राजनीति से हो गया.....
राजनीति से हो गया, सेवा भाव विलोप ।
हर नेता अब खोजता, व्यापारिक इस्कोप ।।
ज्ञाता जो कानून के, उच्चासन पर राज ।
स्वार्थ सिद्धि कैसे करें, सोच रहे सरताज ।।
भाषण देते मंच पर, फैलाते भ्रमजाल ।
माल पुआ हैं खा रहे, खींचें सबकी खाल ।।
भावी स्वर्णिम बेचते, उत्पादक सा काम।
बिक जाने के बाद फिर, पाँच बरस गुमनाम ।।
मन मोदक जनता चखे, मोदक खुद लें लील ।
पेट बढ़े गणराज सा, लगता जैसे झील ।।
हर चुनाव में कर रहे, नोटों की बरसात ।
विजय पताका थाम कर, अधिक पँजीरी खात ।।
जिसको देखो है खड़ा, हर चुनाव मैदान ।
शिक्षा डिग्री व्यर्थ है, व्यर्थ ज्ञान विज्ञान ।।
बस चुनाव का वक्त हो, जोड़ सभी के हाथ ।
विजयी हो फिर क्यों मिलें, जनता फिरे अनाथ ।।
हाथ जोड़ वोटर फिरें, कहाँ छिपे हो नाथ ।
कष्ट सिन्धु में हम फँसे, छोड़ चले अब साथ ।।
शासन तंत्र स्वतंत्र हैं, लूट रहे सब आज ।
कोई भी सुनता नहीं, जनता की आवाज ।।
जनता की बस नियति है, दें इनको मतदान ।
नेता सत्ता-सुख चखे, फिर होते बलवान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’