नाम सुभद्रा जब रखा.....(सुभद्रा कुमारी चौहान)
काव्य सृजन का प्रण लिया, बनी कलम तलवार।
ओज-लेखनी से किया, अंग्रेजों पर वार।।
महीयशी की प्रिय सखी, ओजस्वी आकाश।
मात्र चवालीस उम्र में, बिखरा गईं प्रकाश।।
पास इलाहाबाद के, है निहालपुर ग्राम।
रामनाथ जी थे पिता, घर उनका था धाम।।
सन् उन्नीस सौ चार में, जन्मी थीं चौहान।
गोरों के उस काल में, पीड़ित हिन्दुस्तान।।
नाम सुभद्रा जब रखा, घर में छाया हर्ष।
मात पिता के लिये था, खुशियों का वह वर्ष।।
संवेदित वातावरण, संस्कारी परिवार।
अबला सबला बन गयी, बनी धनुष टंकार।।
आजादी की चाह में, कविता हुयी जवान।
लक्ष्मण सिंह की संगिनी, संस्कारों की खान।।
ससुरालय में मिल गया, इनको सबका साथ।
अवगुंठन का त्याग कर, चलीं उठा कर माथ।।
गांधी के सँग में बढ़ीं, निर्भय, सीना तान।
हाथ तिरंगा थाम कर, बनी देश की शान।।
कविता और कहानियाँ, देश प्रेम के बोल।
नगर जबलपुर को मिला, यह हीरा अनमोल।।
देश भक्ति पतवार से, खेकर जीवन नाव।
सीधे सादे चित्र में, दिखेे अनोखे भाव।।
मुकुल त्रिधारा नीरजा,दीप शिखा अनमोल।
झाँसी की रानी लिखी, जिसका नहीं है मोल।।
सन् संतावन की कथा, अमर हो गयी आज।
भुला न पाये हैं उसे, सबको उस पर नाज।।
रानी झाँसी बन गयी, देश भक्ति का धाम।
बुंदेली भू भाग का, जग में चमका नाम।।
कविता ऐसी है लिखीं, भरती मन में जोश।
सुप्त पूत भी जग उठें, उड़ें शत्रु के होश।।
हर रचना में है दिया, देश भक्ति पैगाम।
सभी देशवासी उन्हें, शत् शत् करें प्रणाम।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’