चाटुकारिता भाव का.....
चाटुकारिता भाव का, रोज बढ़ा बाजार।
सदियों से दरबार में, इनका ही अधिकार।।
राजनीति में बढ़ गया, बुरी तरह से रोग।
इनका ही होता भला, खाते छप्पन भोग।।
चाटुकार घेरे रहें, सत्ता को चहुँ ओर।
मंजिल होती दूर है, कभी न होती भोर।।
समदर्शी ही आपको, दिशा दिखाये नेक।
चिंतन का अवसर मिले,जागे बुद्धि विवेक।।
समालोचना ही सदा, समदर्शी का धर्म।
सद्गुण ही पोषित रहें, इसका है यह मर्म।।
प्रोत्साहन संजीवनी, जीवन में दरकार।
मंजिल हो जाती सुगम,सपने भी साकार।।
नीर-क्षीर में भेद ही, बेहद सुन्दर काम।
श्वेत धवल वह हंस सा, बन जाता निष्काम।।
जीवन सुखमय ही रहे, कोई नहीं उदास।
चाटुकार से दूरियाँ, दूर हटें संत्रास।।
चाटुकारिता है बुरी, रखें सदा ही ध्यान।
समदर्शी को ही चुनें, भारत बने महान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’