दोहे संत कबीर के.....
दोहे संत कबीर के, शाला के गुरुदेव।
सभी रहें सौहार्द में, चले न कहीं फरेव।।
डंडा ले फटकारते, लड़ें भिड़ें ना लोग।
जीवन को कैसे जियें, वातावरण सुयोग।।
सत्य प्रवर्तक वे रहे, चरित रहा अनमोल।
पाखंडों से दूर रह, जाना मानव मोल।।
लाल रक्त तन में बहे, बस धड़कन है सार।
पहले हम इंसान हैं, बाकी सब बेकार।।
रूढ़िवाद पाखंड पर, खूब उठाया शोर।
समरसता औ एकता, पर था उनका जोर।।
सर्वधर्म सद्भाव की, खेंची ऐसी तान।
मुल्ला पंडित पादरी, सभी हुये हैरान।।
समय चक्र फिर घूमकर, पहुँचा उसी मुकाम।
कट्टरता ऐसी बढ़ी, जीना हुआ हराम।।
धर्मों की अब आड़ में, छिड़ी हुयी है जंग।
बेबस मानव हो रहा, कुछ ने पी ली भंग।।
इस्लामिक धर्मान्धता, से मानव हैरान।
रक्तपात आतंक से, बने हुये शैतान।।
कबिरा का संदेश ही, एक मात्र उपचार।
जो समाज को दे गए, है मानव उपहार।।
खून बहाकर व्यर्थ ही, करता है तकरार।
मानवता ही धर्म है, सब धर्मों का सार।।
अंधकार को चीर कर, कब होगी वह भोर।
विश्व शांति सद्भावना, गूँजेगीे चहुँ ओर।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’