शहर टोरेण्टो है बसा.....
(कनाडा यात्रा संस्मरण)
देख कनाडा खुश हुये, सुन्दर लगते छोर।
ऊँची भव्य इमारतें, दिखतीं हैं चहुँ ओर।।
सुंदर टोरेण्टो शहर, बड़ी झील के पास ।
स्वच्छ नगर आदर्श यह ,जो शहरों में खास।।
जनता के सहयोग से, चला रखा अभियान।
साफ सफाई का यहाँ, रखते हैं सब ध्यान।।
बाग बगीचे सड़क घर, लगा रखे हैं फूल ।
वन उपवन को देखकर, मन हो जाता कूल ।।
धरा हरितिमा से भरी, कहीं न दिखती धूल ।
तन मन खुश होता यहाँ, स्वर्ग धरा अनुकूल ।।
भूतल ट्रेनें दौड़ती, नाम मात्र स्टाॅफ ।
सभी टिकिट लेकर चलें, सब करते इंसाफ।।
टिकिट नहीं तो दीजिए, डालर में चालान।
या फिर जाओ जेल में, लागू यहाँ विधान।।
प्लेट फार्म पहुँचा सकें, हर बस में है होड़।
लोकल ट्रेनें चल रहीं, सड़कों पर ना दोड़।।
बस के हाल न पूछिये, बस तो इनकी शान ।
बाल वृद्ध सबके लिये, रखा गया है ध्यान ।।
सड़क किनारे बाक्स में,ताजा फ्री अखबार।
विज्ञापन सँग में सजे, समाचार भंडार ।।
बीच सड़क क्यारी बनीं, अद्भुत है परिदृश्य ।
कीचड़,रज से मुक्त हैं, घर आँगन-सा दृश्य।।
होड़ मची रहती यहाँ, सुंदर दिखें मकान ।
अच्छी पेंटिग से सजें, घर औ गली दुकान ।।
चलने को पथ हैं बनेे, ट्रेफिक के हैं रूल ।
अनुशासन रखते सभी, करते कभी न भूल ।।
खम्बों में गमले टँगे, बिजली संग में फूल ।
मार्ग सजावट देखकर, मन हो जाता कूल ।।
जनता का सहयोग है, नगर निगम के साथ।
दोनों मिलकर चल रहे, हाथों में ले हाथ ।।
चुस्त यहाँ की टीम है, सुनती है अविराम।
फोन सूचना पर तुरत, हो जाता है काम ।।
बाधित पथ करते नहीं, नहीं कार्य में देर ।
सड़क खोदते इस तरह, कहीं न दिखता ढेर।।
कूड़ा करकट के लिये, रखे हुए हैं बाक्स ।
सब उसमें ही डालते, नहीं गन्दगी रास ।।
पार्किंग का ठेका नहीं, होता नहीं यकीन ।
नगर निगम की हैं लगीं, पार्किंग-पेड मशीन।।
सड़क किनारे पर अगर, रखना चाहें कार ।
पैसा खुद प्री पेड कर, नहीं बढ़ाते रार ।।
कोई ठेका है नहीं, खड़ा न चैकीदार ।
सब अनुशासन में चलें, सब करते सहकार।।
संस्कारों में बस गया, इनके अंदर ज्ञान ।
साफ-सफाई के लिये, रखते हैं सब ध्यान।।
श्वानों को तो पालते, एक नहीं दो चार।
चिन्ता इनकी भी करें, हर क्षण पालनहार।।
लेकर सँग में घूमते, रोज सुबह औ शाम ।
पाॅटी करते ही तुरत, साफ करें खुद आम ।।
सड़क बनाते हैं यहाँ, उसमें लगती सील ।
समय,कम्पनी नाम की, ठुक जाती है कील ।।
गारन्टी पक्की रहे, रखते हैं सब ध्यान।
गुणवत्ता को देखकर, हम सचमुच हैरान।।
सबकी अपनी रोड है,साइकलें या कार ।
पैदल भी निर्भय चलें, दुर्घटना बेकार ।।
पुलिस प्रशासन चुस्त है, भ्रष्ट नीति से मुक्त।
गुंडों, चोरों के लिए, रहती है वह चुस्त ।।
कर्तव्यों के प्रति सजग, रहें न लापरवाह ।
दिखते चुस्त दुरुस्त सब, जनता करती वाह।।
नगर सजावट देखने, लाखों आते लोग।
बाग बगीचे देखकर, भगते दिल के रोग।।
झीलों के इस देश में, हरियाली चहुँ ओर।
प्रकृति छटा मन भावनी, मन में उठे हिलोर।।
होता मन हर्षित यहाँ, नहीं व्यर्थ का शोर।
जीवन जीने के लिए, सुखद शांति चहुँ ओर।।
न्याग्रा वाटर फाल की,जग में नहीं मिसाल।
एक बार जो देख ले, होता वही निहाल।।
नीर धवल अठखेलियाँ, उछल कूद दिन रात ।
उछली बूँदें मेघ बन, कर देतीं बरसात।।
न्याग्रा के तट पर बसा, अमरीका सा यार।
दो देशों के बीच से ,बहती अमरित धार।।
जीवन रक्षा के लिये,सरिता होती खास।
निर्मल सी बहती सदा, हर लेती संत्रास।।
सेतु बनाया बीच में, कभी न सिलवट माथ।
ताल मेल ऐसा बना, राम-लखन सा साथ।।
पर्यटकों की भीर है, हाट सजे चहुँ ओर।
प्रकृति नजारा देख कर, होते भाव विभोर।।
मनोज कुमार शुक्ल ‘मनोज’