कवि ने अल्पनाओं में.....
कवि ने अल्पनाओं में, अनेकों रँग डालें हैं।
सृजन संवेदना के सूत्र, अंर्तमन में ढाले हैं ।।
सफर जीवन का हो या, सृष्टि की अस्मिता का हो।
समुंदर की तलहटी से, सदा मोती निकाले हैं।।
कभी वह ब्यास बन कर, गीता का उपदेश रचता है।
महाभारत का दृष्टा बन, वही संदेश गढ़ता है।।
कभी वह बाल्मीकि बनके, रामायण लिखा करता।
कभी वह तुलसी बनकर, राम का यशगान करता है।।
कभी मीरा की भक्ति का,वह इक तारा बजाता है।
अगुण आराधना में डूब कर, विष को पचाता है।।
कभी कबिरा की वाणी से, मुखर हो डाँटता रहता।
परस्पर प्रेम की धारा बहा, सबको मिलाता है।।
कवि रसखान बनकर, कृष्ण की मुरली बजाता है।
कवि सद्भावना में डूबकर, मन को रिझाता है।।
कभी वह सूर बनकर, कृष्ण की आराधना करता।
जगत में बाल लीला का, चितेरा बन लुभाता है।।
हमेशा आपदा में वह, सदा हिम्मत बँधाता है।
दया ममता के भावों को, दिलों में वह बसाता है।।
बुराई को हटाने राम का, वह पक्ष है लेता।
दशानन को हराकर वह, विभीषण को बिठाता है।।
दिलों में आश का दीपक, कवि बुझने नहीं देता।
निराशाओं की बदली सर, कभी चढ़ने नहीं देता।।
जगत को आगे बढ़ने की, सदा अभिप्रेरणा देता।
दिलों को तोड़ने का भाव, वह पलने नहीं देता।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’