गुरू शिष्य का प्रेम यह.....
सूजीपुरा स्कूल में, शिक्षक थे परिहार ।
नहीं भूल पाया उन्हें, वे करते थेे प्यार ।।
शिष्य रहा मैं लाड़ला, वरद् हस्त था साथ।
एक बार कुछ बात पर, पड़ा गाल में हाथ।।
दोष न था मेरा मगर, मैं छोटा अनजान ।
हर विद्यार्थी के लिये, गुरु जी थे भगवान ।।
अनुपस्थिति के सात दिन, भेज दिया अवकाश।
गया नहीं स्कूल जब, गुरुजी हुये निराश।।
गुरु चिन्ता से ग्रस्त थे, याद करें हर रोज ।
सजा दिया नाहक उसे, आया नहीं मनोज ।।
जलते पश्चाताप् में, दग्ध हुये कुछ रोज ।
एक दिवस घर आ गये, देखें शिष्य मनोज ।।
देख पिता को सामने, झिझके गुरू महान ।
बेटा क्यों आता नहीं, मैं तो हूँ हैरान ।।
बिस्तर पर लेटे मुझे, देख हुये बैचेन।
बाहों में भर कर मुझे, छलक उठे थे नैन ।।
ज्वर से पीड़ित मैं रहा, सिर पर फेरा हाथ ।
उनके इस बर्ताव से, ज्वर ने छोड़ा साथ ।।
दोनों के आँसू बहे, मिटे दिलों के क्लेश ।
आज तलक भूला नहीं, थे शिक्षक दरवेश ।।
गुरू शिष्य का प्रेम यह, दे जाता संदेश ।
दोनों के इस मेल से, बदलेगा परिवेश ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’