सैनिक पाती लिखने बैठा.....
सैनिक पाती लिखने बैठा, भारत माँ के नाम।
मातृ वंदना करके उसने, शत् शत् लिखा प्रणाम।।
भेज रहा माँ पाती तुझको,घर के बिगड़े लाल।
कामचोर मक्कारी करते, भटके पथ बेहाल।।
जब भी हमें पुकारा जाता, कभी न करते देर।
सीमा पर दुश्मन से लड़ते,पल में करते ढेर।।
हम सीमा पर नजर गड़ाए, जाग रहे दिन रात।
घर के पूत कपूत बने हैं, बिगड़े हैं जज्बात।।
भ्रष्टाचार चरम पर पहुँचा, जीना हुआ मुहाल।
सरकारी दामाद बढ़ गए, होकर मालामाल।।
सेवाएँ सब ठप्प पड़ी हैं, जन-मन है लाचार।
रिश्वत की दुकानों में, अब चलता कारोबार।।
सच्चाई के पथ में कंटक, बिछे हुए हैं आज।
बेईमानों की फौज बढ़ी है, घूम रहे बेताज।।
गली-गली में ऊग गई है, काँटों वाली घाँस।
अगर उखाड़ा नहीं जड़ों से, चुभेगी सबको फाँस।।
बहुत सरल है काम किंतु, धरे हाथ पर हाथ।
एक दूजे को ताक रहे हैं,नहीं निकलते साथ।।
देश भक्ति लाचार खड़ी है, हिंसा का है राज।
चीर हरण में कई लगे हैं, कैसे ढाँकू लाज।।
खाल ओढ़कर शेर बने हैं, छुपे हुये गद्दार।
चिंगारी को भड़काते हैं, दुश्मन हैं मक्कार।।
बुद्धिजीव सारे के सारे, बिके हुए बाजार।
नेताओं की चाल निराली, शासन है लाचार।।
उँगली सदा उठाते रहते, हम पर तो ये रोज।
कर्तव्यों का पाठ पढ़ाते, नित देते हैं डोज।।
तीन उँगलियों को न देखें, आरोपों का दौर।
मेरी माता पूँछ रहा मैं, कैसे होगी भोर।।
पत्थर हम पर फेंक रहे, तान रहे बंदूक।
शस्त्र हाथ में थामे हैं पर, झेल रहे हैं मूक।।
माता यदि आदेश मुझे दो, चुन-चुन सबक सिखाउँ।
इस पावन धरती से गिन-गिन, नर्क इन्हें पहुँचाउँ ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’