सैंतालिस से चल रही.....
सैंतालिस से चल रही, नापाकी करतूत।
कट्टरता ने गढ़ दिया, उसका ही ताबूत।।
औरंगजेबी सोच में, डूबा पाकिस्तान।
अपने पैर पसारने, माँगे हिन्दुस्तान।।
काश्मीर में मारता, जब चाहे वह डंक।
छल छद्मों की आड़ ले, फैलाता आतंक।।
आस्तीनों में साँप भी, बढ़ते जाते रोज।
खतरा इनसे है बढ़ा, कैसे होगी खोज।।
बाप और बेटा रहे, जब तक सत्तासीन।
देश भक्ति का स्वांग रच, बजा रहे थे बीन।।
सत्ता से जब बेदखल, बदला सारा सीन।
पत्थरबाजों के लिए, बने हुए हैं दीन।।
कृतज्ञ देश के कब हुये, पाल रखा है रोग।।
वर्षों से हम खिला रहे, इनको मोहन भोग।
जब भी घिरतेे बाढ़ में, रक्षा करें जवान।
लहुलुहान उनको करें, घाटी के शैतान।।
बिच्छू जैसा आचरण, जिनके अंदर खोट।
संत वृत्ति को छोड़कर, देना होगा चोट।।
चलो शिवा राणा बनें, भरें एक हुँकार।
काली हर करतूत का, कर दें बंटाढार।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’