पीर थक कर सो गई है.....
पीर थक कर सो गई है,
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।
हो सके तो थपकियाँ दे,
प्रेम की लोरी सुनाओ।।
वेदनाओं की तरफ से,
अब नहीं आता निमंत्रण।
द्वार से ही लौट जाता,
हो गया दिल पर नियंत्रण।।
अब नहीं संधान करता,
फिर न उसको तुम बुलाओ।
पीर थककर सो गई है,
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।
वक्त कितना था बिताया,
उन मुफलिसी के हाल में,
झूलता ही रह गया था।
तब स्वप्नदर्शी जाल में,
फिर मुझे उस पालने में।
अब नहीं किंचित झुलाओ।
पीर थक कर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।
सुख सदा शापित रहा है,
द्वार पर आई न आहट।
आ गया था संकुचित मन,
धर अधर पर मुस्कुराहट।
जो विदा लेकर गया फिर,
उस खिन्नता को मत बुलाओ।
पीर थक कर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ ।।
पीर होती है घनेरी,
भावनाओं के सफर में।
वर्जनाएँ खुद लजातीं,
अश्रु धारा की डगर में।।
देखने दो पल सुनहरे,
अब दृगों को मत रुलाओ।
पीर थककर सो गई है।
प्रिय उसे तुम मत जगाओ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’