ज्ञान का दीपक जलाकर.....
ज्ञान का दीपक जलाकर,
तिमिर से हम मुक्ति पाएँ।
गीत हम सद्भावना के,
आइए मिल गुनगुनाएँ ।
सृजन के प्रहरी बने सब,
प्रगति की हम धुन सजाएँ।
देश में उत्साह भरकर,
नव सृजन का जश्न गाएँ।
चमक सके न सूर्य जैसा
पछताना न इस बात पर।
सीख लेना जगमगाना,
छोटे-दियों से रात भर ।
खुश रहे इस देश में सब,
दर्द कोई छू न जाए।
द्वार में दीपक रखें मिल,
रूठने कोई न पाए।
बेबसों के अश्रु पौछें,
साथ में उनके खड़े हों।
लड़खड़ाते चल रहे जो,
दें सहारा तब बड़े हों ।
यदि भटक जाए पथिक तो,
मार्ग-दर्शक बन दिखाएँ।
हो सके तो मंजिलों तक,
राह निष्कंटक बनाएँ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’