मुझे तुमसे शिकायत है.....
मुझे तुमसे शिकायत है, तुम्हें मुझसे भी हो सकती ।
अगर दिल से मिले है दिल, तो नफरत हो नहीं सकती ।।
दिलों में प्रेम का दीपक, जला कर के तो फिर देखो ।
शिकायत हो भी सकती है, अदावट हो नहीं सकती ।।
अगर बढ़ने की चाहत है, जिगर में हौसला भर लो ।
अनेकों राह हैं जातीं कि,कोई भी पथ स्वयं चुनलो ।।
जो हिम्मत बाँध कर बढ़ते, चले हैं हर मुकामों में ।
वही मंजिल को पाते हैं, उन्हीं की राह को चुनलो ।।
पथिक का काम है चलना, हार कर रुक नहीं जाना।
रात के बाद जीवन में, भोर का फिर से आ जाना ।।
जिंदगी ऐसे ही जीते हैं, जीने का हुनर सीखो।
बुरा जो वक्त होता है, वह चुटकी में गुजर जाता।।
खुले आकाश में जब भी, उड़ाने भरने को उतरे ।
हमारेे पर कुतरने को, न जाने कितने हैं उतरे ।।
मगर उड़ने का जज्बा था, तभी तो पा गये मंजिल।
हमें तो कारवाँ भी मिल गया, पर वे नहीं सुधरे ।।
निराशाओं की बदली, छा गयी थी इस धरातल में ।
गरजती औ चमकती थी, न बरसीं वो मरुस्थल में ।।
दिलों में आपने जो, आस का दीपक जलाया है ।
उन्हें बुझने न देना औ, जलाना है सभी दिल में ।।
जो जैसा कर्म करता है, वो वैसा फल भी पाता है।
छिपाये से कहाँ छिपता, जमाना जान जाता है ।।
जरा तुम धैर्य रखकर, देख लो उन रहनुमाओं को ।
जो फ्लैशों मंे दमकता हैं, वो चेहरा भी छुपाता है ।।
राह में हम सफर थे साथ, कई तो मन से थे टूटे।
कई राहों में बिछुड़े हैं, कई किस्मत से हैं रूठे ।।
जमाने में यही सदियों से, होता है चला आया।
कोई तो हम सफर बनता, कई रिश्ते हुयेे झूठे ।।
लिखा जो भाग्य में जिसके, उसे तो भोगना पड़ता।
राम ओ कृष्ण को भी तो, दुखों से जूझना पड़ता।।
ये माथे की लकीरें हैं, मिटाने से नहीं मिटतीं।
जो दुर्गम पथ में बढ़ता है, उसे इतिहास है गढ़ता।।
बिना भट्टी में तपकर, सोना भी कुंदन नहीं बनता।
बिना छैनी हथौड़ी के, कभी हीरा नहीं सजता ।।
बिना संघर्ष जीवन जो जिया, संसार है भूला।
कर्म की साधना से आदमी, इंसान है बनता।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’