लाल किले पर खड़ा तिरंगा.....
लाल किले पर खड़ा तिरंगा,
बड़े शान से लहराता।
आजादी की गौरव गाथा,
स्वयं देश को बतलाता।
त्याग और बलिदान-कहानी ,
हर जन-जन तक पहुँचाता।
गांधी जी का सत्याग्रह हो,
शंखनाद हो शेखर का।
भगत सिंह का फाँसी-चुंबन ,
नेताजी के दृढ़ स्वर का।
क्रांति,अहिंसा के साधन में
फर्क नहीं कुछ बतलाता।
सावरकर के अंडमान का
चित्र उभरकर छा जाता।
खुदी तिलक बिस्मिल के यश का,
पन्ना पुन: पलट जाता।
सबने मिलकर लड़ी लड़ाई,
गौरव गाथा कह जाता।
फाँसी के फंदों में हँसकर
वीरों के दल जो झूले ।
कितनों ने खाईं हैं गोली ,
हम उपकार नहीं भूले ।
अमर रहे बलिदान सभी का,
इसका मतलब समझाता ।
सबसे ऊपर केसरिया रँग
बलिदानी गाथा लिखता।
और बीच में श्वेत रंग यह
शांतिगीत जग से कहता।
हरा रंग भी हरितक्राँति को,
पावन सुखद बना जाता ।
कीर्ति चक्र को बीच उकेरा,
प्रगतिपंथ का है दर्शन।
उन्नति और विकास दिशा में ,
सबके हित का संवर्द्धन ।
तीन रंग से सजा तिरंगा,
यह संदेश सुना जाता।
अमृतवर्ष-महोत्सव आया,
घर-घर झंडे लहराना ।
सबको आजादी का मतलब ,
प्रेमभाव से समझाना ।
छोड़ें सब सत्ता सुख लालच,
कर्त्तव्यों को बतलाता ।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’