संस्कारों के ज्ञान से.....
संस्कृति खड़ी उदास है, बेसुर बजता साज।
संस्कारों के ज्ञान से, दूर हो रहे आज।।
सोन चिरैया उड़ रहीं, कुछ करते उपहास।
साहस भरे प्रयास में, सबके दिल उल्लास।।
पालक की चिंता बढ़ी, कैसी होगी साँझ।
स्वर सरगम के बीच में, टूट न जाये झाँझ।।
राह भटक जाते कई, फिर अपनों से दूर।
फिर पछताने के लिये, हो जाते मजबूर।।
नन्हीं सी वह जान है, भोली औ सुकुमार।
चुगनाई कुछ डालकर, पंछी करें शिकार।।
बाज चील औ गिद्ध सब, उड़ते हैं बेताज।
बचकर जो इनसे रहें, तब सजता है साज।।
उचित दिशा में जो उड़े, नहीें रोकना राह।
जितना उड़तीं हैं उड़ें, हर पंछी की चाह।।
जागरूक होना सदा, हर पंछी का फर्ज।
पालनकर्ता का तभी, सही उतरता कर्ज।।
शिक्षा का अभिप्राय है, शिक्षित बनें समाज।
खुशियाँ हर घर में बसें, खुशहाली का राज।।
पंछी उड़ता दूर तक, घर में मिलती छाँह।
आजादी की चाह में, याद रखें सब राह।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’