याद मातु की आ रही.....
याद मातु की आ रही, आँखों में है नीर ।
आँचल में रहने सदा, रहता हृदय अधीर ।।
सदा अभावों में रही, पाकर थी खुशहाल ।
सीने से मुझको लगा, हो जाती बेहाल ।।
दुबला पतला नकचढ़ा, जिसका ऐसा पूत ।
कहती सीना तानकर, माता उसे सपूत ।।
रोया करता रात दिन, उसको बड़ा मलाल।
चिन्ता में वह सूखकर, मुरझाती हर साल।।
माँ की ममता जगत में, एक खुला आकाश ।
जिससे उसको माप लें, उतना मिले प्रकाश ।।
माँ का हृदय विशाल है, कभी न हुआ निराश।
कौन रोक पाया कभी, रवि का तेज प्रकाश।।
नों माहों तक गर्भ में, रखकर करे दुलार ।
जीवन भर पायें सभी, उस जननी से प्यार ।।
माँ की सेवा से मिले, जग में बड़ा प्रसाद ।
उसके आशीर्वाद से, दूर भगें अवसाद ।।
आँचल में माँ के सदा, मिलता है विश्राम।
चरणों में यदि सिर झुके, होता तीरथ धाम।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’