो हर्ष।
घर समाज अरु देश का, तब होता उत्कर्ष।।
472. रक्षक
गौरव गाथा रच गए, कर दुश्मन संहार।
रक्षक बनकर हैं खड़े, सीमा पहरेदार।।
473. प्राची
प्राची से सूरज निकल, जग में भरे उजास।
पश्चिम में वह डूबकर, होता मलिन उदास।।
474. चितचोर
सूरज प्राची दिशा से, पहले करता भोर।
सारा जग है बोलता, भारत को चितचोर।।
475. नवदौर
ज्ञान और विज्ञान का, आया है नव दौर।
अंधकार है छट रहा, तम का कहीं न ठौर।।
476. अन्वेष
वर्तमान इस सदी में, नित होते अन्वेष।
रूप बदलता जा रहा, वंचित रहें न शेष।।
477. पहचान
भारत की संस्कृति रही, जग में सदा महान।
संकट के हर दौर में, नहीं गुमी पहचान।।
478. लालिमा
नील गगन में लालिमा, करती भाव विभोर।
पंछी उड़ते झुंड में, मिलकर करते शोर।।
479. खगकुल
जग में खगकुल घूमते, देते हैं संदेश।
हम पक्षी सब एक कुल, अलग-अलग परिवेश।।
480. प्रभात
कष्ट सहे हैं बहुत अब, गुजर गई वह रात।
पंछी कलरव कर रहे, चल उठ हुआ प्रभात।।
481. लाली
लाली बिखरी भोर की, वन में नाचे मोर।
लोग काम पर चल पड़े, कल-पुर्जों का शोर।।
482. वोट
फ्री का लालच दे सभी, माँग रहे हैं वोट।
नेतागण क्यों कर रहे, कर्म घर्म पर चोट।।
483. प्रारब्ध
लिखा हुआ प्रारब्ध में, अमिट रहा है लेख।
मिटा नहीं है भाग्य से, रहा जगत है देख।।
484. अंतरिक्ष
अंतरिक्ष के क्षेत्र में, जग में किया धमाल।
भारत का झंडा गड़ा, सच में हुआ कमाल।।
485. संविधान
संविधान की आड़ ले, आग लगाते लोग।
पहन मुखोटा घूमते, मन में पाले रोग।।
486. संघर्ष
कैसा यह संघर्ष है, छल छद्मों का शोर।
आपस में हम लड़ रहे, कैसी होगी भोर।।
487. अन्तद्र्वन्द्व
सी. ए. ए. के नाम पर, मचा हुआ है द्वन्द्व।
कैसी यह आँधी चली, हर मन अन्तद्र्वन्द्व।।
488. फगुआ
फगुआ मिलकर गा रहे, चहुँ दिश उड़े गुलाल।
रंगों की बरसात से, भींग उठी चैपाल।।
489. फगुहारे
फगुहारे निकले सभी, मन-मस्ती में साथ।
होली का त्योहार है, लिए रंग हैं हाथ।।
490. भाँग
भाँग पिये कुछ घूमते, कुछ तो पिए शराब।
होली के त्योहार को, पीकर करें खराब।।
491. उन्मत्त
पीकर कुछ उन्मत्त हैं, बिगड़े उनके बोल।
गली-गली में घूमते, कब बज जाते ढोल।।
492. गुलमोहर
गुलमोहर के फूल ने, दिया प्रेम संदेश।
गाँव की पगडंडी का, शृंगारित परिवेश।।
493. अमराई
अमराई की छाँव में, गूँजी कोयल तान।
पवन-झकोरे दे गए, तन-मन में मुस्कान।।
494. चंचरीक
फूलों का विध्वंश कर, मधुवन किया कुरूप।
चंचरीक बौरा गए, यह कैसा है रूप।।
495. कचनार
फागुन में कचनार ने, बदला है परिवेश।
है मौसम ऋतुराज का, चलो पिया के देश।।
496. ऋतुराज
आया जब ऋतुराज तब, बहती मस्त बयार।
तन-मन में आनंद का, करती है संचार।।
497. लज्जा
