काश्मीर पर कर रहा.....
काश्मीर पर कर रहा, बरसों से तकरार।
जेहादी आतंक से, बढ़ा रखी है रार।।
धर्म-पड़ौसी भूलकर, चलता है नित चाल।
खून खराबा कर रहा, खुद भी है बेहाल।।
हठधर्मी पर है अड़ा, चमकाता तलवार।
सद्भावों को भूलकर, खुद का बंटाढार।।
नापाकी हरकत करे, सुलगाता नित आग।
शैतानी घुसपैठिये, खेलें खूनी फाग ।।
घुट-घुट कर वह जी रहा, कोई नहीं हैं खुश।
प्रगति हमारी देखकर, सदा रहा नाखुश।।
छल प्रपंच का रूप धर,व्यर्थ करे अभिमान।
कड़ी चुनौती मिल रही, झेल रहा अपमान।।
बिछुड़ा बँगला देश है, गया बलूचिस्तान।
पापों का घट भर गया, टूटा पाकिस्तान।।
सदियों से भारत रहा, विविध पंथ का देश।
सबको सँग लेकर चला, नहीं रहा है द्वेष।।
सहिष्णुता सद्भाव से, समय बना अनुकूल।
हर विकास के पथ गढ़े,चुभते कभी न शूल।।
आपस में मिलकर रहें, सदा रही पहचान।
संस्कृतियाँ पलती यहाँ, पाती हैं सम्मान।।
संकट पर हमने कभी, कब बदला परिवेश।
सद्भावों की डोर से, बँधा हुआ है देश।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’