साधु-संत बदले सभी .....
साधु-संत बदले सभी, नये जमाने संग ।
नहीं भभूती अब मलें, पौडर महके अंग ।।
तड़क भड़क के साथ में, प्रगटें ये सरकार।
सँग में रहता मीडिया, करता है व्यापार।।
सिंहासन के पाश्र्व में, खड़े रहें यमराज।
नहीं उलझते भद्रजन, कब गिर जाए गाज।।
सजा रखे दरबार हैं, मन के सभी मरीज।
हर रोगी को है दवा, पहनाएँ ताबीज ।।
कार्य-सिद्धि का वास्ता, रखते सिर पर हाथ ।
वारन्टी भी दे रहे, दान पत्र के साथ ।।
सजी हाट है हर गली, बिकते हाथों हाथ ।
आस्था के बाजार में, झुके हुए हैं माथ।।
रोजगार इनका बढ़ा, सफल हुआ व्यापार।
बिन पूँजी धंधा चले, है लाभार्थ अपार।।
धन वर्षा होती बहुत, टैक्स मुक्त है आय।
परकोटा ऊँचा रहे, शिष्य न भगने पाय।।
किसी बात का डर नहीं, धर्म धुरंधर देश ।
यही सोच कर हे प्रभो, बदला इनने वेश ।।
साधु-संत के वेश में, आए कुछ शैतान।
इनसे बचकर ही रहें, व्यर्थ न देवें मान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’