गुलमोहर के फूल से, सुर्ख हुए हैं गाल।
लज्जा से हैं भर उठे, जैसे मला गुलाल।।
498. विश्वास
नेताओं से उठ गया, अब सबका विश्वास।
एक तुम्हीं से सर्वदा, लगी हुई प्रभु आस।।
499. अभिनव
मोदी की सरकार का, साहस-अभिनव-काम।
भारत को जग कर रहा, झुककर आज प्रणाम।।
500. अभियान
मानवता सबसे बड़ी, बस अपनी पहचान।
पाखंडों को छोड़ने, मिल छेड़ें अभियान।।
501. मयंक
नभ में खिले मयंक ने, फैलाया उजियार।
भगा अँधेरा घरों का, शीतल बही बयार।।
502. चाँदनी
चंदा की जब चाँदनी, निकली चूनर डाल।
देव मनुज मोहित हुए, मिलकर हुआ धमाल।।
503. आराधना
माता की आराधना, अद्भुत देती शक्ति।
जाति-पाँति को भूल कर, करते श्रृद्धा भक्ति।।
504. आयु
जीने की है लालसा, इसका कभी न अंत।
खत्म हुई जब आयु तो, राजा बचे न संत।।
505. मोर
मोर हुआ है बावला, देख प्रकृति का रूप।
मस्ती में जब नाचता, सबको लगे अनूप।।
506. रेवड़ी
रेवड़ी सबको बाँटते, सत्ता खातिर आज।
टैक्स प्रदाता देखते, राजनीति की खाज।।
507. संसार
रहन-सहन,जीवन-मरण,भाँति-भांँति के लोग।
यह संसार विचित्र है, अलग-अलग हैं भोग।।
508. दृष्टि
सबकी अपनी दृष्टि है, अपना है संसार।
जीवन जीते हैं सभी, जीने से है प्यार।।
509. अनुबंध
संविधान अनुबंध है, निर्भय रहते लोग।
लिखित नियम कानून का, परिपालन सहयोग।।
510. चकोर
शशि-चकोर की मित्रता, दुर्लभ है श्रीमान।
प्रिय को सदा निहारता, व्याकुल तजता प्रान।।
511. चाँदनी
रात चाँदनी ने कहा, सुन प्रिय मेरी बात।
घोर तिमिर की रात है, मिलकर देंगे मात।।
512. चितवन
चितवन नयन कटार से, नारी करती वार।
प्रेम-लेप उपचार से, पीड़ा का संहार।।
513. अक्षर
अक्षर-अक्षर बोलते, मन दर्पण के बोल।
अंतर्मन को झाँकते, शब्द-शब्द अनमोल।।
514. आँखें
आँखें अक्षर बाँचतीं, प्रिय पाती संदेश।
छिपे अर्थ को खोजतीं, रहे न कुछ भी शेष।।
515. किरण
आस-किरण मन में जगे, सिद्ध सभी हों काम।
तिमिर हटेंगे स्वयं ही, ऊँचा होगा नाम।।
516. नवप्रभात
नव प्रभात की किरण उग, देती है संदेश।
उठ रे मानव जाग अब, बदलेंगे परिवेश।।
517. मानसून
मानसून का आगमन, दे जाता उल्हास।
ग्रीष्म तपन के बाद ही, मेघा बरसें खास।।
518. चातक
स्वाति बूँद की चाह में, चातक रहे अधीर।
आँख उठाए देखता, उसकी कैसी पीर।।
519. उलझन
उलझन बढ़ती जा रही, कोरोना का रोग।
स्पर्श मात्र से बढ़ रहा, अलग-थलग हैं लोग।।
520. अरविंद
मंदिर में श्री कृष्ण की, छवि मोहक अरविंद।
मनकों की माला लिए, जपें सभी गोविंद।।
521. अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति के नाम पर, माँग रहे अधिकार।
राष्ट्र विरोधी बात कर, बने देश पर भार।।
522. अयोद्धा
नवमी तिथि को चैत्र में, जन्मे थे प्रभु राम।
