कलियुग में धन ही सदा.....
कलियुग में धन ही सदा, आता सब के काम ।
सदियों से हर आदमी, इसका रहा गुलाम ।।
धन ही सबकी चाह है, सदा रहा सिरमौर ।
घर में कितना हो भरा, सभी चाहते और ।।
धन हथियाने को खड़े, सारे चोर डकैत ।
सुख की नींद न सो सकें, पालें सभी लठैत ।।
धन सहेजना है सरल, अधिक कठिन है ज्ञान ।
धन अनुगामी ज्ञान का, यही सत्य पहचान ।।
धन से यश औ कीर्ति का, नाता है कुछ खास।
राजा हो या रंक हो, हैं सब इसके दास।।
समझदार के पास ही, धन का है उपयोग ।
अज्ञानी के हाथ से, मिट जाते सब योग ।।
होती लक्ष्मी चंचला, उसका कहीं न ठौर ।
सरस्वती को साथ रख, जो विभूति सिरमौर ।।
शुभ धन कहलाता वही, स्त्रोत रहें यदि नेक।
गलत राह से जब मिले, देता दुख अतिरेक।।
धन से होता है बड़ा, जीवन में सद्ज्ञान ।
जिसके बल पर आदमी, बन जाता इन्सान ।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’