मेरे सपनों के आँगन में.....
मेरे सपनों के आँगन में,
खुशियों ने फिर कदम धरे हैं।
रंग महल में चित्रकार ने,
रंगों से कैनवास भरे हैं।
कुंठाओं ने आ घेरा था,
तन व्याकुल बेजान पड़ा था।
मेघों से बूँदें क्या बरसीं,
पतझड़ अपने हुए हरे हैं ।
मेरे सपनों के आँगन में,
खुशियों ने फिर कदम धरे हैं।
रंग महल में चित्रकार ने,
रंगों से कैनवास भरे हैं।...
प्यासी गागर, सूखी धरती,
सूखे अधर प्राण आतुर थे।
सरिताएँ रेतीली दिखतीं ,
पनघट सब वीरान डरे हैं।
मेरे सपनों के आँगन में,
खुशियों ने फिर कदम धरे हैं।
रंग महल में चित्रकार ने,
रंगों से कैनवास भरे हैं।...
कूप जलाशय, कीचड़ उगलें,
साँय साँय सब करते दिखते।
झुलसे लू के सभी हवा से,
लगता सब बेजान परे हैं।
मेरे सपनों के आँगन में,
खुशियों ने फिर कदम धरे हैं।
रंग महल में चित्रकार ने,
रंगों से कैनवास भरे हैं।...
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’