गा रहा हूँ गीत उनके.....
गा रहा हूँ गीत उनके, जो तिमिर में खो गए हैं ।
गीत उनके अब भी जिंदा,सबके उर में बस गए हैं।।
मौत तो सबको है आती,पल दो पल हमको रुलाती।
जिन्दगी ही इस धरा में, जो सदा ही गुद-गुदाती ।।
गा रहा हूँ गीत उनके,जो तिमिर में खो गए हैं।
गीत उनके अब भी जिंदा, सबके उर में बस गए.....
उडे़लते थे कागजों में, भावनाओं का समंदर।।
डूबकर गोते लगाते, शब्द बन जाते थे मंतर।
गा रहा हूँ गीत उनके, जो तिमिर में खो गए हैं।
गीत उनके अब भी जिंदा, सबके उर में बस गए हैं.....
छटपटाहट उर में रहती, निस्वार्थ सेवा थी उमड़ती ।
वेदनाओं के भंवर से, प्राण-किस्ती बच निकलती ।।
गा रहा हूँ गीत उनके जो तिमिर में खो गए हैं।
गीत उनके अब भी जिंदा, सबके उर में बस गए हैं....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’