भ्रम में जो भी जी रहे.....
भ्रम में जो भी जी रहे, तन मन पाले रोग ।
इसके चक्कर में फँसे, बहुसंख्यक हैं लोग।।
आँख कान औ नाक से, भ्रम का है आभास।
एक बार जो घुस गया, मन में चुभती फाँस।।
सच्चाई को जानने, कभी न करते खोज।
भ्रम को ही सच मानकर, सिर को धुनते रोज।।
दिशा भ्रमित हो भटकते, होती कभी न भोर।
भूल भुलइयों में फँसे, बढ़ें तिमिर की ओर।।
मृग मरीचिका में फँसी, मानव मन की सोच।
मन की शांति उड़ गयी, रहा बाल है नोंच।।
त्रेता में सीता फँसी, संकट लियो बुलाय।
सोने की मृग चाह ने, लंका दियो पठाय।।
भ्रम को कभी न पालिये, भ्रम संशय की खान।
कार्य सिद्धि होती नहीं, रुके प्रगति सोपान।।
बुधि विवेक से कीजिये, हर भ्रम का संहार।
मिले मुक्ति इससे तभी, हो सुखमय संसार।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’