नगर अयोध्या धन्य है, बना राम का धाम।।
523. रामायण
रामायण की है कथा, सभ्य सुसंस्कृति बात।
सामाजिक परिवेश का, सद्भावी सौगात।।
524. स्वर्णिम
चंद्रगुप्त के काल में, ऊँचा रहा कपाल।
ज्ञान औ विज्ञान का, स्वर्णिम था वह काल।।
525. अरविंद
मोहक चितवन ईश की, नेत्र युगल अरविंद।
मन मंदिर में बस गई, छवि मूरत गोविंद।।
526. शक्ति
कविता से मुझको मिली, अद्भुत जीवन शक्ति।
अंतस के हर भाव को, मिल जाती अभिव्यक्ति।।
527. हिम्मत
हिम्मत हो जब साथ में, ईश्वर देता साथ।
जीत उसी की है सदा, सबका झुकता माथ।।
528. दया
दया धर्म का मूल है, बाकी सब निर्मूल।
जिसके अंदर यह नहीं, बनकर चुभता शूल।।
529. कर्म
कर्म जगत में मुख्य है, यह जीवन का मर्म।
गीता का उपदेश पढ़, यही बड़ा है धर्म।।
530. रजनी
रजनी का संदेश है, कुछ कर ले विश्राम।
अगले दिन फिर भोर में, तुझको करना काम।।
531. दिनकर
पूरब से दिनकर चला, लिए उजाला साथ।
भोर हुई चल जाग रे, तेरे हैं दो हाथ।।
532. पर्वत
अक्सर जीवन में मिले, पर्वत जैसी पीर।
विजयी होते हैं वही, जो होते गंभीर।।
533. सरिता
सरिता सा मन में बहे, पावन र्निमल नीर।
जग में वही प्रणम्य है, होता है जो वीर।।
534. शक्ति
शक्ति भक्ति श्रद्धा सभी, भारत के हैं रंग।
जीने के ही ढंग ये, हैं संस्कृति के अंग।।
535. शारदा
मैहर की माँ शारदा, बैठीं उच्च पहाड़।
द्वार खड़े दो सिंह हैं, रक्षा करें दहाड़।।
536. फागुन
फागुन की पुरवा बही, हँसी खुशी चहुँ ओर।
होली के रस रंग में, डूबे माखन चोर।।
537. महुआ
महुआ चढ़ा दिमाग में, भूला घर की राह।
दिन में तारे गिन रहा, जग से बेपरवाह।।
538. सुधा
चाहत सबके मन रहे, पिएँ सुधा रस आज।
पाकर हम अमृत्व को, सिर पर पहने ताज।।
539. मदन
हुआ मदन है बावला, ऋतु बसंत की भोर।
बाग बगीचे हँस रहे, मधुप मचाएँ शोर।।
540. बसंत
आहट सुनी बसंत की, मधुकर पहँुचे बाग।
स्वर लहरी में गा उठे, पुष्पों से अनुराग।।
541. पिचकारी
फागुन में राधा रँगी, मुरली रही निहार।
ले पिचकारी मारते, तक-तक बारम्बार।।
543. नूपुर
नूपुर पैरों में पहन, राधा छिपती ओट।
नूपुर-ध्वनि पहचानते, यही बड़ी थी खोट।।
544. सुदामा
बाँह पकड़ के कृष्ण ने, कहा सुदामा बोल।
छुप-छुप कर खाए चनें, करी पोटली गोल।।
545. शृंगार
नारी का शृंगार है, कुंतल अधर कपोल।
लज्जा रूप लुभावना, मन जाता है डोल।।
546. घूँघट
घूँघट के अंदर हँसे, मन भावन चितचोर।
मन के लड्डू खा रहे, नृत्य करे मन-मोर।।
547. प्रीति
प्रीति हुई श्री कृष्ण से, जगे भक्ति का नेह।
मीरा नाचीं मगन हो, छोड़ दिया निज गेह।।
548. कामिनी
ज्वार चढ़े जब प्रेम का, छोड़ चले घर द्वार।
मन भावन है कामिनी, बने गले का हार।।
549. नयन
