अहंकार रवि को हुआ.....
अहंकार रवि को हुआ, मैं इस जग की शान ।
कौन जगत में है यहाँ, मुझसे बड़ा महान ।।
कहकर रवि जाने लगा, लेकर साथ प्रकाश ।
अंधकार छाने लगा, तब जग हुआ निराश ।।
बात उठी तब चतुर्दिश, प्रश्न बना सरताज ।
देगा कौन प्रकाश अब, अंधकार का राज ।।
दीपक कोने से उठा, फैला गया उजास ।
मानो सब से कह रहा, क्यों हैं आप उदास ।।
मैं छोटा सा दीप हँू, जग में करूँ प्रकाश ।
सदियों से मैं लड़ रहा, कभी न हुआ हताश ।।
सुप्त मनोबल जग उठा, जागा दृढ़ विश्वास ।
जाग उठी नव चेतना, परिवर्तन की आस ।।
कमर कसी उसने तभी, रवि को देने मात ।
ऊर्जा श्रोत तलाश कर, तम से दिया निजात ।।
न्यूक्लीयर में खोजता, ऊर्जा के अब श्रोत ।
अंधकार से भिड़ गया, इक छोटा खद्योत ।।
करता अविष्कार वह, उसी दिवस से रोज ।
परख नली में कर रहा, नव जीवन की खोज ।।
जूझ चुनौती से रहा, मानव आज जहान ।
बौद्धिक क्षमता से हुआ, वह सच में बलवान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’