यह होली आयी है.....
कविता के रस रंग में, फागुन की सुरताल ।
सजी हुयी इस साल भी, होली की चौपाल।
यह फागुन आया है, बहारें लाया है ।
यह होली आई है, रंगों को लायी है ....
नर नारी गोपाल संग, चौपालों में भंग ।
हँसी ठहाके गूॅँजते, तन मन उठे तरंग ।।
कि बालें पक आईं, खेतों में लहरायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
फागों की महफिल सजें, टिमकी और मृदंग ।
दाऊ पहने झूमरोे, नाचे मस्त मलंग ।।
बसंती ऋतु छाई, सभी के मन भायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ....
घर घर घूमें टोलियाँ, हम जोली के संग ।
मस्ती में सब झूमते, हाथों में ले रंग ।।
वो कोयल कूक रही, मधुरिमा घोल रही,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
प्रेम रंग में डूब कर, किशन बजावें चंग ।
राधा पिचकारी लिये, डाल रही है रंग ।।
कि राधे कृष्ण की जोड़ी, खेलती ब्रज में होरी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
अरहर झूमे खेत में, आम धरे सिरमौर ।
खुशियों की बारात में, नाचे मन का मोर ।।
गाँव की किस्मत जागी, घरों में खुशियाँ छायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
जंगल में टेसू खिलें, हँसे गाँव की नार ।
बागों मे चम्पा खिली, डगर नगर गुलजार ।।
यह फागुन छाया है, बहारें लाया है,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
बासंती पुरवाइ में, भाग रहे सब रोग ।
फाग ईशुरी गा रहे, गाँव शहर के लोग ।।
ये होली ऋतु आयी, सभी के मन भायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ....
जीवन में हर रंग का, अपना है सुरताल ।
पर होली में रंग सब, गलें मिले हर साल ।।
कि छोड़ो बैर बुराई, इसी में सबकी भलायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है ...
दहन करें मिल होलिका, मन के जलें मलाल ।
गले मिलें सब प्रेम से, घर-घर उड़े गुलाल ।।
कि एकता हरषायी, प्रगति की डगर दिखायी,
यह होली आई है, रंगों को लायी है....
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’