चितवन नयन कटार से, घायल करती नार।
योगी सँग भोगी सभी, उसके हुए शिकार।।
550. दशहरा
महल दशानन का ढहा, वनवासी की जीत।
पर्व दशहरा ने रचे, खुशियों के नव गीत।।
551. सत्य
विजय सत्य की हो गई, जीत गए प्रभु राम।
लंकापति के हार से, गिरा असत्य धड़ाम।।
552. नवरात्रि
सजा हुआ नवरात्रि पर, माता का दरबार।
धूप-दीप-नैवेद्य से, सब करते मनुहार।।
553. शरद
हुआ शरद का आगमन, मौसम बदले रंग।
धूप सुहानी अब लगे, आग -रजाई संग।।
554. गरबा
गुजराती गरबा हुआ, इस जग में विख्यात।
माँ दुर्गा की भक्ति में, डूबंे जन दिन-रात।।
555. भाई
लक्ष्मण सम भाई नहीं, त्यागा था घर द्वार।
बड़े भ्रात के साथ में, रक्षा का धर भार।।
556. बहिन
चीर-हरण पर बहन का, संकट से उद्धार।
कृष्ण-द्रौपदी की कथा, भाई-बहन का प्यार।।
557. पुत्र
दशरथ के हर पुत्र में, पितृ भक्ति सम्मान।
राजपाट को छोड़कर, रखा वचन का मान।।
558. माता
माता है इस जगत में, सबकी तारण हार।
भक्ति भाव आराधना, धर्म सनातन सार।।
559. पिता
धर का मुखिया पिता है, उसका जीवन दाँव।
दुख दर्दों को भूलकर, देता सबको छाँव।।
560. जनमेदिनी
उमड़ पड़ी जनमेदिनी, नवदुर्गा में आज।
दर्शन का संकल्प ले, मातृ-भक्ति सुर-साज।।
561. प्रतिदान
स्नेह और आशीष है, मीठे अनुपम बोल।
मिले सदा प्रतिदान में, शक्ति-विजय अनमोल।।
562. वाणी
वाणी का माधुर्य ही, सम्मोहन का बाण।
कार्यकुशलता है बढ़े, हर संकट से त्राण।।
563. आह्वान
भारत का आह्वान है, जग का हो कल्याण।
मानव वादी सब रहें, लगंे न उस पर बाण।।
564. सुचिता
जग में सुख सद्भावना, भारत देश प्रमाण।
सुचिता का आह्वान हो, मानव का कल्याण।।
565. परिणाम
नेक कार्य करते रहें, बढ़ें सदा अविराम।
मंजिल सदा पुकारती, मिलें सुखद परिणाम।।
566. संकट
नेक-नियति मन में रखें, चलें सभी इस राह।
कभी न संकट आ सके, कभी न मिलती आह।।
567. क्वाँर
क्वाँर माह नवरात्रि को, नव दुर्गा का रूप।
शक्ति रूप आराधना, जप-तप करें अनूप।।
568. कार्तिक
कार्तिक में दीपावली, धन-लक्ष्मी का वास।
गहराता तम दूर हो, नव जीवन की आस।।
569. अगहन
अगहन मासी शरद ऋतु, देती यह संदेश।
मौसम ने ली करवटें, कट जाएँगें क्लेश।।
570. मुकुल
मुकुल खिलें जब बाग में, बिखरेगी मुस्कान।
भौरों का संगीत तब, छेड़े मधुरिम तान।।
571. मंजुल
मंजुल छवि श्री राम की, मन मंदिर की शान।
हृदय अयोध्या बन रहा, करें सभी गुणगान।।
572. आस्था
आस्था अरु विश्वास ही, ईश्वर से सत्संग।
सदाचार जीवन रहे, रख मानवता संग।।
573. शांति
सुख-दुख की ही सोच से, बनते हैं मनमीत।
विश्व शांति चहुँ ओर हो, मानवता की जीत।।
574. रूपसी
देख रूपसी नार को, मन होता बेजार।
घायल दिल तब चाहता,साथ बने उपचार।।
575. क्रंदन
