हीरे मोती व्यर्थ हैं.....
हीरे मोती व्यर्थ हैं, रखें दिलों में नेह।
प्रेम भाव से सब रहें, होता सुंदर गेह।।
मन में श्रद्धा को रखें, जैसे मोती सीप।
मन-मंदिर प्रभु-मूर्ति हो, तब जलते हैं दीप।।
तन रूपी इस सीप में, सदा बिराजे राम।
कृपा सिंधु भगवान हैं, श्रृद्धा से लें नाम।।
सबके दिल में प्रभु बसें, ईश्वर का है धाम।
जो भी उसे पुकारता, बनते बिगड़े काम।।
सबकी नैया के वही, ईश्वर खेवनहार।
बचा-भंँवर से ले चलें, नैया करते पार ।।
केवट खड़ा निहारता, कब आएंँगे राम ।
संकट में परिवार है, बिन मजदूरी काम।।
नदियों पर पुल बन रहे, केवट खड़ा उदास।
प्रभु पुल से हैं जा रहे, व्यर्थ लगी है आस।।
कितनी नदियाँ रेत में, हुईं विलोपित आज।
सूख रहे सब खेत हैं, तृषित विहग-परवाज।
चारों ओर सुगंध से, महक उठी है शाम।
प्रिय का है शुभ आगमन, आज मिलेंगे श्याम।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’