पानी की बूँदें कहें.....
बादल बरखें नेह के, धरती भाव विभोर।
हरित चूनरी ओढ़ कर, जंगल नाचे मोर।।
पानी की बूँदें कहें, मुझको रखो सहेज।
व्यर्थ न बहने दो मुझे, प्रभु ने दिया दहेज।।
जल जीवन मुस्कान है, समझें इसका अर्थ।
पानी बिन सब सून है, नहीं बहायें व्यर्थ।।
ताल तलैया बावली, बनवाने का काम।
पुण्य कार्य करते रहे, पुरखे अपने नाम।।
निर्मल जल पीते रहे, दुनिया के सब लोग।
नहीं किसी को तब हुआ, इससे कोई रोग।।
अविवेकी मानव हुआ, दूषित कर आबाद।
नदी सरोवर बावली, किए सभी बरबाद।।
जल को संचित कीजिये, बाँध नदी औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं चुभेगी धूप।।
सरवर गंदे हो गये, जीवन अब दुश्वार।
जल.थल.नभचर,जड़.अचर,संकट बढ़ें हजार।।
नदी ताल औ बाँध हैं, जगती के अवतार।
इनका नित वंदन करें, हैं जीवन आधार।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’