बचपन के दिन सबके अच्छे.....
बचपन के दिन सबके अच्छे, हर दिल में बसते ।
जब यादों की दस्तक होती, मन ही मन हँसते ।।
रूठने और मनाने के, वे दौर अनूठे थे ।
धमा चैकड़ी और खेल के, रंग अनोखे थे ।।
छोटीे-छोटी बातों में, चाहे जब भिड़ जाते ।
खेल खेलते वक्त सभी, आपस में मिल जाते ।।
गुड्डा-गुड़िया, हाथी-बंदर, मोर-मोरनी भाते ।
चूल्हा-चकिया, पटा-बेलना, पाकर सब हर्षाते ।।
झूठ-मूठ का खाना पकता, एक साथ सब खाते ।
ब्याह रचा कर गुड्डे का, दुल्हनियाँ घर लाते ।।
ऐसी खुशियों के हर पल में, हँसी ठहाके लगते ।
छोटे बड़े सभी जन मिलकर,हम बच्चों संग हँसते ।।
बचपन की कुछ यादें अब तक, मन में हैं सब अंकित ।
भुला न पाया उनको अब तक, अब भी दिल में संचित ।।
मेरे घर के आँगन में था, घर का आँगन उनका ।
हिल-मिल कर खेला करते, इसका था न उसका ।।
साँवली रूप छटा थी उसकी, सुंदर दो आँखें ।
लगती थी अमिया सी जैसे, प्यारी दो फाँकें ।।
पढ़ते-पढ़ते नींद जो आती, चपत गाल पर लगती ।
बु़द्धिमान बनने की मुझको,सीख भी सुनना पड़ती ।।
बड़े प्यार से सिर बालों को, हाथों से दुलराती ।
मेरे उलझे बालों को नित, कंघी से सुलझाती ।।
मेरी नकली मम्मी बनकर, खाना सदा खिलाती ।
धोखे से उँगली चब जाती, खूब जोर चिल्लाती ।।
रो रोकर अपनी माता के, आँचल में छिप जाती ।
माँ का लाड़ प्यार पाकर के, भूल सभी कुछ जाती ।।
खूब शिकायत करके मेरे, कानों को खिंचवाती ।
माँ से डँाट डपट पड़वाकर, मन ही मन हरषाती ।।
गुस्सा माँ का देख कभी वह, बहुत सहम सी जाती।
मुझे बचाने के चक्कर में, बेचारी पिट जाती ।।
मुन्ना भैया को मत मारो, मेरा है-सब दोष।
हाथ जोड़ कर कहती अम्मा, सचमुच यह निर्दोष।।
उस स्नेह प्यार का सचमुच, आज तलक कायल हूॅँ।
बचपन की उन स्मृतियों से,आज तलक घायल हॅँू ।।
जीवन पथ पर चलते चलते, बरसों गुजर गये ।
एक मोड़ पर अनजाने में, उनसे हम मिल गये ।।
दोनों की आँखें मिलते ही, बचपन झूल गये।
सालों गुजरी स्मृतियाँ, अंखियन में डोल गये।।
उसकी काया देख हमारी, सारी खुशियाँ हारीं ।
बचपन के संजोये पल अब, मुझ पर पड़े थे भारी ।।
रूखे बाल फटी साड़ी ने, खुद ही कथा पढ़ी।
धँसे पेट, सूखी काया ने, उसकी व्यथा गढ़ी ।।
सूनी उजड़ी माँग कह गयी, उसकी वैधव्य कहानी को।
आँखों की पीड़ा दर्शा गयी, उस पर आयी सुनामी को।।
खुशियों की सारी स्मृतियाँ, अवसादों में बदल गयीं।
वर्तमान की पीड़ा पिघली,आँसू बनकर निकल गयीं।।
हर बचपन के रंग अनोखे, फूलों की रंगत जैसे।
किसका भाग्य कहाँ ले जाये, कब रूठे वह ऐसे।।
बचपन के दिन कभी न रूठें,दिल के दर्पण कभी न टूटें।
यादों की अनमोल तिजोरी, काल सिपहिया कभी न लूटे।।
ईश्वर सबके बचपन के दिन, रखें दिलों में हरे-भरे ।
कभी न संकट उन पर छाए, रहें सदा ही हरे-हरे ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’