राष्ट्रभक्ति का मस्तक ऊँचा.....
आजाद हिन्द के हे सेनानी,
तुमसा नहीं है कोई सानी।
वतन परस्ती के जज्बों से,
लिख दी तुमनेे अमर कहानी।।
लहू रगों में उबल पड़ा था
अनुनय विनय से मन हारा।
छोड़ दिया था नरम पंथ को,
क्रांति शस्त्र का लिया सहारा।।
जिसके भय से सूर्य देव भी,
पश्चिम जाने में कतराया।
सिंह बने तुम खड़े सामने,
हिन्दुस्ताँ का मान बढ़ाया।।
आजादी की लड़ी लड़ाई,
क्रांति भरा इतिहास लिख गये।
जापानी धरती से तुमने,
दुश्मन छाती शूल चुभो गये।।
बहुत हो गया नहीं ओढ़ना,
फटी गुलामी की चादर को।
अपना बिस्तर आप समेटो,
छोड़ो अब तुम दिल्ली को।।
तरुणाई की अरुणाई ले,
चला सिंह मर्दन करने।
भारत की रज लगा के माथे,
चला मुक्ति-पीड़ा हरने।।
मुझे चाहिये लहू आपका,
मैं दूंगा तुमको आजादी।
देशप्रेम की अलख जगा के,
अंग्रेजों की जड़ें हिलादीं।।
अंडमान और निकोबार को,
अंग्रेजों से छीन लिया।
इंम्फाल औ कोहिमा पर भी,
अपना रुतबा दिखा दिया।।
कूच करो दिल्ली को साथी,
हिन्दुस्तान हमारा है।
अंगे्रजो अब सत्ता छोड़ो,
भारत देश हमारा है।।
आजादहिन्द की फौजबना के,
गोरों को ललकार दिया।
राष्ट्रपिता कह कर सम्बोधन,
गांधी जी को मान दिया।।
जयहिन्द के बने प्रवर्तक,
शब्द आज भी गूँज रहा है।
राष्ट्रभक्ति का मस्तक ऊँचा,
खड़ा हिमालय बोल रहा है।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’