मैंने सत्-साहित्य पढ़ा है.....
जीवन को जीना है सीखा,
हर गहरे तल में झाँका है।
मैंने सत्-साहित्य पढ़ा है,
उसके भावों को बाँचा है।।
लिखना पढ़ना शौक रहा है,
शब्दों से शृंगार किया है।
भावों के सागर में डूबा,
जग को कुछ संदेश दिया है।।
पहन मुखौटे जो आये हैं,
उनके चेहरों को भाँपा है।
चाहा नहीं हैं मुझको फिर भी,
सबको प्रेम सदा बाँटा है।।
कर्तव्यों के डगर चले हैं,
आदर्शों के पाठ पढ़ेे हैं।
अधिकारों को पाकर फिर भी,
नहीं कभी भी हम अकड़ेे हैं।।
जीवन भर मैंने खोजा है,
कोई ऐसा मिला नहीं है।
जिसको मैं दुनियाँ में कह दूँ,
इससे बढ़कर सगा नहीं है।।
जिसने मुझको जनम दिया है
उनसे ही जीना सीखा है।
उंगली पकड़ राह दिखलायी,
लगते प्रिय ही मात-पिता हैं।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’