यादों में तुम बसे हुए हो.....
यादों में तुम बसे हुए हो।
हुए दूर पर रमे हुए हो।।
हे मेरे वंशज के स्वामी,
कैसे चरणों शीश नवाऊँ।
श्राद्ध पक्ष में तर्पण करके,
कैसे मैं कर्तव्य निभाऊँ।
अंतर्मन में बसे हुए हो,.....
अंगुली थाम बड़े हुए हम,
चलना तुमने ही सिखलाया।
कभी राह से भटक गये तो,
प्रेम भाव से मुझे बताया।
रोम रोम में सजे हुए हो,....
आशाओं का दीप जलाया,
विश्वासों के तुम हो नायक।
प्रतिपालक तुम्हीं हो मेरे,
जीवन के आराधक साधक।
बन गुरुवर तुम खड़े हुए हो,....
निर्भरता का पाठ पढाया,
शिक्षा-दीक्षा भी दिलवाई।
घर परिवार बढ़ाने खातिर,
आँगन में बाजी शहनाई।
जीवन में तुम रचे हुए हो,....
यादों में तुम बसे हुए हो।
हुए दूर पर रमे हुए हो।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’