धर्म वही होता बड़ा.....
धर्म वही होता बड़ा, जिसमें हो सद्भाव।
प्रेम दया ममता क्षमा, उपकारी हों भाव।।
मानवता से कब बड़ा, जग ने समझा मर्म।
आदम युग के बाद ही, उपजे हैं सब धर्म।।
बैर बुराई तामसी, नहीं धर्म के अंग।
मारकाट हिंसा सभी, हैं अधर्म के रंग।।
कट्टरता जब धर्म में, घुस जाती है घोर।
मूल भाव खोते सभी, कभी न होती भोर।।
शून्य भाव जबसे हुये, चुभे दिलों में शूल।
प्रेम और सद्भाव ही, सब धर्मों का मूल।।
धर्म सभी हैं खो गये, अब कट्टरता साथ।
राम रहीम ईसा-मसि, पीट रहे हैं माथ।।
मानवता ही धर्म है, मुख्य धुरी है एक।
भारत की संस्कृति में, यही बात है नेक।।
हम उदारवादी रहे, लेकर सबको साथ।
सदियों से हैं चल रहे, पकड़े सबका हाथ।।
स्वागत करना जानते, और झुकाना माथ।
पर यह कभी न सोचिए, बंधे हुये हैं हाथ।।
शिक्षा मिली सनातनी, वेदों से यह ज्ञान।
सारा जग है जानता, भारत देश महान।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’