लौह पुरुष को सौंपी होती.....
लौह पुरुष को सौंपी होती, काश्मीर शमशीर।
नहीं बिगड़ती ऐसे मेरे, भारत की तकदीर।।
नापाकी मंसूबे पलते, न आतंकी घुसते।
माँ के वीर शहीद न होतेे, खिंचती नहीं लकीर।।
अचकन की लटकन में फँसकर, मुरझायें हैं फूल।
राजनीति के समझौते में, हुई बड़ी थी भूल।।
हरा भरा कश्मीर हमारा, पूछे आज सवाल।
कब तक घावों को सहलायें, निकलें कैसे शूल।।
तुष्टिकरण की राजनीति का, है यह दुष्परिणाम।
बनी हुई है देव धरा भी, कबसे कब्रिस्तान।।
सोने की थाली भी देकर, ढूँढ़ न पाए हल।
किस्मत इनकी बदल सके न, भोग रहे परिणाम।।
अलगाव वादी औ आतंकी, भारत पर हैं भार।
कई दशकों से पले पुसे हैं, अपने ही घर द्वार।।
इन साँपों की रक्षा करके, देश ने है क्या पाया।
मौका मिलते ही डसते ये, देश के हैं गद्दार।।
पाकिस्तानी कुछ पिट्ठू हैं, बने हुये नासूर।
पहन मुखोटा घूम रहे हैं, भारत में भरपूर।।
देख रहे हैं सात दशक से, इनका ताँडव नृत्य।
निर्भय होकर करें सामना, संकट हों तब दूर।।
कुछ सिर फिरे लड़ाते रहते, आदम युग के भालू।
पत्थर और बंदूकें थामे, मानवता के डाकू।।
पेलेट गन से कब मानेंगे, इनका नर्क बिछौना।
कड़ी सजा ही देनी होगी, तभी रहेंगे काबू।।
काश्मीर में बसे हुए , जो मन से पाकिस्तानी।
वीर जवानों को घायल कर, करते हैं मनमानी।।
अगर नकेल कसी न इन पर, तो डूबेगी नैया।
अरे सपूतो अब तो जागो, हम सब हिन्दुस्तानी।।
घाटी में कुछ खून बहा के, करते रहे बवाल।
अनुच्छेदों के छेद बंद कर, जिनने किया कमाल।।
दुश्मन की हर बुरी चाल को, मिलकर दे दी मात।
भारत की जोड़ी ने देखो, कैसा किया धमाल।।
सच्चे पूत जगे हैं जबसे, बदला है यह देश।
स्वाभिमान जागा है अपना,बदला है परिवेश।।
देख रहा है जग अब सारा, भारत की ही ओर।
स्वर्ण काल है आने वाला, बदलेगा फिर देश।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’