बरसो मेघा ठंडक लाओ
झुकी कमर जबसे है अपनी
मेरी कविता आस्था-सम्बल
लालकिले पर खड़ा तिरंगा
बंधन में जी लिया बहुत ही
सुचिता की बस बातें होतीं
आल्हा छंद
श्रीनगर के लाल चौक पर
नए वर्ष में खुशहाली का
हिंदुस्ताँ में खुशहाली का
गा रहा हूँ गीत उनके
मंजिल की क्या करें शिकायत
काया के जर्जर होते ही
हो सके तो स्वार्थ
भारत ने सदियों हर युग में
मेरे सपनों के आँगन में
जिंदगी से जिंदगी का, संवाद होना चाहिए
अब दुश्मनी को भूल कर, कुछ काम होना चाहिए
नामुमकिन को मुमकिन करना
यादों में तुम बसे हुए हो
ज्ञान का दीपक जलाकर
दिवारों में टँग गए पापा
पीर थक कर सो गई है