रावण भ्रष्टाचार का.....
रावण भ्रष्टाचार का, आया धर कर वेश ।
हरण कर रहा आज फिर, रामराज परिवेश ।।
भ्रष्टाचारी डंक से, पीड़ित है इंसान।
मंदिर में बैठा हुआ, आहत है भगवान ।।
आजादी जबसे मिली, जैसे पा ली छूट ।
निज स्वार्थों में डूब कर, देश रहे हैं लूट ।।
अति लालच की चाह में, पहुँचे हैं उस छोर ।
फाइल में ही बंद है, हर विकास की भोर ।।
जब तक भ्रष्टाचार है, व्यर्थ प्रगति सोपान ।
सब रोगों की एक जड़, पहले करें निदान ।।
हर जीवन अभिशप्त है, छाया संकट लोक ।
जितना तर्पण कर सको, सुधरेगा परलोक ।।
अफसर शाही पर लगे, पहले सख्त लगाम।
दिशा-दिशा अनुगूँज हो, भ्रष्टमुक्त पैगाम।।
सभी क्षेत्र के लिये है, यह विकास सोपान।
शुचिता का संदेश ही, देश प्रगति सम्मान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’