तालिबान की सोच से, लहू बहा अफगान।
क्रंदन करता है मनुज, बन गया कब्रिस्तान।।
576. कलरव
वृक्षों पर कलरव करें, पक्षी सुबहो-शाम।
घर, आँगन में गूँजता, भक्ति-भाव हरिनाम।।
577. चंपा
पुष्प बड़े मोहक लगें, लगते सबको नेक।
चंपा के शृंगार से, होता प्रभु अभिषेक।।
578. परिमल
तन महके परिमल सरिस, वाणी में हो ओज।
सभ्य सुसंस्कृति सौम्यता, नित होती है खोज।।
579. मकरंद
फूलों में मकरंद रस, उपवन में चहुँ ओर।
बागों में कलरव हुआ, भौरों का है शोर।।
580. कली
वर्तमान दिखती कली, बनकर खिलता फूल।
डाली से मत तोड़िए, कभी न करिए भूल।।
581. प्रभात
कर्मयोग-पर्याय है, होती नई प्रभात।
भक्ति योग के संग में, तम को दे तू मात।।
582. भाषा
भावों की अभिव्यक्ति में, भाषा चतुर सुजान।
उसकी करते वंदना, भाषा-विद् विद्वान।।
583. संवाद
भाषा से संवाद है, संवादों से नेह।
वाणी की माधुर्यता, मधुर प्रेम का गेह।।
584. हिंदी
स्वर, व्यंजन लालित्य है, हिंदी का शृंगार।
वैज्ञानिक लिपि भी यही, कहता है संसार।।
585. शब्द
मिश्री जैसे शब्द हैं, नदिया जैसी धार।
हिंदी से अपनत्व का, महके अनुपम प्यार।।
586. अर्थ
शब्द-शब्द में अर्थ है, हिंदी सरल सुबोध।
लिखना पढ़ना एक सा, विद्वानों का शोध।।
587. देवनागरी
देवनागरी से हुआ, हिंदी का गठजोड़।
स्वर-शब्दों की तालिका, अनुपम है बेजोड़।।
588. अल्पना
रंग बिरंगी अल्पना, शृंगारित घर-द्वार।
आगत का स्वागत करें, संस्कारित परिवार।।
589. अवगाहन
जितना अवगाहन करें, उतनी होती खोज।
तभी सफलता है मिले, बढ़ता तन-मन ओज।।
590. अंबुज
मन का पंछी फिर उड़ा, जगी प्रेम की आस।
पोखर में अंबुज खिला, भगी विरह संत्रास।।
591. अस्ताचल
सूरज अस्ताचल चला, करने को विश्राम।
चंदा से कह कर गया, चलें हुई अब शाम ।।
592. अवलंब
वृद्धों का अवलंब ही, उसकी है संतान।
बस आश्रय ही चाहता, जब तन से हैरान।।
593. पहचान
सुयश गर्व सम्मान सँग, मुखड़े पर मुस्कान।
याद दिलाती है वही, जग में चिर पहचान।।
594. व्यास
वेद व्यास ने हैं रचे, अनुपम ग्रंथ महान।
पढ़ कऱ मानव कर रहा, नूतन अनुसंधान।।
595. रजनीगंधा
रजनीगंधा की महक, छा जाती चहुँ ओर।
मन मयूर सा नाचता, होकर भाव विभोर।।
596. कुंदन
मानव मन कुंदन बने, निर्मल रहे स्वभाव।
चिंता से तिरते रहें, ले चिंतन की नाव।।
597. संधान
भारत की गौरव कथा, भरती नवल उडा़न।
जड़ विहीन घाती बने, उन पर हो संधान।।
598. मुस्कान
मुखड़े पर मुस्कान हो, मिले सदा सम्मान।
सूरत-रोनी देख कर, गुम जाती पहचान।।
599. व्यास
वेद व्यास ने हैं लिखे, अनुपम वेद-पुरान।
ग्रंथ महाभारत रचा, लेखक बने महान।।
600. आश्वासन
आश्वासन की लिस्ट है, नेता जी के साथ।
पैसा खुद का है नहीं, कोष लुटाते हाथ।।