साधू इस संसार में.....
साधू इस संसार में, भांति-भांति के लोग।
जैसा ज्ञान विवेक है, वैसा तन मन रोग।।
फँसा निराशा के भँवर, तो डूबा इन्सान।
मन से हारा आदमी, तज देता है जान।।
चमत्कार संयोग है, या ठगने का कर्म ।
ज्ञानी मानव ही सही, समझ सकें हैं मर्म।।
तंत्रमंत्र धोखाधड़ी, झाड़-फूँक सब व्यर्थ।
फँस कर इसमें आदमी, खोता अपना अर्थ।।
कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो करते विश्वास।
दुविधाओं में भटक कर, घुट-घुट लेते साँस।।
झाड़ फूँक ताबीज में, जो करते विश्वास।
चमत्कार की आस में, होते सभी हतास।।
सन्मति और विवेक से, जो जाग्रत हैं लोग।
औषधीय उपचार से, दूर भगाते रोग।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’