दीप्तिमान हो रहीं दिशाएँ.....
दीप्तिमान हो रहीं दिशाएँ।
खुशियों की फसलें लहराएँ।।
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
हिलमिल कर हम सब हैं रहते।
सारे जग को हमीं लुभाएँ....
दीप्तिमान हो रहीं दिशाएँ।
खुशियों की फसलें लहराएँ।।
सूर्य चाँद पर कदम बढ़ाते।
कीर्तिमान कर बढ़ते जाते।।
अनुसंधानों के संवाहक।
अंतरिक्ष की सैर कराते ।।
दिशा दिखाएँ मानवता की।
जग को उन्नति राह सुझाएँ.....
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
क्षमताओं में कब हैं पीछे।
महाशक्तियों से हम आगे।।
जाग उठे हैं भारत वासी।
रक्षा खातिर बुनेंगे धागे।।
बनीं अर्थ व्यवस्था चौथी।
आगे बढ़कर दिशा सुझाएँ।।
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
दुश्मन सीमा पर है छलता।
करता नित प्रति कारिस्तानी।।
समझाने पर नहीं समझता।
चीन धूर्त अरु पाकिस्तानी।
मेघ गर्जना करते देखो।
अरि-मर्दन को भुजा उठाएँ....
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
दुनिया में बदनाम रहे हैं।
दोनों अपने बने पड़ोसी।।
करे हमेशा सीनाजोरी।
धरा हड़पने के हैं दोषी।।
बहिष्कार हो सामानों का।
उनकी आर्थिक शक्ति ढहाएँ...
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
विश्व पटल पर मान बढ़ा है।
सम्मानों का ताज गढ़ा है।।
नहीं युद्ध यह धरा बुद्ध की।
राम राज्य का पाठ पढ़ा है।।
हर आँखों के आँसू पौंछें।
भारत के ध्वज को फहराएँ.....
है भारत सोने की चिड़िया ।
विश्व गुरू बन राह दिखाएँ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’